तेल विपणन कंपनियों ने सोमवार को एक बार फिर तेल कीमतों में इजाफा कर दिया। करीब 80 दिन के अंतराल के बाद इस महीने जब तेल कीमतों में रोजाना बदलाव की व्यवस्था दोबारा शुरू की गई, तब से यह नौवां अवसर है जब कीमतों में बढ़ोतरी की गई है। 80 दिन की उस अवधि में दो बड़े बदलाव हुए: पहला, वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें मांग में कमी के चलते औंधे मुंह गिर गईं। हालांकि उसके बाद से कीमतें कुछ सुधरीं और अब ये 40 डॉलर प्रति बैरल पर हैं जो सालाना आधार पर पिछले वर्ष की समान अवधि से 40 फीसदी कम है। दूसरा बदलाव था ईंधन करों में इजाफा। सरकार ने शुल्क और उपकर में 10 रुपये तक का इजाफा किया। हालांकि महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों द्वारा मूल्यवर्धित कर में इजाफे को छोड़ दें तो इस बढ़ोतरी का बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ा और इसे तेल विपणन कंपनियों ने वहन किया। अब कच्चे तेल की कीमतों में इजाफे से तेल विपणन कंपनियों का मार्जिन प्रभावित हुआ है और पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में निरंतर इजाफा इसका उदाहरण है।
ईंधन कीमतों में इजाफे के पीछे के बुनियादी तर्क पर सवाल करने की जरूरत नहीं है। बाहरी संवेदनशीलता से निपटने के अलावा जलवायु परिवर्तन से लड़ाई और सरकारी राजस्व तक तमाम ऐसी वजह हैं जिनकी बदौलत भारत में ईंधन करों की दर अधिक है। सरकार व्यापक तौर पर कीमतें ऊंची रखने के लिए जनता का गुस्सा झेलने को भी तैयार है और अन्य प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए वह ईंधन राजस्व पर निर्भर है। ईंधन कीमतों में हालिया इजाफे से सरकारी खजाने में 1.2 लाख करोड़ रुपये से लेकर 1.7 लाख करोड़ रुपये तक की राशि आएगी। सरकारी खजाना वस्तु एवं सेवा कर के कमजोर प्रदर्शन के चलते राजस्व की भारी कमी से जूझ रहा है। ऐसे में यह राहत भरी खबर है। बहरहाल, प्रक्रिया को लेकर कुछ सवाल जरूर पूछे जाने चाहिए। मसलन तेल विपणन कंपनियां कार्टेल जैसा व्यवहार कर रही हैं जो स्वीकार्य नहीं है। यदि सरकारी तेल विपणन कंपनियां समुचित वाणिज्यिक कंपनी होतीं और तेल कीमतें सही मायने में नियंत्रण मुक्त तथा राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर होतीं तो तेल कीमतों में अलग-अलग समय पर अलग-अलग तरह से इजाफा होता। आखिर बाजार तो इसी तरह काम करता है।
कीमतों में पारदर्शिता का सवाल एक बड़ा सवाल है। तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओएनजीसी) का कहना है कि सरकार ने उसे 45 डॉलर प्रति बैरल मूल्य को लेकर आश्वस्त किया है। इसके अलावा सरकार के कुछ भुगतान की माफी की बात भी कही गई है। यह ओएनजीसी के लिए फायदेमंद हो सकता है लेकिन इसके पीछे कोई आर्थिक तर्क नहीं दिखता। देश में ईंधन बाजार पूरी तरह नियंत्रण मुक्त होना चाहिए। कुछ सुधार किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए आयात समता मूल्य की जगह व्यापार समता मूल्य हो सकता है क्योंकि भारत परिशोधित ईंधन का निर्यातक तथा कच्चे तेल का आयातक है। खुदरा कारेाबारियों को यह इजाजत होनी चाहिए कि वे विभिन्न रिफाइनरियों से तेल खरीद सकें। यदि रिफाइनरी मूल्य पारदर्शी हों तो इससे खुदरा कारोबारियों को चयन करने में आसानी होगी और यह सुनिश्चित हो सकेगा कि बाजार के संकेत आपूर्ति शृंखला में विभिन्न कंपनियों तक पहुंचें। सरकारी रिफाइनरियों को निजी क्षेत्र की रिफाइनरियों के साथ-साथ एक दूसरे से भी प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए। यही दलील तेल उत्पादन कंपनियों पर भी लागू होती है। यदि ऐसा हो तो देश का ऊर्जा क्षेत्र प्रतिस्पर्धी होगा। तब सरकार पारदर्शी ढंग से कर भी लगा सकेगी और ईंधन करों से लाभान्वित भी हो सकेगी।a
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