बाजार में सुधार से भी पीएसयू शेयरों में नहीं उत्साह | |
देव चटर्जी और कृष्ण कांत / मुंबई 06 21, 2020 | | | | |
सीमा पर भारत और चीन के बीच हुई झड़प ने सरकारी स्वामित्व वाली फर्मों की ओर ध्यान खींचा है। इसकी वजह यह है कि कई बिजनेस लीडर ने बीएचईएल और बीईएमएल जैसी दिग्गज कंपनियों के निजीकरण की बात कही है ताकि पूंजीगत सामान के क्षेत्र में भारतीय कंपनी जगत को चीन की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाया जा सके।
निजीकरण की बात हालांकि ऐसे समय मेंं हो रही है जब पीएसयू फर्मों ने अपनी शेयर कीमतों और बाजार पूंजीकरण में काफी गिरावट का सामना किया है और व्यापक बाजार के मुकाबले उनका प्रदर्शन लगातार कमजोर बना हुआ है। पिछले 10 वर्षों में बीएसई 200 इंडेक्स (बैंक व वित्तीय कंपनियों को छोड़कर) 17 अग्रणी पीएसयू का संयुक्त बाजार पूंजीकरण 41 फीसदी घटा है जबकि सेंसेक्स में 91 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है।
इन 17 पीएसयू का संयुक्त बाजार पूंजीकरण 17 जून को 7.7 लाख करोड़ रुपये था, जो अप्रैल 2010 के 13.04 लाख करोड़ रुपये और जून 2019 के 12.2 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले काफी कम है।
विनिवेश की संभावना वाली अग्रणी कंपनियों भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और कंटेनर कॉरपोरेशन (कॉन्कोर) ने हालांकि इस प्रवृत्ति को उलट दिया है और अपनी सकमक्ष कंपनियों के मुकाबले बड़े अंतर से बेहतर प्रदर्शन किया है। यह अलग बात है कि जनवरी से इनमें थोड़ी कमी देखी गई है।
बिजली उपकरण विनिर्माता बीएचईएल सबसे ज्यादा पिछड़ी हुई है और उसका बाजार पूंजीकरण अप्रैल 2010 के 1.2 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 90 फीसदी घटकर अभी 11,000 करोड़ रुपये रह गया है।
पिछले दशक के मुकाबले पिछडऩे वाली अन्य बड़ी कंपनियां हैं सेल (अप्रैल 2010 से 87 फीसदी नीचे), ओएनजीसी (53 फीसदी नीचे), एनएमडीसी (78 फीसदी नीचे), एनटीपीसी (47 फीसदी नीचे), नालको (79 फीसदी नीचे), कोल इंडिया (60 फीसदी नीचे) और गेल (20 फीसदी नीचे)।
बुधवार को वेदांत के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने कहा था कि निजीकरण के लिहाज से बीएचईएल आदर्श उम्मीदवार है। साल 2002 में वेदांत ने हिंदुस्तान जिंक का अधिग्रहण किया था, जो अभी समूह की दुधारू कंपनी है और सबसे ज्यादा लाभकारी धातु उत्पादक। वित्त वर्ष 2019 में हिंदुस्तान जिंक का योगदान वेदांत के एकीकृत राजस्व में 23 फीसदी रहा और ब्याज व कर पूर्व लाभ में उसकी हिस्सेदारी 55 फीसदी रही। समूह ने बीपीसीएल में दिलचस्पी दिखाई है।
बिजनेस स्टैंडर्ड के नमूने में शामिल 17 पीएसयू मेंं से 12 ने पिछले 10 साल में बाजार पूंजीकरण में गिरावट दर्ज की है, वहीं पांच ने बढ़ोतरी देखी है। बीपीसीएल का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा और पिछले दशक के मुकाबले उसका बाजार पूंजीकरण चार गुना हो गया। अप्रैल 2010 के 18,722 करोड़ रुपये के मुकाबले यह अभी 80,000 करोड़ रुपये है।
बढ़त वाली अन्य कंपनियां हैं एचपीसीएल (205 फीसदी बढ़त), पावर ग्रिड (81 फीसदी), इंडियन ऑयल (11 फीसदी) और कॉन्कोर (40 फीसदी)।
पिछले वर्ष पीएसयू शेयरों के लिए मुश्किल भरे रहे हैं और संयुक्त बाजार पूंजीकरण (बैंक व वित्तीय फर्मों को छोड़कर) जून 2019 से अब तक 36 फीसदी टूटा है जबकि सेंसेक्स में 15 फीसदी की गिरावट आई है। इसमें कॉन्कोर (पिछले 12 महीने में 33 फीसदी नीचे) और बीपीसीएल (7.2 फीसदी नीचे) शामिल है। बिजनेस स्टैंडर्ड की तरफ से संग्रहित आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी से अब तक यह गिरावट तेज रही है।
बीपीसीएल ने अपना बाजार मूल्यांकन 25 फीसदी यानी 26,000 करोड़ रुपये गंवाए, वहीं बीएचईएल ने 27 फीसदी। बीईएमएल ने 36.3 फीसदी गंवाए जबकि कॉन्कोर ने अपने मूल्यांकन का 30 फीसदी गंवा दिया यानी 10,500 करोड़ रुपये। शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने इस साल अब तक 20.4 फीसदी की गिरावट आई है।
इनके अलावा सरकार ने एयर इंडिया के लिए बोली मंगाई है, लेकिन एक बोलीदाता ने कहा कि उन्हें इस पर दोबारा विचार करना होगा क्योंंकि सभी सूचीबद्ध विमानन कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 50 फीसदी से ज्यादा टूट गया है।
बैंकरों को डर है कि सरकार को वित्त वर्ष में विनिवेश लक्ष्य पूरा करने में परेशानी होगी क्योंकि उसे कम कीमत पर शेयर बेचने का फैसला करना होगा या फिर मुश्किल वक्त टल जाने तक इंतजार करना होगा।
बजट में सरकार ने 2.1 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य तय किया था, जिसमें पीएसबी व वित्तीय संस्थानोंं से 90,000 करोड़ रुपये हासिल करना शामिल है। सरकार बीमा दिग्गज एलआईसी के विनिवेश और आईडीबीआई की बाकी हिस्सेदारी बेचने पर भी विचार कर रही है।
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