श्रमिकों के लिए आवास | संपादकीय / June 08, 2020 | | | | |
मार्च के अंत में देश में अचानक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू किए जाने से कई प्रवासी श्रमिक अपने घरों से दूर फंस गए। यही वह दौर था जब उन शहरों में रोजगार के अवसर और आमदनी भी ठप हो गई जहां वे काम के लिए गए थे।
स्वाभाविक तौर पर उनमें से कई ने अपने घरों को वापस लौटने का प्रयास किया। सामान्य परिवहन बंद होने के कारण उनमें से कई पैदल ही अपने घरों की ओर लौटने लगे। जबकि तमाम अन्य बेहद बुरी परिस्थितियों में रहने को मजबूर थे। अब यह चिंता बढ़ रही है कि इन खराब हालात में जब अर्थव्यवस्था और संकटग्रस्त हो रही है, शायद प्रवासी श्रमिक अपने घरों में ही बने रहें।
इससे व्यापक अर्थव्यवस्था को करारा झटका लग सकता है क्योंकि उसमें ऐसे अंशकालिक श्रमिकों की अहम भूमिका है। ये वृद्धि और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। कोविड के बाद के भारत में इन श्रमिकों के लिए इंतजाम करने होंगे। शायद ऐसी व्यवस्था करनी होगी ताकि इन्हें बार-बार पलायन न करना पड़े।
एक संभावना यह प्रयास करने की हो सकती है कि इन प्रवासी श्रमिकों के घरों के आसपास गैर कृषि रोजगार मुहैया कराया जाए। इसके लिए देश के सर्वाधिक कम विकसित इलाकों में जबरदस्त बुनियादी विकास की आवश्यकता हो सकती है। अगर ऐसा हो सका तो यह सबके लिए अच्छा होगा। श्रमिकों की जीवन जीने की लागत कम होगी और ग्रामीण इलाकों में वेतन सुधरेगा। बड़े शहरों और औद्योगिक केंद्रों के कारखानों को भी प्रवासी श्रमिकों को अपने यहां आकर्षित करने के लिए उनके वेतन भत्ते सुधारने होंगे।
इसके बावजूद यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि हम रोजगार निर्माण की क्लस्टर व्यवस्था को किस हद तक दूर कर पाते हैं। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में ऐसी व्यवस्थाएं आम तौर पर दिखती हैं और भारत जैसे बड़े और क्षेत्रीय असमानता वाले देशों में यह आम है।
ज्यादा बेहतर यह होगा कि सरकार निजी क्षेत्र के साथ मिलकर प्रवास की प्रक्रिया को सहज बनाने का काम करे। दुनिया भर में ऐसी व्यवस्थाएं हैं जिनका परीक्षण करके इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं। ऐसा ही एक कदम है शयनकक्ष नुमा आवासीय व्यवस्था तैयार करना और उसका प्रबंधन करना। इसे सस्ते और पहले से बने सामान के सहारे एक मानक डिजाइन में तैयार किया जा सकता है ताकि इसे शीघ्र तैयार किया जा सके और यह श्रमिकों के काम का हो। इस आवासीय व्यवस्था में साफ-सफाई, गर्म भोजन और शुल्क आधारित सामुदायिक सेवा मसलन स्वास्थ्य केंद्र आदि शामिल किए जा सकते हैं। यह चीन के मॉडल के तर्ज पर हो सकता है जहां नियोक्ता कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए ऐसी व्यवस्था बनाते हैं। सरकार को यह खुद करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि वह अनुबंध के द्वारा इसे पूरा कर सकती है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां मसलन एनबीसीसी आदि की मदद ली जा सकती है। मुंबई में जिस समय मिलें बहुतायत में होती थीं उस समय कई कपड़ा मिल मालिकों ने कर्मचारियों के लिए खुद चॉल बनवाई हैं।
ये प्रयास जीवन गुणवत्ता के मामले में अलग-अलग थे। आज की परिस्थितियों में जोर इस बात पर होना चाहिए कि प्रवासी श्रमिकों को बेहतर सुविधाएं मिलें। कुछ निजी जगह, सुरक्षा की दृष्टि से लॉकर और कुछ सार्वजनिक सुविधाएं आवश्यक हैं। अनुबंधित श्रमिकों वाले बड़े कारोबार शुरुआती पूंजी लागत के लिए कुछ अधिभार लगा सकते हैं या इनका उपयोग करने वाले हर कर्मचारी से कुछ किराया ले सकते हैं। सरकार के राहत पैकेज में किराये की आवासीय सुविधाओं जैसी कुछ घोषणाएं की गई हैं।
बहरहाल, जोर इस बात पर होना चाहिए कि वापस आने वाले श्रमिकों को शहरीकरण की राह मुहैया कराई जा सके।
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