लॉकडाउन में ढील से दिल्ली में बाजार खुले मगर कारोबार ठप | |
रामवीर सिंह गुर्जर / नई दिल्ली 06 09, 2020 | | | | |
कोरोनावायरस ने तो बाजारों की कमर तोड़ी ही थी, ग्राहकों की बेरुखी ने कारोबारियों पर दोहरी मार कर दी है। राजधानी दिल्ली के कारोबारियों को उम्मीद थी कि दो महीने से खरीदारी रोककर बैठे ग्राहक बाजार के ताले खुलते ही उमड़ पड़ेंगे मगर उन्हें मायूसी ही हाथ लगी। स्थानीय ग्राहक वायरस के डर से भीड़भाड़ वाले बाजारों में जाने से कतरा रहे हैं और दिल्ली की सीमा सील होने की वजह से दूसरे राज्यों के खरीदार भी अब तक नहीं आ पा रहे थे।
दिल्ली के बाजारों में रोजाना करीब 5 लाख कारोबारी बाहर से आते हैं। कारोबारियों को आस है कि इस हफ्ते सीमा खुलने के बाद सूरत कुछ बेहतर होगी।
चांदनी चौक और पुरानी दिल्ली के थोक बाजारों से देश भर में माल जाता है। लेकिन चांदनी चौक सर्वव्यापार मंडल के महासचिव संजय भार्गव ने बताया कि बाजार पूरी तरह खुलने के हफ्ते भर बाद भी चांदनी चौक में 10-15 फीसदी कारोबार ही हो रहा है और ग्राहक बेहद जरूरत होने पर ही आ रहे हैं। दिल्ली हिंदुस्तानी मर्केंटाइल एसोसिएशन के अध्यक्ष और कपडा कारोबारी अरुण सिंघानिया ने बताया कि सीमा सील होने की वजह से दूसरे राज्यों के कारोबारी थोक खरीद करने आ ही नहीं पाए। खरीदार ही नहीं इन बाजारों में काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारी भी पड़ोसी राज्यों के नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद जैसे सीमावर्ती शहरों से आते हैं, जो सीमा बंद होने के कारण आ नहीं पा रहे थे।
खरीदारों की किल्लत ही कारोबारियों की इकलौती परेशानी नहीं है। माल ढोने के लिए मजदूर नहीं हैं, पिछला भुगतान अटका है, सदर बाजार जैसे बड़े बाजार खुले नहीं हैं, जिनकी वजह से छोटे-बड़े कारोबारी परेशानी में फंसे हैं। भारतीय उद्योग व्यापार मंडल की दिल्ली इकाई के महामंत्री और खाद्य तेल कारोबारी हेमंत गुप्ता को दिल्ली से दिहाड़ी मजदूरों के जाने का बहुत मलाल है क्योंकि उन्हे माल की लदाई-उतराई के लिए मजदूर ही नहीं मिल रहे। लॉकडाउन के कारण होटल-रेस्तरां बंद होने और शादियां न के बराबर होने के कारण तेल की मांग यूं भी आधी ही रह गई है।
कश्मीरी गेट जैसे वाहन पुर्जों के बाजार भी मजदूरों की किल्लत से जूझ रहे हैं। ऑटोमोटिव पाट्र्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष विष्णु भार्गव ने बताया कि ज्यादातर के पास बड़े ऑर्डर ही नहीं हैं और जिनके पास हैं, उनके पास माल पहुंचाने के लिए मजदूर नहीं हैं। भार्गव को आम तौर पर 30 मजदूरों की जरूरत पड़ती है मगर इस समय 10 मजदूर ही हैं।
कारोबारियों पर पैसा फंसने की आफत भी टूटी है। भार्गव ने बताया कि माल 15 से 60 दिन की उधारी पर बेचा जाता है। लॉकडाउन से पहले भेजे गए माल का भुगतान अटका है और अगर पुराने खरीदार को अब माल उधारी पर नहीं दिया तो पुराना पैसा अटकने का डर है। लेकिन कारोबारियों की दुविधा यह है कि नया माल उधारी पर दिया तो नया भुगतान भी फंसने का खटका है क्योंकि फौरन भुगतान के लिए किसी के पास पैसे ही नहीं हैं। ऑल दिल्ली कंप्यूटर ट्रेडर्स एसोसिएशन के महासचिव स्वर्ण सिंह ने बताया कि बाजार में महज 20 फीसदी कारोबार रह जाने से क्रेडिट लाइन भी गड़बड़ा गई है।
सदर बाजार के कारोबारी सौरभ बवेजा ने बताया कि बाजार का रिहायशी इलाका कंटेनमेंट जोन घोषित है, लेकिन दुकानें खोलने की इजाजत भी नहीं है। इसलिए पूरा बाजार बंद है, जिसकी गाज कारोबारियों पर ही पड़ रही है। तिस पर कोरोनावायरस के लगातार बढ़ते मामले दोबारा बाजार बंद होने की आशंका पैदा कर रहे हैं।
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