लद्दाख में चीन की हरकत से कैसे निपट सकता है भारत? | दोधारी तलवार | | अजय शुक्ला / June 19, 2020 | | | | |
लद्दाख में चीन द्वारा सीमा उल्लंघन की खबरों को सरकार शुरुआत में नकार रही थी लेकिन झड़प में 20 सैनिकों की शहादत (जिससे बचा जा सकता था) और कई अन्य के घायल होने के साथ ही उसकी पुष्टि हो गई।
दरअसल हुआ क्या था? 19 अप्रैल की रात खुफिया रिपोर्ट आईं कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की ओर बड़े पैमाने पर भारी वाहनों की आवाजाही हो रही है। यह आवाजाही दक्षिण में चूमर और देमचोक से लेकर मध्य में चूशुल और पेगॉन्ग सो और उत्तर में गलवान और देपसांग तक थी। सेना ने इसे गलती से चीन की सालाना सैन्य कवायद समझ लिया।
चीजें तब स्पष्ट हुईं जब चीन ने गलवान नदी घाटी में गोगरा पहाड़ी और पेगॉन्ग सो पर हथियार तैनात कर दिए। उसके बाद चीन के टैंक, हथियारबंद वाहक और तोपें देसपांग के मैदान में नजर आए।
5 मई को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के हजारों सैनिकों ने गलवान नदी घाटी में एलएसी पार की और उनकी भारतीय सैनिकों के साथ हिंसात्मक झड़प हुई। पीएलए ने उत्तरी लद्दाख के लिए बनी नई दारबुक-श्योक-दौलतबेग ओल्डी मार्ग पर दबदबा बना लिया। पीएलए ने दो और जगहों पर एलएसी पार की।
दूसरी घटना 9 मई को करीब 2,000 किलोमीटर की दूरी पर सिक्किम के नाकू ला दर्रे पर हुई। यहां पीएलए के जवानों ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की। भारतीय सेना ने अपनी जमीन में दो किमी भीतर पीएलए को रोक लिया और दोनों पक्षों के सैकड़ों जवान तनावपूर्ण स्थिति में आमने सामने हैं।
तीसरी घटना 17-18 मई को पेगॉन्ग सो झील पर घटी जहां चीन के सैनिकों और भारी वाहनों ने एलएसी पार करके झील के उत्तरी किनारे पर कब्जा कर लिया। भारतीय गश्ती दल पारंपरिक तौर पर फिंगर 8 पहाड़ी पर जाते रहे हैं लेकिन भारतीय सीमा में 8 किमी भीतर फिंगर 4 पर पीएलए ने उन्हें रोक दिया।
लद्दाख में प्रवेश के पांच बिंदु हैं- तीन गलवान घाटी में एक पेगॉन्ग सो और एक दक्षिण में चूशुल। जाहिर है चीन ने यहां अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। इस सप्ताह पीएलए के सैनिकों ने लद्दाख में एक और जगह एलएसी पार की और देसपांग मैदानों में कई किमी भीतर घुस आए। यहां वे भारतीय सीमा में दो सड़कें बना रहे हैं।
इन घटनाओं को समझने के लिए भारत-चीन सीमा को जानना होगा जहां सीमा पर कोई सहमति नहीं है। एलएसी का भी सीमांकन नहीं हुआ है और न ही वह मानचित्र पर है। दोनों देश इसकी अपने-अपने ढंग से व्याख्या करते हैं। वहां सीमा निर्धारण वही है जहां तक किसी देश की सेना गश्त करती है। जिन जगहों पर दावों को लेकर विवाद है वहां कई बार दोनों देशों के गश्ती दल एक दूसरे को पार भी करते हैं। झड़प की आशंका के बावजूद दोनों देशों के बीच पांच बड़े समझौतों ने अब तक शांति स्थापित रखने में मदद की है। इनमें से पहले समझौते- बॉर्डर पीस ऐंड टै्रंक्विलिटी एग्रीमेंट पर सितंबर 1993 में हस्ताक्षर किए गए थे। इसे मातृ समझौता माना जाता है। इसके बाद 1996 में भरोसा बहाली को लेकर, 2005 में गश्त की मानक प्रक्रियाओं को लेकर और 2012 में मशविरा और सहयोग प्रक्रिया को लेकर समझौता हुआ। सन 2013 में सीमा सुरक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
भारत और चीन दोनों को पता है कि साझा समझ से रेखांकित एलएसी से अनिश्चितता समाप्त हो सकती है। सन 1996 के समझौते में भारत-चीन सीमा क्षेत्र में एलएसी को लेकर साझा समझ पर बल दिया गया है। इसमें कहा गया है कि दोनों पक्ष यथाशीघ्र ऐसे नक्शे साझा करेंगे जिनमें वे एलएसी को लेकर अपनी समझ स्पष्ट करेंगे। परंतु चीन ने ऐसा नहीं किया और झड़प की आशंकाएं बनी रहीं।
परंतु इस बार चीन की योजना बड़ी प्रतीत होती है। वह भारत की गश्त में कमी का लाभ लेकर एलएसी बदलना चाहता है। चीनी बॉर्डर गार्ड हमेशा अपने दावे वाली जगह तक गश्त करते हैं वहीं भारतीय सैनिक एलएसी से कुछ पहले स्थित पेट्रोलिंग प्वाइंट तक ही जाते हैं।
एक उच्चस्तरीय सरकारी संस्था चीन अध्ययन समूह ने सन 1975 में पहले पेट्रोलिंग प्वाइंट निर्धारित किए थे। सन 1993 में बीपीटीए समझौते के बाद इन प्वाइंट को एलएसी के करीब ले जाया गया और सन 1995-96 में मौजूदा पैट्रोलिंग प्वाइंट तय किए गए। परंतु अधिकांश क्षेत्रों में इन प्वाइंट और एलएसी में अंतर है।
चीन शायद गश्त की जगह और एलएसी के इस अंतर पर काबिज होना चाहता है। पीएलए ने पैट्रोलिंग प्वाइंट 14,15 और 17 के करीब सड़क बना ली है। देपसांग में वे पैट्रोलिंग प्वाइंट 12 और 13 तक आ गए हैं। यही है कि पेगॉन्ग सो पर वे फिंगर 8 के भीतर काबिज हैं जबकि वहां भारत नियमित गश्त करता है। यह जगह तिब्बत शिनच्यांग राजमार्ग के अत्यंत करीब है। चीन उसके बचाव के लिए जमीन हड़पना चाहता है। संभव है वह यहां से हट जाए ताकि भारत की शर्मिंदगी कम हो और वह सामरिक दृष्टि से अहम डीबीडीएसओ मार्ग पर कब्जा बनाए रखे।
हमारे पास क्या विकल्प हैं? भारत को सैन्य, सामरिक, कूटनीतिक और आर्थिक हर तरह का दबाव बनाना चाहिए। सन 1986 में पीएलए द्वारा अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू पर कब्जे के बाद भारत ने न केवल वहां फौज जमा की थी बल्कि अरुणाचल को पूर्ण भारतीय राज्य भी घोषित किया था। मौजूदा संकट को हल करने के लिए भारत को चीन के प्रति हालिया वर्षों की नरमी त्यागनी होगी। चीन ने ध्यान दिया होगा कि 2018 की वुहान शिखर बैठक के बाद भारत ने ताइवान, तिब्बत, शिनच्यांग, हॉन्गकॉन्ग को लेकर तथा कोविड-19 के प्रबंधन के बारे में उसकी आलोचना से परहेज किया। 20 जवानों को नृशंस तरीके से मारे जाने के बाद भी चीन के राजदूत को तलब नहीं किया गया। अब अत्यधिक सतर्कता त्यागने का वक्त है।
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