मौसमी आपदाओं की सटीक सूचना देने में कैसे कारगर मौसम विभाग | |
संजीव मुखर्जी / 06 10, 2020 | | | | |
यह ज्यादा समय पहले की बात नहीं है जब 2015 में बंबई उच्च न्यायालय ने भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) से जवाब मांगा था कि मुंबई के लिए एक अलग मौसम विभाग का उपखंड बनाया जा सकता है या नहीं और हर 24 घंटे के बजाय हर चार घंटे में मौसम का पूर्वानुमान दिया जाए।
मुंबई में भीषण बाढ़ का सटीक आकलन नहीं किए जाने की वजह से जानमाल का नुकसान हुआ जिस पर अधिवक्ता अटल दुबे की एक जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह और न्यायमूर्ति अनिल मेनन के खंडपीठ ने सुनवाई की। इस सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा, 'आईएमडी कहता है कि 2006 में इस्तेमाल की गई प्रणाली का इस्तेमाल आज भी जारी है। हम आईएमडी को जून से सितंबर तक मॉनसून के दौरान हर चार घंटे में मौसम पूर्वानुमान जारी करने पर विचार करने का निर्देश देते हैं।' अदालत ने यह भी कहा कि आईएमडी और अन्य अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी है।
खंडपीठ ने कहा, 'आयोग ने आपदा प्रबंधन एजेंसी की भूमिका के बारे में बताया है। चूंकि मुंबई में आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ के अध्यक्ष नगर आयुक्त हैं इसलिए हमने उन्हें एक रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया है जिससे यह संकेत मिले कि आयोग की सिफारिशों को बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने स्वीकार कर लिया और लागू किया।'
कोर्ट के आदेश से कुछ हद तक दबाव बढ़ा। मौसम विभाग की त्रुटियों और एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी से मौसमी घटनाओं के प्रभावों को कम करने में कोई मदद नहीं मिली। यहां तक कि अगर कोई सटीक पूर्वानुमान भी लगा लिया जाता था उसके बावजूद भी जानमाल का व्यापक नुकसान हुआ क्योंकि जमीन स्तर की तैयारी अपर्याप्त थी और ऐसे में पूर्वानुमान भी अप्रासंगिक ही रहे। लेकिन भारत के पूर्व और पश्चिमी तट पर हाल के चक्रवातों अम्फन और निसर्ग का भारतीय मौसम विभाग ने जिस तरह पूर्वानुमान लगाया और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी (एनडीएमए) के साथ समन्वय किया उसकी सटीकता देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में अविश्वसनीय पूर्वानुमान और मौसमी आपदाओं से होने वाले जिंदगी के नुकसान की बात गुजरे जमाने की बात हो सकती है।
आखिर यह सब कैसे हुआ है? क्या है आईएमडी पिछले कुछ सालों में अलग कर रहा है जो यह पहले नहीं कर रहा था?
आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र कहते हैं कि जिस तरह एक डॉक्टर किसी बीमारी के होने पर उसका अनुमान लगाने के लिए पैथोलॉजिकल जांच और क्लिनिकल जांच पर निर्भर रहता है उसी तरह एक मौसम विज्ञानी को भी एक क्षेत्र के लिए लगभग सटीक पूर्वानुमान पर पहुंचने के लिए ऐसे मॉडल पर निर्भर रहना पड़ता है जिसमें विभिन्न मौसम आकलन शामिल होते हैं और उनकी मदद से ही किसी क्षेत्र का सटीक पूर्वानुमान लगाया जाता है। भारत के ऑब्जर्वेटरी डेटा संग्रह का प्रदर्शन पिछले कुछ सालों में काफी बेहतर हुआ है जिससे सटीक भविष्यवाणी करने में मदद मिलती है जबकि कुछ साल पहले तक ऐसा नहीं था।
अब 20 मौसम मापने वाले चिह्नों और उन्नत मौसम जहाज जो समुद्र की गहराई से डेटा एकत्र करते हैं और इसके साथ-साथ 26 डॉप्लर रडार जो जमीन पर जलवायु की स्थिति की निगरानी करते हैं उससे मौसम विभाग को समुद्र की सतह के तापमान, हवा की गति, उच्च और कम दबाव वाली प्रणालियों से जुड़े पुख्ता डेटा मिल जाते हैं। इसका इस्तेमाल करके चक्रवात, बाढ़ , आंधी, और बिजली जैसी घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करने में आसानी होती है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2013 और 2016 में दो उच्चस्तरीय उन्नत मौसम उपग्रहों, इनसैट-3डी और इनसैट 3डी-आर का प्रक्षेपण किया जिससे मौसम विभाग के ऑब्जर्वेशन वाले डेटा संग्रह की क्षमता बढ़ी है। महापात्र ने कहा, 'इन सभी प्रत्यक्ष और रिमोट सेंसिंग ऑब्जर्वेशन से अर्थव्यवस्था को वर्तमान मौसम प्रणाली का 24 घंटे बेहतर आकलन करने में मदद मिल रही है जिसके माध्यम से कोई उच्च दबाव और कम दबाव वाली प्रणाली, इसकी विशेषताओं, इससे बढऩे आदि का अंदाजा लगा सकता है।'
विभिन्न वेधशालाओं से एकत्र किए गए डेटा को का डिजिटलीकरण किया जाता है और उसकी प्रोसेसिंग करने के बाद उसे लगभग सात संख्यात्मक मौसम भविष्यवाणी मॉडल (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए) में डालकर प्रयोगशालाओं में वैसा वातावरण तैयार किए जाता है। संख्यात्मक मौसम भविष्यवाणी मॉडल गणितीय समीकरणों का एक सेट है जिसका मकसद दी गई जानकारियों के आधार पर प्रयोगशालाओं में वैसा माहौल बनाया जाता है।
अब मौसम विभाग की क्षमता ऐसी है कि उससे हर तीन किमी के लिए मौसम की गंभीर घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
ऑब्जर्वेशन वाले डेटा की प्रोसेसिंग के लिए मौसम विभाग की कंप्यूटिंग क्षमता में काफी सुधार हुआ है क्योंकि इसकी कंप्यूटिंग ताकत पहले के एक टेराफ्लॉप की तुलना में 8.6 टेराफ्लॉप हो गई है। ऑब्जर्वेशनल डेटा को न्यूमेरिकल भविष्यवाणी मॉडल में डाले जाने के के तीन घंटे के भीतर ही आउटपुट मिल जाता है जबकि पहले इसमें 12-14 घंटे लगते थे। मौसम विभाग के साथ ही पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने अपने वैश्विक पूर्वानुमान को मौजूदा 12 किलोमीटर से कम करके पांच किलोमीटर तक सीमित कर दिया है और मौजूदा 26 डॉप्लर रडार में 28 डॉप्लर रडार जोड़ दिया है ताकि बादल गरजने और बिजली कड़कने जैसी स्थानीय मौसम की घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी भी की जा सके ।
इसमें राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और गृह मंत्रालय के बीच त्रिस्तरीय समन्वय तंत्र को और कारगर बनाने के साथ ही जानमान माल के नुकसान को कम करने के लिए राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र और जिला आपदा प्रबंधन अधिकारियों के साथ भी समन्वय की योजना है।
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