खत्म हो विशिष्टताबोध और बढ़े पारदर्शिता | जैमिनी भगवती / June 03, 2020 | | | | |
क्या चीन उस दिशा में बढ़ रहा है जहां अगले करीब 10 वर्षों में वह विश्व की सबसे प्रमुख आर्थिक और सैन्य शक्ति बन जाए? अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की अस्थिरतापूर्ण घोषणाओं को सुनते हुए इस बात पर आसानी से यकीन होने लगता है कि अमेरिका तेजी से पराभव की ओर बढ़ रहा है। कोविड-19 महामारी के कारण 3 जून तक दुनिया भर में पौने चार करोड़ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। यह स्पष्ट है कि मौजूदा वैश्विक आर्थिक मंदी भी हमें लंबे समय तक और गहराई से प्रभावित करेगी।
कोविड के कारण होने वाली मौतों की बढ़ती तादाद और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर इसके विनाशकारी प्रभाव के लिए काफी हद तक यह बात भी उत्तरदायी है कि चीन ने इस वायरस के स्वरूप और इसके घातक असर को लेकर समय पर सार्वजनिक रूप से जानकारी नहीं दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी आरोप है कि वह चीन के दबाव में था और उसने भी स्वास्थ्य संबंधी चेतावनियां जारी करने में देरी की। कोविड-19 का टीका बन जाने के बाद क्या दुनिया के वे तमाम लोकतांत्रिक देश एकजुट होंगे जो चीन के वस्तु निर्यात की प्रतिस्पर्धी कीमतों को लेकर लगभग अभीभूत रहे आए हैं। दूसरे शब्दों में क्या शेष विश्व चीन की विशिष्टता को लेकर स्वीकारोक्ति के प्रति कुछ सचेत होंगे?
बीते दो दशक के दौरान भौतिकी और रसायन विषयों में नोबेल पुरस्कार जीतने वालों की सूची पर नजर डालें तो पता चलता है कि मूलभूत वैज्ञानिक शोध के मामले में जी 7 देशों और चीन के बीच कितना बड़ा अंतर है। क्रय शक्ति समता को ध्यान में रखें तो पश्चिमी देशों में प्रति व्यक्ति आय चीन की 2019 की आय की तुलना में काफी अधिक थी। बीते दो दशक के समेकित रक्षा व्यय की बात करें तो अमेरिका चीन की तुलना में करीब पांच गुना अधिक व्यय करता है। व्यापारिक मोर्चे पर देखें तो बीते 20 वर्ष से अधिक समय में अमेरिका का औसत चालू खाता और सकल घरेलू उत्पाद अनुपात करीब 3.46 फीसदी ऋणात्मक रहा है। संयोग की बात है कि चीन के धनात्मक चालू खाता संतुलन का आंकड़ा भी करीब-करीब इतना ही है। अमेरिका खपत के लिए शेष विश्व से उधारी लेता रहा है जबकि चीन विकासशील देशों की सरकारी डेट प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में उन्हें ऋण देता रहा है। जर्मनी और जापान के प्रतिस्पर्धी मूल्य वाले गुणवत्तापूर्ण उत्पाद और रूस का भारी भरकम जीवाश्म ईंधन निर्यात भी चालू खाते के संतुलन में सकारात्मक भूमिका रखता है।
चीन ने तकनीकी क्षेत्र में प्रभावशाली प्रगति की है। उदाहरण के लिए वह उन्नत लड़ाकू विमान बनाता है और उसने हुआवे के रूप में एक बेहतरीन दूरसंचार उपकरण निर्माता कंपनी बनाई है। हालांकि ताइवान जैसे छोटे से लोकतांत्रिक देश ने भी ताइवान सेमी कंडक्टर विनिर्माण कंपनी के रूप में दुनिया की सबसे बड़ी कंप्यूटर चिप निर्माता कंपनी बनाई है। इस बीच कई टीकाकारों ने गलती से यह भी कहा कि चूंकि चीन की मुद्रा रेनमिनबी डिजिटल हो गई है इसलिए वह जल्दी ही अंतरराष्ट्रीय रिजर्व मुद्रा बन जाएगी। चीन को पूंजी खाते की परिवर्तनीयता पर अपना अधिकांश नियंत्रण गंवाना होगा और उसे अपनी राजनीतिक तथा कानूनी प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी बनाना होगा तभी रेनमिनबी को अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता मिल सकेगी।
वर्ष 2018 में वैश्विक कारोबार का एक बड़ा हिस्सा यानी करीब 19.5 लाख करोड़ डॉलर मूल्य का कारोबार परिवर्तनीय मुद्रा में किया गया। सन 2018 में चीन का निर्यात करीब 2.5 लाख करोड़ डॉलर था जो वैश्विक निर्यात का 12.8 फीसदी था। उसी वर्ष विकासशील देशों को असहज करने वाली एक बात यह थी कि उनके साथ चीन का वस्तु क्षेत्र में अनुकूल भुगतान संतुलन करीब 430 अरब डॉलर था। वर्ष 2018 में सेवा क्षेत्र में 5.8 लाख करोड़ डॉलर के वैश्विक कारोबार में अमेरिका 14.3 फीसदी के साथ शीर्ष पर था। ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस का कुल सेवा व्यापार 4 से 6 फीसदी था। यह चीन और भारत के क्रमश: 3.7 फीसदी और 3.5 फीसदी (स्रोत: अंकटाड और डब्ल्यूटीओ) से अधिक था। चीन से आने वाले वायरसों को लेकर जिस तरह वह गैर जवाबदेही का परिचय दे रहा है उससे शेष विश्व जरूर इस बात पर ध्यान दे रहा होगा कि वह कैसे चीन के साथ वस्तु व्यापार निर्भरता को कम कर सकता है। बड़ी शक्तियों के साथ भारत के रिश्तों की बात करें तो यह सुझाव श्रेयस्कर होगा कि अमेरिका और यूरोप भारत के उदय के ज्यादा खिलाफ नहीं हैं। ऐसे में भारत के पास भी पश्चिमी देशों की ओर झुकाव की वजह है, वह भी बिना रूस के मन में कोई आशंका पैदा किए। हाल के वर्षों में जब भी चीन भारत के साथ सहज हुआ है, भारत-चीन सीमा पर झड़प की शुरुआत देखने को मिली है। इस समय भी लद्दाख में ऐसा ही हो रहा है। शायद चीन कोविड के लिए उसे दोषी ठहराए जाने को लेकर भारत को चेतावनी दे रहा है। साथ ही वह सीमा पर भारतीय भूमि पर बुनियादी ढांचा विकास को भी रोकना चाहता है। भारत को चीन से होने वाले आयात पर निर्भरता रोकनी होगी।
उदाहरण के लिए रसायन का जो आयात जेनेरिक औषधियों के लिए किया जाता है, वे जेनेरिक औषधियां भारतीय निर्यात में अहम हिस्सेदारी रखती हैं। जहां तक देश की रक्षा क्षेत्र की संवेदनशीलता की बात है, उसे सीमा सड़क और पुल, हवाई पट्टी और पारंपरिक तथा सामरिक परमाणु हथियारों की आपूर्ति व्यवस्था आदि को बेहतर बनाने में अधिक निवेश करना है। इस क्षेत्र में भारत को अपना रक्षा व्यय जीडीपी के मौजूदा 1.5 फीसदी से बढ़ाना होगा। यदि भारत सरकार कर वंचना करने वालों के खिलाफ की गई बातों को अमल में लाती तो प्रत्यक्ष कर संग्रह को जीडीपी के 4-5 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है।
लब्बोलुआब यह कि चीन के भारी उपभोक्ता आधार और उसकी भारी-भरकम निर्यात क्षमता को देखते हुए दुनिया को चीन के साथ व्यापार करने की आवश्यकता तो है लेकिन यह भी आवश्यक है कि विभिन्न लोकतांत्रिक देश चीन के विशिष्टताबोध का प्रतिकार करें और चीन के साथ आर्थिक संबंधों को उसके राजनीतिक और चिकित्सा शोध प्रतिष्ठानों में अधिक खुलापन लाने में इस्तेमाल करें।
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