आयात में कमी लाने के लिए, जैसा कि प्रधानमंत्री ने इच्छा जताई है, चमड़ा उद्योग ने प्रमुख रूप से बुनियादी ढांचे, क्लस्टर निर्माण, अनुकूल नीतियों और छवि में बदलाव की सिफारिशें की हैं। आज चमड़े का लगभग 30-40 प्रतिशत सामान चीन से आयात किया जाता हैं और इसमें मुख्य रूप से जूते होते हैं। प्रधानमंत्री ने हाल ही में ऐसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के रूप में, जहां ठोस प्रयासों के जरिये आयात को कम किया जा सकता है, तीन क्षेत्रों का नाम लिया था -फर्नीचर, एयर कंडीशनर और चमड़ा। सरकार ने आयात में कटौती के लिए 10 क्षेत्रों की पहचान की है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत ने लगभग 1.01 अरब डॉलर मूल्य का चमड़ा और चमड़ उत्पादों का आयात किया है। उद्योग का अनुमान है कि इसमें से लगभग 50 प्रतिशत तैयार उत्पाद हैं और इसमें इजाफा हो रहा है क्योंकि भारत के खुदरा विक्रेता चीन से आयात बढ़ा रहे हैं। चमड़ा निर्यात परिषद (सीएलई) के चेयरमैन अकील पनारुना का कहना है कि कच्चे माल के अलावा भारत कई सामानों का आयात करता है, जैसे जूतों के सोल, पतावे वगैरह। इनका विनिर्माण देश में किया जाना चाहिए। सरकार को चमड़े के और ज्याद पार्क स्थापित करने पर ध्यान देना चाहिए तथा अनुकूल नीतियों से एफडीआई आकर्षित करने की जरूरत है। एमएसएमई की परिभाषा, अलग-अलग भुगतान और सब इंटरवेंशन जैसे हालिया घटनाक्रम ने कुछ उम्मीद जगाई है। उन्होंने कहा कि एक अन्य क्षेत्र जिस पर ध्यान देने की जरूरत है, वह यह है कि भारत आने वाले तैयार उत्पादों के आयात को कैसे कम किया जाए क्योंकि कई भारतीय खुदरा विक्रेता चीन से आपूर्ति कर रहे हैं। फरीदा गु्रप के चेयरमैन और ऑल इंडिया हाइड्स ऐंड स्किन टैनर्स ऐंड मर्चेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रफीक एम अहमद ने कहा कि केवल शुल्क बढ़ाए जाने से ही आयात में कमी नहीं आएगी। पारस्थितिकी तंत्र बनाने और उसे विकसित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए, जैसे चीन में तैयार उत्पादों के लिए किया गया है। इस संबंध में दो प्रमुख चुनौतियां हैं। एक है कीमत और दूसरी है विविधता। जहां भारतीय कंपनियां 10 डॉलर बोलती हैं, तो वहीं चीनी कंपनियां आठ डॉलर बोल रही हैं। आज कोई भारतीय कंपनी किसी खुदरा विक्रेता को केवल कुछेक किस्मों की ही पेशकश कर सकती है, जबकि वह कम मात्रा में 40 किस्मों या डिजाइनों की मांग कर रहा है। चीन ने आपूर्ति का आकर्षक प्रतिमान तैयार किया है। चीन में क्वान्ज्हू को जूतों का शहर कहा जाता है। यह महानगरीय क्षेत्र हर साल 50 करोड़ जोड़ी से अधिक स्नीकरों का निर्माण करता है और चीन के कुल उत्पादन में इसका योगदान एक-चौथाई रहता है। एक ही जगह पर हजारों किस्में उपलब्ध होने की वजह से खुदरा विक्रेता वहां जाते हैं और पसंद करके किसी एजेंसी को पैसे दे देते हैं और उन्हें भारत भेज दिया जाता है। अहमद कहते हैं कि यही वह बात है जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए - डिजाइन, किस्में, कम मात्रा में उपलब्धता और खरीदारों के लिए (चाहे वह घरेलू खरीदार हो या वैश्विक) झंझट रहित अनुभव।सीएलई के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत नॉन-लेदर फुटवियर के संयोजक और क्लक्र्स इंडिया के कार्यकारी निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी एन मोहन का कहना है कि भारत को चीन की तरह पूर्ण रूप से तैयार क्लस्टर और प्रतिमान तैयार करने की जरूरत है। हमें ताइवान की कंपनियों के साथ साझेदारी करनी चाहिए। वियतनाम और बांग्लादेश में उत्पादन केंद्र तैयार करने का श्रेय इन्हीं को जाता है तथा अमेरिका और यूरोप के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने चाहिए। उन्होंने कहा कि हम चर्म उद्योग से फुटवियर तक विकास कर चुके हैं और हमें सब कुछ चमड़े को ध्यान रखकर ही सोचना चाहिए।उन्होंने कहा कि भारत को निर्यात केंद्र बनाने के लिए नॉन-लेदर फुटवियर और देश में उससे संबंधित चीजों की स्थापना पर ध्यान होना चाहिए। अमेरिका और अधिकांश यूरोपीय देश केंद्रिकृत आपूर्ति शृंखलाओं की मार झेल रहे हैं, इसलिए भारत विविधतापूर्णआपूर्ति शृंखला में कम लागत और उच्च गुणवत्ता के अवसर का लाभ उठा सकता है। उत्तर प्रदेश चमड़ा उद्योग संघ (यूपीएलआईए), उन्नाव क्षेत्र के उपाध्यक्ष ताज आलम ने प्रधानमंत्री द्वारा अपने संबोधन में चमड़ा उद्योग को दिए गए बहुप्रतीक्षित और यथोचित महत्त्व की काफी सराहना की है जो न केवल देश के लिए शीर्ष पांच विदेशी मुद्रा अर्जक उद्योगों में से एक है, बल्कि खास तौर पर कोविड-19 के बाद वाले उस दौर में बड़ा रोजगार सृजक भी है जिसमें लाखों मजदूर विस्थापित हो चुके हैं औरनौकरियों की स त जरूरत है। इस श्रम प्रधान चमड़ा क्षेत्र में प्रत्येक 50,000 रुपये के निवेश पर एक नौकरी सृजित की जा सकती है। इसमें महिलाओं समेत समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लोग बड़ी संख्या में कार्यरत हैं। यह समय घरेलू और विदेशी निवेशकों को प्रोत्साहित/आकर्षित करने के लिए कारोबार के अनुकूल उपयुक्त नीतियों की रूपरेखा तैयार करने और गिरते जीडीपी में भारी योगदान देने वाले चमड़ा उद्योग के बहुतप्रतीक्षित विकास को प्रोत्साहित करने का है। आज हमारा चमड़ा निर्यात घटाकर 4.5 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया है, जबकि कुछ साल पहले यह 7.5 अरब डॉलर के स्तर पर था। हम कारोबार सुगमता सहित सभी जरूरी मदद में इजाफा करते हुए और निर्बाध विकास सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण संबंधी अनुपालन के लिए शीघ्रता से सभी सीईटीपी उन्नत करते हुए अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा फिर से प्राप्त कर सकते हैं। कुंभ मेले के दौरान और उसके उपरांत चमड़ा कारखाने और बुचडख़ाने बंद होने के बाद चमड़े के कई खरीदार भारत छोड़कर पड़ोसी देशों का रुख कर चुके हैं क्योंकि उनकी सारी आपूर्ति लगभग एक साल तक ठप-सी पड़ गई थी। सरकार को केवल कम ब्याज दर पर कर्ज ही नहीं, बल्कि एमएसएमसई के लिए अनुदान के रूप में कुछ वास्तविक प्रोत्साहन पर भी विचार करना चाहिए। कर्मचारियों को अप्रैल और मई का वेतन भुगतान ईएसआईसी से किया जाए। बिना कारोबार, बिना उत्पादकता और राजस्व सृजन के बिना कठिन दौर से गुजरने वाले चमड़ा उद्योग पर वेतन भुगतान का बड़ा बोझ रहा है।चमड़े और चमड़ा उत्पादोंके निर्माण के लिए आयातित धात्विक हार्डवेयर, जिपर, सजावटी चीजों और अन्य कच्चे माल की निर्भरता कम करने के लिए हमें औद्योगिक पार्क या आर्थिक क्षेत्र विकसित करते हुए पारिस्थितिक तंत्र बनाने की जरूरत है जिससे एमएसएमई को मदद मिल सके और वे कम दामों पर अच्छी गुणवत्ता वाले सामान का उत्पादन कर सकें।
