पिछली घोषणाओं पर सही अमल और नए उपाय हों | प्रांजुल भंडारी / June 08, 2020 | | | | |
असिसी (इटली) के संत फ्रांसिस ने कहा था, 'जो जरूरी है, उससे शुरुआत कीजिए, उसके बाद वह करें जो संभव हो और अचानक आप पाएंगे कि आप असंभव काम कर रहे हैं। कोविड-19 से पैदा आर्थिक संकट के कारण अब तक केंद्रीय बैंक तीन और केंद्र सरकार दो नीतिगत कदम उठा चुकी हैं। विभिन्न कदमों को लेकर चर्चा और उनकी घोषणा हो चुकी है। लेकिन कुछ और कदमों को लागू करने और परखने की जरूरत है। हम यहां उन कदमों का जिक्र कर रहे हैं, जो आगे उठाए जाने चाहिए।
सबसे पहले अर्थव्यवस्था की समस्याओं पर नजर डालते हैं। भारत की बैलेंस शीट की स्थिति अच्छी नहीं है। भारत के कॉरपोरेट जगत का इक्विटी के मुकाबले कर्ज का अनुपात बढ़ रहा है और यह क्षेत्र के अन्य देशों के कंपनी जगत की तुलना में अधिक है। देश के बैंकों में फंसा ऋण पहले ही अधिक है, जिसमें आगे और बढ़ोतरी के आसार हैं। एनबीएफसी को भी इन्हीं दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है मगर उनकी दिक्कतें नकदी की किल्लत के कारण दोगुनी हो गई हैं। यहां तक कि उपभोक्ताओं के भी ऐसे समय में और कर्ज लेने के आसार नहीं हैं, जब नौकरियों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। इन उपभोक्ताओं के खर्च में ऋण की बदौलत बढ़ोतरी हो रही है और वे वृद्धि में अहम योगदान दे रहे हैं।
सरकार की राजकोषीय स्थिति खराब है। अब तक घोषित छोटे राजकोषीय प्रोत्साहन से ही सार्वजनिक क्षेत्र की उधारी बढ़कर जीडीपी की 13 फीसदी और सरकारी कर्ज जीडीपी का 80 फीसदी होने का अनुमान है। ये दोनों ही कई वर्षों के ऊंचे स्तरों पर हैं। कंपनियां और उपभोक्ता मदद देने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को इस समस्या से पार पाने के लिए खर्च करना पड़ेगा। उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा खर्च की जाने वाली राशि जरूरतमंद क्षेत्रों तक पहुंचे। ऐसे में व्यक्ति को मौजूदा हालात में क्या करना चाहिए? हमारे चारों तरफ बनी अनिश्चितता में मध्य युग के संन्यासी और पारिस्थितिकी संरक्षक असिसी के संत फ्रांसिस के शब्द विशेष रूप से उपयोगी हैं। उनका 800 साल पहले का संदेश आज भी प्रासंगिक है।
कोई व्यक्ति यह तर्क दे सकता है कि उन्होंने जिन 'आवश्यक' कदमों का जिक्र किया, वे उठाए जाने शुरू हो गए हैं। ऐसा लगता है कि बुनियादी न्यूनतम राहत दे दी गई है। उदाहरण के लिए प्रभावितों को मुफ्त अनाज एवं नकद हस्तांतरण और लघु कंपनियों को आंशिक ऋण गारंटी। लेकिन फिर भी सरकार के पैकेज ने उम्मीदें पूरी नहीं कीं। इसमें लघु अवधि में मांग बढ़ाने के उपायों के बजाय मध्यम अवधि के आपूर्ति पक्ष से जुड़े सुधार उपायों (उदाहरण के लिए कृषि विपणन एवं कोयला खनन) पर ज्यादा जोर दिया गया है। जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर आर्थिक पैकेज के लिए महज जीडीपी के एक फीसदी के बराबर नकदी की जरूरत पड़ेगी क्योंकि इसमें ज्यादातर हिस्सा केंद्रीय बैंक की तरलता, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर निर्भरता और भविष्य की देनदारियों का है।
राजकोषीय घाटा पहले ही काफी ऊंचे स्तर पर है। ऐसे में शायद सुधारों के जरिये मध्यम अवधि में वृद्धि को बढ़ाने की रणनीति बनाई गई है। इससे भविष्य की देनदारी को चुकाने, सरकारी कर्ज कम करने और सकारात्मक माहौल बनाने में मदद मिलेगी। हालांकि इस मोर्चे पर सफलता सुधारों को तेजी से लागू करने पर निर्भर करेगी। मगर बीते वर्षों में सुधार लागू करने का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है।
आरबीआई ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए नीतिगत दरों में कटौती, नकदी डालने और नियमन समेत अपना हरेक काम किया है। बेंचमार्क रीपो दर में 115 आधार अंक (प्रभावी दर 180 आधार अंक) की कटौती गई गई है, बैंकिंग क्षेत्र में भरपूर तरलता (7 लाख करोड़ रुपये से अधिक) है और ऋण मोहलत को फिर बढ़ा दिया गया है। फिर भी क्या भारत ने वे सभी कदम उठाए हैं जो संभव हैं? पहले घोषित उपायों के बेहतर क्रियान्वयन और नए उपाय करने की जरूरत है ताकि उन क्षेत्रों को मदद दी जा सके, जिन पर पिछले चरण में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।
पहले घोषित नीतियों की बेहतर डिजाइन और क्रियान्वयन से ज्यादा लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। लघु उद्यमों को ऋण गारंटी की योजना की प्रक्रिया को आसान बनया जाए और इसे तुरंत लागू किया जाए। सरकार को इसे ऋण के बजाय नकद हस्तांतरण मानना चाहिए। ऋणों के लिए ज्यादा जांच-पड़ताल की जरूरत होती है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो जटिल प्रक्रिया योजना के उद्देश्य को नाकाम बना सकती है।
सरकार गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को 90 दिन के लिए धन मुहैया कराने की गारंटी दे रही है। उसे इस अवधि को बढ़ाने के बारे में विचार करना चाहिए क्योंकि यह अवधि लॉकडाउन खत्म होने के बाद अर्थव्यवस्था को चालू करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।
हालांकि प्रत्यक्ष नकद अंतरण और ग्रामीण रोजगार योजना के लिए आवंटन में बढ़ोतरी हुई है। प्रवासी श्रमिकों तक ये लाभ पहुंचाने के लिए पात्र की पहचान करने में अतिरिक्त खर्च और नीतिगत नवोन्मेष की जरूरत पड़ सकती है।
आरबीआई ने बैंकिंग क्षेत्र को पर्याप्त नकदी मुहैया कराकर काबिले तारीफ काम किया है। अगर बैंकिंग क्षेत्र में नकदी और बढ़ती भी है तो केंद्रीय बैंक को चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि इस समय महंगाई सबसे बड़ी चिंता नहीं है। छोटी एनबीएफसी को तरलता मुहैया कराने की योजना बहुत अधिक सफलता नहीं मिली मगर आरबीआई को इसे रद्द नहीं करना चाहिए। इसके बजाय केंद्रीय बैंक को इसे थोड़ा आकर्षक बनाने की कोशिश करनी चाहिए। आरबीआई को बैंकों को सस्ती दरों पर पैसा मुहैया कराना चाहिए ताकि वे एनबीएफसी को धन मुहैया करा सकें। बैंकों की कर्ज चिंताएं कोष की कम लागत से कुछ हद तक कम होंगी। महामारी के बाद वैश्विक आपूर्ति शृंखला में फेरबदल होने के आसार हैं। ऐसे में यदि भारत व्यापार सौदे हासिल करने में सफल रहता है तो आपूर्ति पक्ष से जुड़े सुधारों के प्रयासों का दोहरा फायदा मिल सकता है। मगर इसे अपने सुधारों को रणनीतिक रूप से चुनना होगा। संभवतया भूमि, बिजली और परिवहन क्षेत्र के अत्यंत जरूरी सुधारों को लक्षित किया जाना चाहिए, जहां बदलाव का रुझान पहले से ही बना हुआ है।
इसके बाद अधिकारियों को उन क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए, जिन्हें अभी मदद नहीं मिली है। अब तक घोषित ज्यादातर वित्तीय पैकेज में बैंकों को बिचौलिये के रूप में इस्तेमाल किया गया है। मगर वे खुद ही बैंलेस शीट की चुनौतियों से जूझ रहे हैं और ये चुनौतियां इस साल और विकराल हो सकती हैं। सरकार को तुरंत इन बैंकों में पूंजी डालनी चाहिए, जिसके लिए बड़ी तादाद में बैंक पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड लाए जाने चाहिए। तकनीकी रूप से ये बजट घाटा नहीं बल्कि सरकार के ऋण का हिस्सा हैं। इसलिए राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के प्रयासों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। बैंकों को ऋणों का पुनर्गठन करने की मंजूरी दी जानी चाहिए ताकि ऋणदाता और ऋणी दोनों के लिए स्थितियां आसान हो जाएंगी। अंत में विमानन जैसे क्षेत्रों को नीतिगत मदद दी जानी चाहिए, जिस पर कोविड-19 का लंबे समय तक असर पड़ सकता है। इस क्षेत्र को लंबी अवधि के लिए रियायती धन मुहैया कराने जाने से कुछ मदद मिल सकती है। इसमें से कुछ भी आसान नहीं होगा। मगर 'आवश्यक' को बेहतर तरीके से लागू कर और जो 'संभव' है, उसका दायरा बढ़ाकर भारत महामारी के बाद वृद्धि और नौकरियों को बढ़ाने के उद्देश्य हासिल कर सकता है।
(लेखिका एचएसबीसी सिक्योरिटीज ऐंड कैपिटल मार्केट्स (इंडिया) प्रा. लि. की भारत में मुख्य अर्थशास्त्री हैं)
|