शहरों की झुग्गियों में खतरा ज्यादा | |
रुचिका चित्रवंशी / 06 11, 2020 | | | | |
देश की आम आबादी में कोविड ऐंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाने के लिए कराए गए देश के पहले सेरोलॉजिकल सर्वेक्षण में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने पाया है कि जांच किए गए लोगों में से 0.73 फीसदी लोगों में संक्रमण का असर दिखाई पड़ा है। इसके अलावा इस सर्वेक्षण के मुताबिक शहर की झुग्गी-झोपडिय़ों वाली बस्तियों में संक्रमण के फैलने का ज्यादा खतरा मंडरा रहा है।
मई में किए गए सर्वेक्षण के पहले हिस्से के निष्कर्षों को साझा करते हुए आईसीएमआर प्रमुख बलराम भार्गव ने कहा कि नियंत्रण क्षेत्रों (कंटेनमेंट जोन)में संक्रमण ज्यादा तादाद में कई अंतर के साथ पाया गया। उन्होंने कहा कि संक्रमण के लिहाज से संवेदनशील जिलों के कंटेनमेंट जोन में बीमारी के प्रसार का अध्ययन करने के लिए सर्वेक्षण का दूसरा हिस्सा अब भी जारी है। भार्गव ने कहा, 'लॉकडाउन सामुदायिक प्रसार को कम रखने और इसे तेजी से फैलने से रोकने में सफल रहा है। आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी अतिसंवेदनशील है।' आईसीएमआर प्रमुख ने इस बात से इनकार किया कि सामुदायिक प्रसार की स्थिति बन गई है। उन्होंने कहा, 'विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी सामुदायिक प्रसार को परिभाषित नहीं किया है। भारत इतना बड़ा देश है और छोटे जिलों में इसका प्रसार 1 प्रतिशत से भी कम है। यह शहरी क्षेत्र और कंटेनमेंट जोन में थोड़ा अधिक हो सकता है। भारत निश्चित रूप से सामुदायिक प्रसार वाली स्थिति में नहीं है।' आईसीएमआर प्रमुख ने कहा कि बीमारी के प्रसार का अध्ययन करने के लिए राज्यों में कई सेरो सर्वे किए जाएंगे और ऐंटीबॉडी का पता लगाने के लिए एलिसा टेस्ट किट राज्यों को उपलब्ध कराई जाएगी।
सेरो सर्वेक्षण का पहला हिस्सा देश के करीब 83 जिलों के 28,595 परिवारों में कराया गया और करीब 26,400 व्यक्तियों के नमूने एकत्र किए गए। रोग के प्रसार के स्तर के आधार पर जिलों को चार श्रेणियों में शून्य, निम्न, मध्यम और उच्च स्तर में बांटा गया था। सर्वेक्षण से पता चलता है कि संक्रमण से होने वाली मृत्यु दर 0.08 प्रतिशत थी। इसमें दिखाया गया कि शहरी क्षेत्रों में यह जोखिम 1.09 गुना ज्यादा है जबकि शहरी झुग्गी वाली बस्तियों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 1.89 गुना ज्यादा जोखिम था।
नीति आयोग के सदस्य और अधिकारप्राप्त समूह 1 के अध्यक्ष वी के पॉल ने कहा, 'सर्वेक्षण में पाया गया है कि 1 प्रतिशत से भी कम संक्रमितों का पाया जाना एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि यह लड़ाई कई महीनों तक जारी रहेगी।'
मई के तीसरे सप्ताह में कराए गए सर्वेक्षण से अप्रैल के अंत के आसपास की स्थिति का अंदाजा मिलता है क्योंकि कोविड ऐंटीबॉडी के शरीर में दिखने में लगभग दो सप्ताह लगते हैं। सेरो सर्वे में व्यक्तियों के एक समूह से रक्त के नमूनों का संग्रह किया जाता है ताकि उनमें कोविड के लिए ऐंटीबॉडी की जांच की जा सके। यदि परीक्षण पॉजिटिव रहता है तो इससे यह संकेत मिलता है कि व्यक्ति पहले संक्रमित हुआ है।
सर्वेक्षण से वैज्ञानिक दिशानिर्देश का अंदाजा भी मिलता है और इससे यह पता चलता है कि कितने प्रतिशत लोग संक्रमित होने के खतरे से गुजर रहे हैं और किन क्षेत्रों में अधिक रोकथाम की कोशिश की आवश्यकता होगी। पहला सेरो सर्वेक्षण राज्य के स्वास्थ्य विभागों, नैशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और डब्ल्यूएचओ के सहयोग से किया गया।
देश में कोविड मामलों की कुल संख्या गुरुवार को 2,86, 579 के स्तर पर पहुंच गई और एक दिन में सबसे अधिक 9,996 नए मामले की पुष्टि हुई और 357 लोगों की मौत हो गई। इस तरह संक्रमण से मरने वालों की कुल तादाद अब 8,102 हो चुकी है। भार्गव ने कहा कि भारत में प्रतिदिन 2 लाख तक जांच कराने की क्षमता बढ़ी है और जांच प्रयोगशालाओं की कुल संख्या बढ़कर 850 हो गई है।
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