डिजिटल कर की जांच करेगा अमेरिका | दिलाशा सेठ / नई दिल्ली June 03, 2020 | | | | |
अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) कार्यालय ने भारत द्वारा ई-कॉमर्स कंपनियों पर 2 फीसदी डिजिटल कर लगाने के मामले की जांच शुरू की है। यूएसटीआर ने यह जांच धारा 301 के तहत शुरू की है जिसमें यह पता लगाया जाएगा कि शुल्क एमेजॉन, गूगल और फेसबुक जैसी अमेरिकी कंपनियों पर अनुचित तरीके से तो नहीं लगाया गया है।
नई दिल्ली अमेरिका के इस कदम का पुरजोर विरोध करेगा क्योंकि डिजिटल कर लगाने का कदम उसका संप्रभु अधिकार है और इसमें अमेरिकी कंपनियों के साथ पक्षपात करने जैसा कुछ नहीं है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'भारत द्वारा लगाया गया शुल्क विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन नहीं है और हमने अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए ही डिजिटल कर लगाया है। अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव नहीं किया गया है। अमेरिका को डिजिटल कंपनियों पर कर के समले पर आम सहमति बनाने पर ध्यान देना चाहिए'
भारत के अलावा, यूएसटीआर कार्यालय ने धारा 301 के तहत ऑस्ट्रिया, ब्राजील, इंडोनेशिया, इटली, स्पेन, तुर्की, चेक गणराज्य, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के खिलाफ भी इसी तरह के कर मसले को लेकर जांच शुरू की है।
भारत ने प्रवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों द्वारा व्यापार एवं सेवाओं पर 2 फीसदी डिजिटल कर लगाने के लिए वित्त विधेयक 2020-21 में संशोधन किया है। यह कर सालाना 2 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करने वाली डिजिटल कंपनियों पर लगाया गया है, जिसमें समानता शुल्क के विस्तार की भी गुंजाइश है। पिछले साल तक केवल डिजिटन विज्ञापन सेवाओं पर ही इस तरह का कर लगाया गया था। नया शुल्क 1 अप्रैल से प्रभावी हुआ है। ई-कॉमर्स ऑपरेटरों को प्रत्येक तिमाही के अंत में इस कर का भुगतान करना होगा।
सरकार के इस कदम का एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फेसबुक जैसी अमेरिकी कंपनियों ने विरोध किया है और मार्च में इस बारे में यूएसटीआर को शिकायत की थी कि विदेशी कंपनियों पर बेहद भेदभावपूर्ण तरीके का कर लगाया गया है।
एक अधिकारी ने कहा, 'भारत का पक्ष इस मामले में मजबूत है। इसके साक्ष्य हैं कि यह कर शुरुआत में भले ही अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर लगाए गए प्रतीत हो रहे हों लेकिन यह सभी ई-कॉमर्स कंपनियों पर समान रूप से लागू होगा, चाहे वह चीन की हो, स्वीडन की हों या फिर अमेरिका की। अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनियों को लक्षित करने का कोई सवाल नहीं है, बल्कि यह विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा भारत में अर्जित आय पर सरल कर लगाने का मामला है।' इस कर के दायरे में आने वाली कंपनियों में एडोबी, उबर, जूम, एक्सपीडिया, अलीबाबा, आइकिया, लिंक्डइन, सपोर्टीफाय, ईबे आदि शामिल हैं।
भारत का पहले भी यह रुख रहा है कि धारा 301 एकतरफा उपाय है और सरकार ऐसी किसी जांच की पक्षकार बनने पर सहमत नहीं है। अमेरिकी जांच शुरुआत में इस मुद्दे पर केंद्रित होगी कि क्या डिजिटल सेवाओं पर करों में अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव किया जाता है, वे बीती तारीख से लागू हैं और वे अतार्किक कर नीति को दर्शाते हैं। इस पर 15 जुलाई तक जनता की राय आमंत्रित की गई है।
अमेरिकी कारोबार प्रतिनिधि रॉबर्ट लिघथिजर ने एक बयान में कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप इस बात से चिंतित हैं कि हमारे बहुत से कारोबारी साझेदार हमारी कंपनियों को अनुचित निशाना बनाने के लिए कर योजना बना रहे हैं...हम ऐसे किसी भेदभाव से अपने उद्यमों एवं कामगारों को बचाने के लिए उचित कदम उठाने को तैयार हैं।' सीबीडीटी के पूर्व सदस्य और ओईसीडी बीईपीएस में मुख्य वार्ताकार अखिलेश रंजन ने कहा कि भारत अकेला नहीं है। फ्रांस के अलावा बहुत से देशों ने डिजिटल कर लगाया है या लागू करने की योजना बना रहे हैं क्योंकि अमेरिका ओईसीडी बीईपीएस में डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कर लगाने के अपने प्रस्ताव से पीछे हटा है। रंजन ने कहा, 'यह अमेरिका ही है, जिसने दिसंबर में अपने प्रस्ताव से पीछे हटने का फैसला लिया था। अमेरिका चर्चा में पूरी तरह भाग नहीं ले रहा है, इसलिए सभी जगह प्रतिक्रिया दिखाई दे रही है। यह देखना रोचक होगा कि अमेरिका कितनी मजबूती से 9 देशों के साथ इस मामले को निपटाता है।' उन्होंने कहा कि भारत का पक्ष मजबूत है क्योंकि वह कह सकता है कि वह केवल अमेरिकी कंपनियों के लिए नहीं बल्कि सभी डिजिटल कंपनियों के लिए समान नियम बना रहा है और यह भेदभाव नहीं है।
रंजन ने कहा, 'भारत को प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। अगर इस पर डब्ल्यूटीओ जैसे औपचारिक मंच पर चर्चा होती है तो भारत को अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए।' एकेएम ग्लोबल में टैक्स पार्टनर अमित माहेश्वरी ने कहा कि इस जांच का विषय भारतीय कर है, जिसे हाल के फाइनैंस ऐक्ट में शामिल किया गया व 1 अप्रैल 2020 से कानून बना दिया गया।
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