अगर बैंक सुधार चाहते हैं तो आईबीसी विकल्प नहीं | रुचिका चित्रावंशी / June 08, 2020 | | | | |
बीएस बातचीत
कंपनियों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया 6 महीने तक टाले जाने के बाद भी भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के पास मौजूदा मामलों का अंबार लगा हुआ है और वह एमएसएमई के लिए एक विशेष रूपरेखा तैयार कर रहा है तथा व्यक्तिगत दिवालिया प्रक्रिया पर अमल कर रहा है। आईबीबीआई के चेयरमैन एम एस साहू ने रुचिका चित्रावंशी के साथ एक ईमेल साक्षात्कार में कहा कि आईबीसी का सही तरीके से इस्तेमाल इसके दायरे में सभी को लाने से परहेज करना है। इसे 6 महीने तक टाले जाने से बैंकों को इस संहिता से अलग नए विकल्प तलाशने में मदद मिलेगी। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
इस संहिता में नए बदलावों से आईबीबीआई का योगदान क्या रहेगा और मुख्य प्राथमिकताएं क्या होंगी?
हम काफी हद तक व्यस्त हैं। नियमित चर्चाओं के अलावा, हमारी प्राथमिकता में त्वरित कदम उठाना शामिल होगा, क्योंकि कोविड-19 से अलग परिवेश सामने आया है और सामान्य की नई परिभाषा के साथ व्यवस्था को पुन: संयोजित करने की जरूरत होगी। इससे सरकार को धारा 240ए के तहत एमएसएमई के लिए विशेष दिवालिया समाधान ढांचा और व्यक्तिगत दिवालियापन से संबंधित संहिता का भाग-3 क्रियान्वित करने जैसे प्रस्तावों के लिए नए विकल्प तलाशने में मदद मिलेगी।
क्या आप मानते हैं कि आईबीसी के टलने से खासकर इरादतन चूक करने वालों के मामले में लेनदारों पर प्रभाव पड़ेगा?
इससे बेहद कम समय के दौरान पैदा होने वाले चूक के मामलों के संबंध में ऋणदाताओं के अधिकार प्रभावित हुए हैं। और यह उनके हित में है। इसके अलावा वित्त मंत्री ने यह भी संकेत दिया है कि एमएसएमई के लिए एक विशेष समाधान ढांचा उपलब्ध कराया जाएगा, जिसमें एमएसएमई की संशोधित परिभाषा के साथ सभी कंपनियों के एक बड़े हिस्से को शामिल किया जाएगा। किसी भी चूक के मामले में, बैंकों के लिए मौजूद विकल्पों की सूची काफी बड़ी है। अगर वे सुधार प्रक्रिया पर आगे बढऩे को इच्छुक हैं तो आईबीसी उनके लिए विकल्प नहीं है। देनदारों और लेदनदारों को इस चुनौतीपूर्ण समय में नए विकल्प तलाशने होंगे।
यदि अन्य विकल्प काम करता है तो उससे आईबीसी पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
आईबीसी निश्चित तौर पर बैंक के लिए पहला विकल्प नहीं है, हालांकि यह आईबीसी-पूर्व की रिकवरी दर और समय-सीमा के मुकाबले वसूली के नजरिये से प्रभावी है। जैसा कि मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि आईबीसी का इस्तेमाल सभी के लिए उचित नहीं है। इसलिए कोविड संबंधित चूक की वजह से इस संहिता की कुछ धाराओं को टाले जाने से ऋणदाताओं और बकाएदारों के बीच अलग तौर पर अनौपचारिक या औपचारिक तालमेल को गति मिलेगी।
क्या यह छूट उन कंपनियों के लिए है जिन्होंने 25 मार्च से पहले कॉरपोरेट गारंटी नहीं दी और और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं कर सकीं?
आईबीसी कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ धारा 7, 9 या 10 के तहत दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत में सक्षम बनाती है, चाहे वह मुख्य उधारकर्ता हो या डिफॉल्ट पर कॉरपोरेट गारंटर। यदि चूक 25 मार्च, 2020 से पहले हुई हो तो दिवालिया प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। लेकिन ऐसी स्थिति में दिवालिया प्रक्रिया शुरू किए जाने से पहले मौजूदा हालात, अंतर्निहित वैल्यू, और संभावित परिणाम आदि पर विचार करने की जरूरत होगी।
धारा 10 के निलंबन के बारे में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
इस संहिता की एक मुख्य विशेषता है कि यह सभी हितधारकों के अधिकारों और हितों को संतुलित करती है। यदि सिर्फ देनदार को दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार हो तो इससे असंतुलन पैदा होता है, जबकि लेनदार के मामले में ऐसा नहीं है। इसके बावजूद, चाहे कर्जदार पहल करे या लेनदार प्रक्रिया को शुरू करे, परिणाम समान है, जो स्वीकार्य नहीं है। कंपनियों का अस्तित्व बचाना इस संहिता का मुख्य उद्देश्य होने की वजह से इसका इस्तेमाल उनके असमय पतन के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
संहिता के टलने का इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनलों, मूल्य आकलनकर्ताओं पर क्या प्रभाव पड़ा है?
इसका कार्य की उपलब्धता के संदर्भ में कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। कॉरपोरेट दिवालया के लिए 10,000 से ज्यादा आवेदन स्वीकारोक्ति के चरण में संबद्घ प्राधिकरण के पास लंबित हैं। मौजूदा समय में 2,000 से ज्यादा चालू कॉरपोरेट दिवालिया प्रक्रियाएं, 1,000 से ज्यादा मौजूदा कॉरपोरेट परिसमापन के मामले, और 500 से ज्यादा स्वेच्छिक परिसमापन के मामले हैं। एमएसएमई के लिए विशेष समाधान ढांचा आ रहा है। व्यक्तिगत दिवालिया प्रक्रिया से संबंधित प्रावधानों पर काम शुरू हो गया है। इसके अलावा, इन प्रोफेशनल के लिए इस संहिता से अलग पुनर्गठन और मूल्यांकन सेवाओं के लिए अच्छी मांग देखी गई है।
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