समंदर की गहराई में उतरने का रोमांच और लाभप्रद अभियान | तकनीकी तंत्र | | देवांशु दत्ता / June 17, 2020 | | | | |
गत 7 जून को गहराई तक गोता लगाने वाला वाहन 'लिमिटिंग फैक्टर' धरती के सबसे गहरे स्थान चैलेंजर डीप की तलहटी तक पहुंच गया। डॉ कैथरीन सुलिवन और पूर्व नौसैनिक कमांडर विक्टर वेस्कोवो प्रशांत महासागर में स्थित इस गहरी जगह तक जाने वाले वाहन में सवार थे।
कैथरीन यहां पहुंचने वालीं आठवीं और पहली महिला हैं। 68 साल की भू-विज्ञानी कैथरीन अमेरिका के राष्ट्रीय समुद्री एवं वायुमंडलीय विभाग (नोआ) की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक रहने के अलावा अंतरिक्ष में चहलकदमी करने के साथ ही सबसे गहरे स्थान तक पहुंचने वाली इकलौती शख्स हैं। वह हब्बल टेलीस्कोप टीम की भी सदस्य रही हैं। अंतरिक्ष जाने वालों की तुलना में गहरे समुद्र में उतरने वालों की संख्या कम है। भले ही पानी इस धरती के 70 फीसदी हिस्से पर मौजूद है लेकिन समंदर अब भी चंद्रमा की ही तरह रहस्य बना हुआ है। पांच फीसदी से भी कम समुद्री सतह तक अभी इंसान पहुंच सका है।
गहरे समुद्र का परिवेश कई मायनों में बाह्य अंतरिक्ष की ही तरह चुनौतीपूर्ण है। डुबकी लगाने वाले किसी वाहन पर गहराई में उतरने के साथ ही दबाव बढ़ता जाता है। इससे कृत्रिम श्वास प्रणाली या गोताखोरी वाली पोशाक पर कई तरह की सीमाएं जुड़ी होती हैं। किसी डाइविंग सूट के साथ अधिकतम 600 मीटर गहराई का ही गोता लगाया जा सका है।
गहरे समुद्र तक उतरने वाले वाहन को बेहद मजबूती से बनाया जाना चाहिए क्योंकि उसमें इंसान भी मौजूद होते हैं। इंसानों को पानी के भीषण दबाव में आकर चकनाचूर होने से बचाने के लिए वाहन में वायुमंडलीय दबाव को अधिक रखा जाना चाहिए। चैलेंजर डीप की तलहटी समुद्री स्तर से करीब 11,000 मीटर की गहराई पर है जिससे वहां वायुमंडलीय दबाव समुद्र स्तर के सामान्य दबाव से करीब 1,070 गुना होता है। अगर वायुमंडलीय दबाव में क्रमिक वृद्धि होती है तो शरीर उसे झेल सकता है लेकिन दबाव के तेजी से कम होने पर भी खतरा होता है। खून में हवा के बुलबुले बनने से दर्द होता है और शरीर ऐंठने लगता है जिससे जान भी जा सकती है।
समुद्र की भीतरी दुनिया की व्यवस्थित पड़ताल का काम 19वीं सदी में शुरू हुआ था। दुनिया के सबसे गहरे स्थान चैलेंजर डीप का नामकरण ब्रिटिश नौसैनिक जहाज एचएमएस चैलेंजर के सम्मान में किया गया था। इस जहाज ने 1872-76 के दौरान खोजी अभियान एवं नक्शा बनाने के काम में हिस्सा लिया था। इस सफर में 4,000 से अधिक नई प्रजातियों की खोज हुई थी।
एक वैश्विक टेलीग्राफ व्यवस्था बनाने के लिए समुद्री इलाकों में कई नए अभियान चलाने पड़े क्योंकि केबल समुद्र की सतह पर ही बिछाई जानी थी। विश्व युद्धों के दौरान पनडुब्बियों की तैनाती के लिए नए अभियान चलाए गए। वैसे 21वीं सदी की परमाणु पनडुब्बियां भी आम तौर पर 400-500 मीटर से अधिक गहरा गोता नहीं लगाती हैं।
लेकिन गहरे पानी में गोता लगाने के लिए बने खास वाहन कहीं अधिक गहराई तक जाते हैं। 1930 के दशक में ऐसे ही वाहन बेथिस्फेयर को विलियम बीब और ऑस्कर बार्टन ने बनाया जो 900 मीटर की गहराई तक जा सकता था। इसे एक केबल से जोड़ा गया था ताकि काम खत्म होने के बाद वापस सतह पर खींचा जा सके और भीतर मौजूद लोग बात भी कर सकें। वहीं 1950 के दशक में आगस्त एवं जैक्स पिकार्ड की पिता-पुत्र की जोड़ी ने बेथिस्फेयर ट्रीस्ट नाम के गोता वाहन को डिजाइन किया। अपने इसी वाहन में बैठकर पिकार्ड जूनियर चैलेंजर डीप में 10,911 मीटर की गहराई तक उतरने में सफल रहा था। लेकिन इस गोते में वाहन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था और करीब 10 घंटे के गोते के बाद उसका सतह पर लौटना संयोग की ही बात थी।
गहरा गोता लगाने से जुड़ी मानव की उत्कंठा अब भी रोमांच को जन्म देती है। वर्ष 2012 में फिल्मकार जेम्स कैमरन डीपसी चैलेंजर को चैलेंजर डीप के भीतर 10,908 मीटर गहराई तक ले गए थे। तकनीकी रूप से उन्नत इस वाहन ने वहां पर तीन घंटे बिताए थे और वहां के परिवेश के बारे में कई आंकड़े भी जुटाए। सात मीटर लंबा यह वाहन आइसोफ्लोट नामक हल्के फोम से बना है जिससे यह भारी दबाव का सामना करने के साथ ही तैर सकता है। इसमें थ्रस्टर मोटर लगी हुई थीं जबकि बेथिस्फेयर में बैलेस्ट टैंक होते थे। कैमरन के इस अभियान को नैशनल ज्योग्राफिक और रोलेक्स का समर्थन हासिल था।
अमेरिकी नौसेना के पास एल्विन श्रेणी के गोता वाहन हैं जिनका दोबारा इस्तेमाल भी हो सकता है। करीब 17 टन वजनी एल्विन ने आंकड़े जुटाने के लिए अब तक 5,000 से भी अधिक बार 2,400 मीटर से अधिक गहरे गोते लगाए हैं। इन आंकड़ों के आधार पर करीब 2,000 शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। एक कामयाब निजी इक्विटी निवेशक वेस्कोवो ने बार-बार इस्तेमाल किए जा सकने वाले एक ऐसे ही वाहन लिमिटिंग फैक्टर की फंडिंग में मदद की थी। ऐसे साहसिक अभियानों पर बहुत अधिक लागत आती है। महंगी नौका बनाने के अलावा सतह पर मौजूद रहने वाले जहाज में कुशल चालकदल की तैनाती भी काफी अहम है। हालांकि मानवरहित कृत्रिम मेधा आधारित अज्ञात वाहनों का इस्तेमाल होने पर इस लागत में काफी कमी आ सकती है। ऐसे अभियानों से समुद्री पारिस्थितिकी के बारे में हमारी जानकारी बढ़ती है। समुद्री सतह का नक्शा बनाने और नई प्रजातियों की खोज एवं समुद्री ज्वालामुखी व गर्म जलधाराओं जैसी अवधारणाओं के बारे में भी पता चलता है।
इसके वाणिज्यिक पहलू भी हैं। गहरे समुद्र की सतह में कई दुर्लभ धातुएं एवं खनिज मौजूद हो सकते हैं। समुद्री प्रजातियों के अध्ययन से चिकित्सा एवं जीव विज्ञान को काफी लाभ हुए हैं। समुद्री गतिविधियों के बारे में बेहतर समझ होने से हम मौसम प्रणालियों को भी पहले से बेहतर ढंग से जान पाते हैं और इससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलेगी।
|