गूगल टैक्स का दायरा बढ़ा सकता है भारत | दिलाशा सेठ / नई दिल्ली June 19, 2020 | | | | |
भारत और यूरोप के अन्य देश जल्द ही फेसबुक, गूगल और नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियों पर कर लगाने की एकतरफा शुरुआत कर सकते हैं, क्योंकि अमेरिका ने इन कंपनियों को कर के दायरे में लाने को लेकर चल रही वैश्विक चर्चा से खुद को अलग कर लिया है।
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी)में बेस इरोजन ऐंड प्रॉिफट शिफ्टिंग (बीईपीएस) फ्रेमवर्क के तहत बातचीत जारी रहेगी, वहीं सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि अमेरिका के इसमें शामिल न होने से बातचीत का कोई मतलब नहीं रह जाएगा और इसलिए इक्वलाइजेशन लेबी के विस्तार की संभावनाओं पर काम शुरू हो सकता है।
इसके अलावा यह महत्त्वपूर्ण आर्थिक मौजूदगी (एसईपी) के सिद्धांत के तहत राजस्व व उपभोक्ताओं को भी परिभाषित करेगा, जो चालू वित्त वर्ष में इस आधार पर टाल दिया गया था कि इसके बहुपक्षीय समाधान पर चर्चा चल रही है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'जहां तक डिजिटल कर का सवाल है, इस बातचीत से अमेरिका के अलग होने से ज्यादा से ज्यादा देश एकतरफा काम करने के लिए प्रोत्साहित होंगे और अमेरिका प्रतिरोधी शुल्क लागू कर रहा है, जिसकी वजह से कारोबारी जंग हो सकती है। हमने पहले ही गैर प्रवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों पर 2 प्रतिशत इक्वलाइजेशन लेवी लगाया है। विज्ञापन राजस्व के मामले में यह पहले ही 6 प्रतिशत है और इसके आगे और बढ़ाए जाने की संभावना है।'
भारत ने जून 2016 में गैर प्रवासी डिजिटल फर्मों की विज्ञापन से होने वाली कमाई पर 6 प्रतिशत इक्वलाइजेशन लेवी लगाया था। सरकार को 2018-19 में इस लेवी से 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा मिले थे।
अमेरिका ने दिसंबर में इस मसले पर बहुपक्षीय समाधान को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई थी और तर्क दिया था कि यह वैकल्पिक प्रकृति का है और देशों पर बाध्यकारी नहीं है।
अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण के कारण कर लगाने को लेकर आ रही चुनौतियों के समाधान के लिए 130 देशों ने बीईपीएस के तहत ढांचा बनाने पर बातचीत शुरू की थी, जिससे परंपरागत अंतरराष्ट्रीय कराधान व्यवस्था पर फिर से काम किया जा सके और डिजिटल फर्मों के भौतिक रूप से मौजूद न होने पर भी उन पर कर लगाया जा सके और कर वंचना से बचा जा सके।
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