मनोरंजन के लिहाज से यह गर्मी चिंताजनक रही है। सबसे ज्यादा प्रचार वाली कुछ फिल्मों और टेलीविजन शो पर एक नजर डालते हैं। हाल ही में एमेजॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई सुजित सरकार की फिल्म गुलाबो सिताबो निराशाजनक रही। इसकी कहानी फिल्म की सेटिंग की तुलना में कमतर नजर आई। ऐसा लगा मानो किसी को लखनऊ में कमजोर पड़ती इमारत फातिमा मंजिल पसंद आई और उसने उसी के इर्दगिर्द एक कहानी बुन दी। मानो और कुछ मायने ही नहीं रखता है। दूसरी तरफ अनुराग कश्यप की फिल्म चोक्ड एक शानदार सोच पर आधारित है। नोटबंदी की पृष्ठभूमि में एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार की भावनात्मक उठापटक को इसमें दर्शाया गया है जिसके केंद्र में बैंक की एक कैशियर है। लेकिन काफी धीमी गति से आगे बढऩे की वजह से मेरा ध्यान बीच में ही इससे उचट गया। वेबसीरीज पाताललोक को देखना बेहतरीन रहा लेकिन उसमें भी कहीं-कहीं नजर आए रक्तरंजित दृश्यों ने मुझे परेशान किया। इस सीरीज में पुलिस इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी के किरदार में जयदीप अहलावत बेहतरीन हैं। इसके पहले उन्हें राज़ी में निभाए किरदार के लिए भी तारीफें मिली थीं। ऐसे ही कई और शो और फिल्में हैं जो पसंद की गई हैं। इस सूची में जामतारा, आउट ऑफ लव, पंचायत, द फैमिली मैन और सेलेक्शन डे जैसे कई नाम हैं। लेकिन भारत की सड़कों पर नजर आ रही भीषण मानवीय त्रासदी, सिकुड़ती हुई अर्थव्यवस्था और लोगों के बेरोजगार होने के बीच मुझे द बिग बैंग थिअरी ने काफी प्रभावित किया। पिछले तीन महीनों में मैंने सभी 12 सीजन के कुल 279 एपिसोड को दो बार देखा। बेहद करीने से लिखी गई इस सीरीज की शुरुआत वर्ष 2007 में अमेरिकन सीबीएस पर हुई थी जबकि अंतिम एपिसोड का प्रसारण मई 2019 में हुआ था। इस तरह 12 वर्षों तक फैले प्रसारण काल में यह एक वैश्विक परिघटना के तौर पर दर्ज किया जाने लगा जिसे कई अन्य प्लेटफॉर्म पर भी दिखाया गया। मैंने इसे नेटफ्लिक्स पर देखा था। इसमें दिखाया गया है कि कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कैलटेक) के चार वैज्ञानिक जिंदगी, महिलाओं, रिश्ते और काम से जुड़ी समस्याओं का सामना करते हुए किस तरह आगे बढ़ते हैं और उनमें बदलाव आते हैं? इन किरदारों के आयाम को गढऩे में लगभग पूर्णता बरती गई है। इसके लेखकों में मुख्य रूप से शामिल चक लॉरे और बिल पैडी की लेखनी बेजोड़ है। यह शो मजेदार होने के साथ ही समझदारी भी है। यह आपको गुदगुदाने के साथ ही जिंदगी एवं रिश्तों के बारे में गहरी समझ भी दे जाता है। चारों मुख्य किरदारों का कॉमिक्स, सुपर हीरो, तकनीक एवं विज्ञान के प्रति लगाव को बेहद खूबसूरती से पिरोया गया है। इसमें स्टार वार्स के मार्क हैमिल, जेम्स अर्ल जोन्स, कैरी फिशर, स्टार ट्रेक के विलियम शैटनर, लियोनॉर्ड निमॉय, तकनीक जगत के ऐलन मस्क और बिल गेट्स जैसे किरदार भी रखे गए हैं जो कुछ एपिसोड में ही नजर आते हैं। भौतिकशास्त्रियों के लिए रॉकस्टार जैसा रुतबा रखने वाले वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग भी 2018 में निधन के पहले तक अहम पलों में इस शो में आवाज या स्काइप कॉल के तौर पर नमूदार होते रहे। अनिश्चितता और निराशा के दौर में द बिग बैंग थिअरी हमसे बहुत दूर अमेरिका में सब कुछ सामान्य होने का अहसास कराता रहा। अधिक बड़ी बात यह है कि 20 मिनटों के इसके हरेक एपिसोड में मुझे हंसने-मुस्कराने के कुछ पल जरूर मिलते रहे। और यही वह सवाल है जिसका जिक्र मैंने इस लेख की शुरुआत में किया है: भारत के टेलीविजन एवं ओटीटी प्लेटफॉर्म पर मजाकिया कार्यक्रम लिखने वाले लेखक कहां हैं? हालात के चलते पैदा होने वाला हास्य (सिचुएशनल कॉमेडी या सिटकॉम) परोसने वाले कार्यक्रम कहां हैं? खास तौर पर इस समय में जब इनकी अधिक जरूरत है। भारत में अर्थव्यवस्था, हमारा समाज, विविधता, अलग संस्कृति जैसे तमाम विषयों पर सिटकॉम बनाए जा सकते हैं। पश्चिमी देशों के पास हाऊ आई मेट योर मदर, ब्रुकलिन नाइन जैसे चर्चित सिटकॉम हैं। लेकिन भारत के पास इस विधा में दिखाने के लिए बहुत कम है। अस्सी एवं नब्बे के दशकों में टेलीविजन पर ये जो है जिंदगी, वागले की दुनिया और देख भाई देख जैसे कार्यक्रम आते थे। लेकिन फिर साप्ताहिक ड्रामा शो हावी होने लगे। नई सदी में तो ये ड्रामा शो हफ्ते में लगभग रोज ही प्रसारित होने लगे। मैंने हिंदी में प्रसारित आखिरी रोचक सिटकॉम वर्ष 2004 में साराभाई वर्सेज साराभाई को देखा था। अब भी एमेजॉन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रहा यह शो अपनी खासियत बरकरार रखे हुए है लेकिन लंबे समय से उसके जैसा दूसरा शो नहीं लिखा गया है। वैसे आप तारक मेहता का उलटा चश्मा या स्टैंडअप कॉमेडी शो या द ऑफिस या माइंड द मल्होत्राज का जिक्र कर सकते हैं। लेकिन इनके बारे में जरा फिर से सोचिए। जहां सेक्रेड गेम्स, मिर्जापुर या इनसाइड एज जैसे तनावपूर्ण एवं परतदार रोमांचक व ड्रामा सीरीज स्ट्रीमिंग वीडियो की शक्ल में हमारे टीवी पर नजर आ रही हैं लेकिन हमें गुदगुदाने को मजबूर करने वाले वैसे ही सिटकॉम नदारद हैं। इसके कारण का अंदाजा लगाना इतना मुश्किल नहीं है। मनोरंजन के सबसे लोकप्रिय माध्यम के तौर पर टेलीविजन का वजूद विज्ञापनों पर टिका हुआ है और खुद विज्ञापन दर्शकों की संख्या पर निर्भर होते हैं। इस वजह से रोज आने वाले टीवी शो को सबसे ज्यादा विज्ञापन मिलते हैं। सिटकॉम की गिनती इस सूची में काफी नीचे होती है। टेलीविजन को पूरा परिवार ही एक साथ देखता है जिससे कुछ हद तक रचनात्मकता सीमित होती है। यहीं पर स्ट्रीमिंग वीडियो आते हैं जिन्हें अपने मोबाइल फोन पर अकेले या टीवी स्क्रीन पर परिवार के साथ भी देखा जा सकता है। फिलहाल ग्राहकी आधारित करीब आधे दर्जन ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म बाजार में विस्तार के लिए नए-नए विषयों पर पैसे लगा रहे हैं। हो सकता है कि आने वाले समय में हमें कुछ मजेदार शो भी देखने को मिलें।
