लॉकडाउन हटाने में मदद करेगा सर्वे | सर्वे में भारत में कोरोनावायरस के प्रसार पर अध्ययन किया जाएगा | | सोहिनी दास / June 04, 2020 | | | | |
देश में स्वास्थ्य अनुसंधान क्षेत्र के शीर्ष निकाय भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा कराए गए सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण के परिणाम अगले सप्ताह की शुरुआत में आने की उम्मीद है जो देश में लॉकडाउन के नियमों को आसान बनाने की रणनीति में महत्त्वपूर्ण मदद कर सकते हैं।
आईसीएमआर ने संक्रमण के प्रसार का आकलन करने के लिए राज्यों से समय-समय पर सर्वेक्षण कराने की सलाह दी है जिसमें उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों जैसे पुलिसकर्मियों, फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं आदि को भी शामिल किया गया है। सीरो-सर्वेक्षण का अर्थ है, व्यक्तियों के किसी समूह से रक्त के सीरम का परीक्षण करना और इस मामले में कोरोनावायरस के लिए ऐंटीबॉडी की जांच की जा रही है। 21 राज्यों के 69 जिलों में घरों के स्तर पर क्रॉस-सेक्शनल सर्वे किया गया। सीरो-सर्वेक्षण की मदद से कोविड-19 संक्रमण के संपर्क में आने वाली आबादी के बारे में जानकारी मिल सकेगी, जिसमें संक्रमण के लक्षण नहीं दिखने वाले व्यक्ति भी शामिल होंगे। इसके आधार पर संक्रमण रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए उचित योजना बनाई जा सकती है और उन्हें लागू किया जा सकता है।
आईसीएमआर ने मई में सर्वेक्षण शुरू किया था। बिज़नेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमोलॉजी (एनआईई) के निदेशक मनोज मुरेकर ने कहा कि अगले सप्ताह की शुरुआत तक परिणाम आने की उम्मीद की जा सकती है। एनआईईई एक आईसीएमआर संस्थान है, जो कि सीरो-सर्वेक्षण का समन्वय कर रहा है। उन्होंने कहा, 'यह हमें बताएगा कि संक्रमण कितनी दूर तक फैल गया है। यह एक देशव्यापी सर्वेक्षण है जहां 34,000 से अधिक नमूनों का परीक्षण किया गया है।'उन्होंने कहा कि हालिया परिणाम में पश्चिम बंगाल का आंकड़ा शामिल नहीं होगा, क्योंकि राज्य गंभीर चक्रवात की चपेट में था जिसके चलते डेटा संग्रह में देरी हुई। मुरेकर ने बताया, 'पश्चिम बंगाल में डेटा एकत्र करना शुरू कर दिया गया है और इसके बाद हम सर्वे के परिणामों को अद्यतन करेंगे।'
सर्वे में प्रत्येक जिले में 10 समूहों से यादृच्छित तरीके से चयनित 400 व्यक्तियों (एक घर से एक) से रक्त के नमूनों का संग्रह किया गया। पुणे के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान द्वारा विकसित एलिसा परीक्षण के माध्यम से इन व्यक्तियों के रक्त सीरम में आईजीजी ऐंटीबॉडी की उपस्थिति का परीक्षण किया जाएगा। जायडस कैडिला ने सर्वे के लिए किटों की आपूर्ति की है।
आईजीजी ऐंटीबॉडी आमतौर पर संक्रमण से ठीक होने के दो सप्ताह बाद दिखाई देने लगते हैं और कई महीनों तक रहते हैं। इसलिए, आईजीजी परीक्षण तात्कालिक संक्रमण का पता लगाने में प्रभावी नहीं है लेकिन अतीत में हुए संक्रमण की जानकारी देते हैं।
आईसीएमआर, स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र, राज्य के स्वास्थ्य विभाग और प्रमुख हितधारकों (जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन) के साथ मिलकर सर्वे कर रहा है। सर्वे का समन्वय एनआईई तथा राष्ट्रीय यक्ष्मा अनुसंधान संस्थान (एनआईआरटी) चेन्नई द्वारा किया जा रहा है। इस समुदाय-आधारित सर्वेक्षण के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय सभी जिलों में संक्रमण की प्रवृत्ति की निगरानी के लिए अस्पताल-आधारित निगरानी भी शुरू कर रहा है। मई के अंत में आईसीएमआर ने यह भी सलाह दी कि राज्य सरकारें आबादी में संक्रमण के प्रसार का आकलन करने के लिए समय-समय पर सीरो सर्वेक्षण कराती रहें, जिससे नीति निर्माताओं को काफी मदद मिलेगी। उच्च जोखिम स्तर वाले लोग जैसे स्वास्थ्यकर्मी, आवश्यक सेवाओं में लगे लोग, कंटेनमेंट जोन के निवासी आदि के लिए परीक्षण की सिफारिश की गई है जिससे पता चल सके कि अतीत में कौन संक्रमित हुआ है और अब ठीक हो गया है। भविष्य के हिसाब से महामारी के खिलाफ कार्रवाई को लेकर आईसीएमआर ने राज्यों की आम जनता के साथ-साथ उच्च जोखिम वाले लोगों में कोरोनावायरस जोखिम को मापने के लिए सभी राज्यों के साथ एक विस्तृत योजना साझा की है।
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