ग्रामीण मांग बढ़ाने के लिए किसानों की आमदनी में इजाफा जरूरी | खेती-बाड़ी | | सुरिंदर सूद / June 07, 2020 | | | | |
जिस समय देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है, उस समय कोविड-19 संकट से पैदा हुए आर्थिक संकुचन के दौर में कृषि ही अकेला ऐसा प्रमुख क्षेत्र है जिसने इससे जूझने का पूरा माद्दा दिखाया है। जहां दूसरे क्षेत्रों में गतिविधियां सामान्य होने में वक्त लगने की संभावना है, वहीं कृषि क्षेत्र निर्बाध बढ़ता हुआ नजर आ रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं।
खरीफ-पूर्व फसलों यानी जायद सीजन का रकबा इस साल 35 फीसदी से भी अधिक बढ़ गया है। पिछले साल मॉनसून के देर तक सक्रिय रहने और 10 फीसदी अधिक बारिश होने से मिट्टी में खासी नमी बची रहने से जायद फसलें बढ़ी हैं। इसके अलावा इस साल मॉनसून से पहले अच्छी बारिश होने और मॉनसूनी बारिश के 100 फीसदी सामान्य रहने के अनुमान खरीफ की पैदावार अच्छा रहने का भरोसा भी पैदा कर रहे हैं। देश के 123 प्रमुख जलाशयों में जमा पानी पिछले साल की समान अवधि के स्तर से 70 फीसदी अधिक और 28 मई की स्थिति के लिहाज से 67 फीसदी अधिक है। इस खरीफ सीजन में बीजों की 20 फीसदी अधिक बिक्री और पांच फीसदी अधिक उर्वरक उठान होने से भी भरोसा बढ़ता है।
हालांकि इस तस्वीर का एक दूसरा पक्ष भी है। लॉकडाउन की पाबंदियों से दी गई तमाम रियायतों के बावजूद कृषि क्षेत्र कोविड-19 महामारी के असर से पूरी तरह अछूता नहीं रहा है। श्रमिकों के उलट प्रवास के प्रभाव और आवाजाही एवं लॉजिस्टिक में बने गतिरोधों ने रबी फसलों की कटाई एवं उनकी बिक्री पर गहरा असर डाला है और यह सिलसिला खरीफ मौसम में भी जारी रहने की आशंका है।
किसान पिछले रबी मौसम में कृषि शोध संस्थानों की समय पर दी गई सलाहों और केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दिखाई गई तत्परता की वजह से इन बाधाओं से पार पा सके। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों एवं अन्य संस्थानों ने किसानों की मदद के लिए हजारों सुझाव एवं अलर्ट जारी किए थे।
फसल उत्पादकों के काम करने के तौर-तरीकों में बदलाव लाने और खेतों एवं बाजारों में बरते जाने वाली जरूरी एहतियात के बारे में अवगत कराने के लिए व्हाट्सऐप समेत सोशल मीडिया और जनसंचार माध्यमों का बखूबी इस्तेमाल किया गया।
खासकर आईसीएआर खरीफ के आगामी सीजन के लिए एक बार फिर सुझावों का पुलिंदा लेकर आया है। इसकी शुरुआत मॉनसून के दस्तक देने के साथ ही हो रही है। राज्य-विशेष के आधार पर खेती, पशुपालन, मत्स्यपालन एवं अन्य कृषि गतिविधियों से संबंधित सुझाव आईसीएआर की तरफ से दिए जा रहे हैं। सूचना एवं संचार के सभी साधनों का इस्तेमाल करते हुए किसानों एवं पशुपालकों को समझ में आने वाली स्थानीय भाषाओं में ये सुझाव तैयार किए गए हैं।
इस बार जोर बीजों एवं पौधों के पोषक तत्त्वों समेत उपलब्ध संसाधनों के प्रभावी इस्तेमाल और कीटनाशकों, बीमारियों एवं खरपतवार की वजह से फसलों को होने वाले नुकसान को न्यूनतम करने के कम लागत वाले तरीके सुझाने पर है। श्रमिकों और खेती के लिए जरूरी वस्तुओं की उपलब्धता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए किसानों को खेती कार्यों में मशीनों के अधिक इस्तेमाल और जैविक खाद जैसे खुद तैयार किए जा सकने वाले इनपुट पर यकीन करने को कहा जा रहा है। जहां तक रासायनिक उर्वरक का सवाल है तो किसान धान के खेत में फॉस्फोरस के छिड़काव से परहेज कर सकते हैं अगर पिछली फसल में उस खेत में यह उर्वरक डाली गई हो।
अधिकतर छोटे एवं सीमांत किसान खेती के लिए काफी हद तक बारिश से होने वाली सिंचाई पर निर्भर रहते हैं। वर्षा जल पर आश्रित खेती में भी फसलों की उपज बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इन इलाकों के किसानों को कम नमी की जरूरत पडऩे वाले और कम अवधि वाली फसलों को चुनने की सलाह दी गई है ताकि वर्षा जल को संरक्षित रखा जा सके। इसके अलावा उन्हें मिश्रित खेती अपनाने को भी कहा गया है। ऐसा करने से मॉनसून से जुड़े जोखिम कम करने में मदद मिलेगी।
हालात के हिसाब से फसलों एवं उनकी किस्मों का चयन, अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों की खरीद और समय पर बुआई करने को अच्छी उपज के मूल मंत्र माना जाता है। पश्चिमोत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और आसपास के इलाके) के किसान स्थानीय मजदूरों में धान के पौध लगाने के लिए जरूरी कौशल न होने से सीधे बीजों का छिड़काव करने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। इसमें खास तौर पर डिजाइन की गई मशीनों का इस्तेमाल उनके लिए मददगार साबित हो रहा है।
अगर किसानों ने इन सरल तरीकों एवं साधनों पर भी सावधानी से अमल किया तो वे 2020-21 के फसल सत्र में तमाम चुनौतियों के बावजूद अधिक उपज हासिल कर सकते हैं। लेकिन इस उपज का बेहतर मूल्य मिलने से ही किसानों की आय बढ़ पाएगी और उसके लिए कृषि उपज के असरदार, निष्पक्ष एवं पारदर्शी मार्केटिंग की जरूरत होगी। सरकार को कृषि उपज की बेहतर मार्केटिंग सुनिश्चित करने की जरूरत है क्योंकि ऐसा होने पर ही देश के ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ाई जा सकती है। विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों को आगे बढ़ाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से मांग आना बेहद जरूरी है।
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