केंद्र का गैर मोटर वाहनों पर जोर | मेघा मनचंदा / नई दिल्ली June 12, 2020 | | | | |
कोविड-19 के प्रसार को देखते हुए केंद्र सरकार परिवहन सुविधाओं को लेकर धीरे धीरे छूट दे रही है। ऐसे में देश भर में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत पड़ रही है। केंद्र सरकार ने राज्यों, शहरों और मेट्रो रेल कंपनियों से कहा है कि वे गैर मोटर वाले परिवहन को बढ़ावा दें।
इसका मकसद परिवहन के परंपरागत साधनों पर दबाव कम करना और सार्वजनिक परिवहन की भीड़ कम करना है, जिससे कि यात्रियों का जोखिम कम किया जा सके।
आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय ने शुक्रवार को राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों, शहरों और मेट्रो रेल कंपनियों को परामर्श जारी कर सुझाव दिया है कि चरणबद्ध तरीके से कम अवधि के लिए 6 माह, मध्यम अवधि के लिए एक साल और दीर्घावधि के लिए 1 से 3 साल के लिए रणनीति अपनाई जा सकती है। केंद्र ने राज्यों से कहा है कि गैर मोटर वाहनोंं जैसे साइकिल और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाए। दोनों ही पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्रदूषण का जोखिम करम करने में मदद कर सकते हैं। इन माध्यमों से लोगों को सार्वजनिक परिवहन से दूर किया जा सकता है।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया है, 'शहरों की रोजमर्रा की ज्यादातर यात्राएं 5 किलोमीटर से कम होती हैं। ऐसे में कोविड के संकट के दौर में गैर मोटर वाले वाहन उचित अवसर प्रदान करते हैं, जिसमें लागत कम लगती है और मानव संसाधन का कम इस्तेमाल होता है। साथ ही इसे लागू करना भी आसान है और यह तकीका पर्यावरण के अनुकूल है।' बहरहाल इसके लिए समर्पित लेन बनाए जाने की जरूरत है, जो कम अवधि में नहीं बनाया जा सकता है।
इस रणनीति में मेट्रो शहरों में भीड़ कम करने और आवाजाही के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्प देने का लक्ष्य शामिल है। बेंगलूरु मेट्रोपोलिटन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक सी शिखा के मुताबिक सुरक्षा को लेकर जागरूकता बढ़ाना और प्रोटोकॉल को लागू करना अहम है, जिससे कि यात्रियों का भरोसा जीता जा सके। देश मेंं सबसे ज्यादा ट्रैफिक जाम बेंगलूरु और मुंबई में होता है और निजी वाहनों पर और ज्यादा जोर पडऩे से सड़कों पर भीड़ और बढ़ेगी। सार्वजनिक परिवहन पर हाल ही में आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि कॉर्पोरेशन ने बहुत तेज एसओपी तैयार किया है, जिसका वह पालन कर रहा है और लोगोंं के बीच जागरूकता बढ़ाने पर काम किया जा रहा है। शहरों के लिए क्यूआर कोड के साथ डिजिटल ट्रैकिंग व्यवस्था अनिवार्य होगी। 5 जून तक आंकड़ों के मुताबिक कॉर्पोरेशन की 50 प्रतिशत बसें इस मॉडल पर चल रही थीं।
शहरी विकास मंत्रालय की ओर से कराए गए कुछ अध्ययनों के मुताबिक ऐसा पाया गया है कि करीब 16-57 प्रतिशत शहरी यात्री पैदल यात्रा करते हैं और करीब 30-40 प्रतिशतत यात्री साइकिल का इस्तेमाल करते हैं, जो शहर के आकार पर निर्भर है।
इसमें कहा गया है कि सरकार इसे एक अवसर के रूप में देख रही है और परिवहन के इन मॉडलों को प्राथमिकता देगी। सिके अलावा यात्रियों को एक स्वच्छ, सुरक्षित और परिवहन का एकीकृत साधन मिल सकेगा।
देश के 18 प्रमुख शहरों में 700 किलोमीटर मेट्रो रेल और 11 शहरों में 450 किलोमीटर के करीब बस रैपिट ट्रांसपोर्ट (बीआरटी) नेटवर्क है, जिससे 1 करोड़ यात्री रोजाना यात्रा करते हैं। बहरहाल शारीरिक दूरी के मानकों के कारण क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा है और ये साधन इस समय 25 से 50 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहे हैं। बयान में कहा गया है, 'इस तरह के नाटकीय और तेज बदलाव में मांग और आपूर्ति की व्यवस्था के मुताबिक बदलाव कर यातायात के वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराने की जरूरत है।' जहां तक परिवहन के विभिन्न साधनों को जोडऩे का सवाल है, दिल्ली मेट्रो ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं, जिनमें कॉमन मोबिलिटी कार्ड जारी करना शामिल है।
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