कोरोना काल में मीडिया-मनोरंजन जगत की बढ़ती चुनौतियां | मीडिया मंत्र | | वनिता कोहली-खांडेकर / June 05, 2020 | | | | |
थोड़ा सब्र रखिएगा क्योंकि मैं थोड़ी अरुचिकर तुलना करने जा रही हूं। कोरोनावायरस हृदय या गुर्दे के रोगों से ग्रस्त बुजुर्गों पर कहीं अधिक घातक असर डाल रहा है। चिकित्सा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि वायरस से संक्रमित होने के बाद गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों की सेहत बड़ी तेजी से बिगडऩे लगती है और वे मौत के निकट पहुंचने लगते हैं। इस वायरस से पैदा हुई कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव भी इससे मिलते-जुलते हैं। वे कारोबार जो क्रमिक रूप से पतन की राह पर जाते, खुद को तब्दील कर लेते या रणनीतिक गठजोड़ एवं विलय करते या फिर सम्मानजनक रूप से बेच ही दिए जाते, अब वे जिंदगी एवं मौत का फैसला करने वाले फैसलों एवं सौदों के लिए मजबूर हो रहे हैं।
अखबारों ने अपने संस्करणों को बंद कर दिया है, करीब आधे दर्जन टेलीविजन चैनलों का प्रसारण बंद हो गया है, हजारों लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। यह सब 1.82 लाख करोड़ रुपये के बड़े आकार वाले भारतीय मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग पर पड़ रहे आर्थिक प्रभावों का नतीजा है। नोटबंदी ने इस उद्योग को आर्थिक सुस्ती के दौर में घसीटा था और अब कोरोना संकट ने इसे पूरी तरह मंदी के आगोश में ले लिया है।
मुश्किलें बढ़ते ही कई तनावग्रस्त कंपनियां अपनी हिस्सेदारी बेचने या फिर पूरी तरह बिकने के लिए तैयार नजर आएंगी। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, एमेजॉन, ऐपल या इन्फोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसे तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों के पास पैसे हैं। मीडिया एवं दूरसंचार फर्मों के पास न तो इतना बड़ा स्तर है और न ही उनका मुनाफा ही इतना अधिक है कि वे राजस्व गिरने की हालत में भी अपना कारोबार जारी रख सकें।
पिछले हफ्ते यह खबर आई थी कि 162 अरब डॉलर आकार वाली अल्फाबेट (गूगल की मूल कंपनी) वोडाफोन इंडिया में पांच फीसदी हिस्सेदारी पर नजर टिकाए हुए है। इस बीच 71 अरब डॉलर वाली फेसबुक इंक ने रिलायंस के जियो प्लेटफॉर्म में 10 फीसदी हिस्सेदारी 43,574 करोड़ रुपये में ली है। आप यह दलील दे सकते हैं कि जियो की हिस्सेदारी बिक्री एक योजनाबद्ध कर्ज पुनर्गठन का हिस्सा है। और गूगल मीडिया, तकनीक एवं दूरसंचार हक जगह अपने पैर पसार रही है। वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही वोडाफोन में हिस्सा खरीदने की कोशिश उसकी नीतियों का विस्तार भर है। लेकिन यह आंशिक सत्य भर है।
इसका दूसरा हिस्सा दुनिया भर और भारत में मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग का मौजूदा स्तर है। इंटरनेट और मांग पर कार्यक्रम देखने का मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार पर जल्दी-जल्दी बदलने वाला असर रहा है। अब एक बात तो साफ है कि दूरसंचार, तकनीक एवं मीडिया कंपनियां दर्शकों की सहज तलाश में सिकुड़ती जा रही हैं। गूगल, एमेजॉन, एटीऐंडटी, डिज्नी, कॉमकास्ट, ऐपल और नेटफ्लिक्स जैसी तकनीक-आधारित कंपनियां दूसरी कंपनियों का अधिग्रहण कर रही हैं और अपना फलक बढ़ाने के लिए दुनिया भर से जुटाए कार्यक्रम पेश कर रही हैं।
यह फलक महज एक व्यापक प्लेटफॉर्म के स्वामित्व के रूप में नहीं बल्कि विविधता से परिपूर्ण होते हुए भी वैश्विक दर्शकों के लिए परोसे जा सकने की क्षमता से परिभाषित होता है। यह भारत में हिंदी में बना कार्यक्रम सेक्रेड गेम्स फ्रांस में देखा जाना या जर्मन भाषा में बने कार्यक्रम डार्क का तुर्की में देखे जाने के रूप में हो सकता है। इसके पीछे सोच यह है कि अधिक से अधिक विविधतापूर्ण दर्शक क्लस्टर तैयार किए जाएं जो तमाम प्लेटफॉर्म, तकनीक एवं भौगोलिक सीमाओं से परे हों। इससे फलक काफी बड़ा होता है, बाजार पर वर्चस्व होता है और मुनाफा मिलता है। यह बात कई दूसरे उद्योगों के लिए भी सही हो सकती है लेकिन यह लेख केवल मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग के संदर्भ में ही इन बदलावों का जिक्र करेगा।
यह तलाश किसी तकनीक से परिभाषित नहीं होती है। हाल के कुछ सबसे बड़े सौदे आकार में काफी बड़े, लाभप्रद एवं सीधे कारोबार वाले रहे हैं। डिज्नी का तीन बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म (हॉटस्टार, डिज्नी प्लस और हुलू) के अलावा दुनिया के एक बड़े फिल्म स्टूडियो और एक लाभप्रद भुगतान टीवी कारोबार पर नियंत्रण है। अमेरिका के सबसे बड़े ब्रॉडबैंड सेवा प्रदाता कॉमकास्ट ने हाल ही में डीटीएच ऑपरेटर बीस्काईबी को खरीदा है। इस नए परिवेश में भारत के पास देने को दो चीजें हैं। पहला तो विशाल दर्शक संख्या है। भारत में इंटरनेट के 62.5 करोड़, टीवी के 83.6 करोड़ और अखबार के 39 करोड़ ग्राहक हैं। भारत के पास दूसरी खासियत कहानियों की मौजूदगी है। कोरिया के अलावा कुछ बाजार ही हैं जो मौलिक स्थानीय कहानियां परोस सकते हैं और उन्हें ढंग से पेश करने के लिए उनके पास एक संगठित उद्योग भी है। ये कहानियां करीब 200 देशों के दर्शकों तक पहुंच सकती हैं। एमेजॉन प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स के जरिये दुनिया भर में दिल्ली क्राइम, सेक्रेड गेम्स, पाताललोक और द फैमिली मैन जैसे कार्यक्रम देखे जा सकते हैं। भारत में तैयार कुछ कार्यक्रम इंटरनैशनल एमी अवार्ड के लिए भी नामांकित किए गए थे। कहानी को खूबसूरती से परोसने की इस क्षमता की ही तलाश दुनिया के बड़े प्लेटफॉर्म को है।
लेकिन अपने तमाम आकार एवं रचनात्मकता के बावजूद भारत का मीडिया एवं मनोरंजन बाजार एक खंडित एवं कम नकदी से जूझ रहा है। महामारी की वजह से राजस्व में 20 से लेकर 40 फीसदी तक की गिरावट आने की आशंका है। एक और दशक तक प्रकाशित होते रहने की क्षमता रखने वाले कुछ समाचारपत्र जल्द ही बंद हो सकते हैं जबकि एक सफल नेटवर्क के दम पर आसानी से प्रसारित हो सकने वाले कुछ चैनल ऑफ-एयर हो जाएंगे। सिंगल स्क्रीन वाले कई सिनेमाघर या तो बंद हो जाएंगे या बिक जाएंगे और कई प्रोडक्शन हाउस भी अधिग्रहीत हो सकते हैं। यही बात प्रसारकों के लिए भी सही है। कम-से-कम एक बड़े प्रसारण विलय की चर्चा चल रही है। इसके अलावा भारत के एक बड़े मल्टीप्लेक्स चेन के भी बिकने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सच्चाई समरूपता से अधिक अरुचिकर हो सकती है।
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