भारत बनेगा 5जी विनिर्माण हब | सुरजीत दास गुप्ता / नई दिल्ली June 02, 2020 | | | | |
दूरसंचार विभाग भारत को 5जी उपकरणों के विनिर्माण एवं निर्यात का केंद्र बनाने की दिशा में पहल करते हुए बुधवार को इस क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों के साथ एक अहम बैठक करने जा रहा है। बैठक में दूरसंचार उपकरणों के लिए उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना शुरू करने मुद्दे पर चर्चा की जाएगी।
सरकार के इस कदम से एरिक्सन और नोकिया के साथ-साथ हुआवेई (बशर्ते उसे एफडीआई की अनुमति मिले) जैसी वैश्विक दूरसंचार गियर विनिर्माता भारत से निर्यात करने के लिए प्रोत्साहित होंगी। प्रस्तावित योजना उन पीएलआई योजनाओं के अनुरूप है जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल उपकरणों के विनिर्माण के लिए मंत्रिमंडल से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है।
जिस प्रस्तावित पीएलआई योजना पर चर्चा की जाएगी उसके तहत विनिर्माताओं को पांच वर्षों की अवधि के लिए 4 से 6 फीसदी के दायरे में प्रोत्साहन दिया जाएगा बशर्ते अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चार साल में 600 करोड़ रुपये से अधिक का वृद्धिशील निवेश करें और सालाना 1,000 करोड़ रुपये से 3,000 करोड़ रुपये मूल्य के उत्पादों का निर्यात करें। इस योजना से विनिर्माताओं को लागत में नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी जो दो प्रमुख प्रतिस्पर्धियों के मामले में चीन के मुकाबले भारत में 17 से 20 फीसदी और वियतनाम में 8 से 11 फीसदी है।
दूरसंचार ऑपरेटरों के संगठन सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने 14 मई को दूरसंचार विभाग को सूचित किया था कि इस मुद्दे पर मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित मसौदा तैयार किया जा रहा है लेकिन उद्योग के साथ इस मुद्दे पर कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। इसके बाद विभाग ने प्रमुख हितधारकों के साथ चर्चा करने के लिए बैठक बुलाई है।
इस योजना के तहत अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत में विनिर्दिष्ट दूरसंचार उपकरण बना सकती हैं जिनमें 5जी अगली पीढ़ी के रेडियो नेटवर्क उपकरण एवं संबद्ध प्रणाली, 5जी बेस स्टेशन एवं प्रमुख उपकरण, स्विच, राउटर, ऑप्टिक फाइबर केबल, डिजिटल माइक्रोवेव रेडियो आदि शामिल हैं।
घरेलू कंपनियों को भी पीएलआई योजना के तहत समान प्रोत्साहन मिलेगा। हालांकि इन कंपनियों के लिए निवेश की शर्त पांच साल के लिए केवल 40 करोड़ रुपये है। साथ ही उत्पादों की न्यूनतम बिक्री पहले वर्ष के दौरान 100 करोड़ रुपये से पांचवें वर्ष तक 300 करोड़ रुपये होनी चाहिए।
भारत फिलहाल दूरसंचार उपकरणों के आयात पर काफी निर्भर है और वह 1.30 लाख करोड़ रुपये से अधिक का आयात करता है जबकि निर्यात महज 11,500 करोड़ रुपये का है। इससे साफ पता चलता है कि यहां कारोबार के लिए अपार संभावनाएं मौजूद हैं। वर्तमान में नोकिया और एरिक्सन दोनों की विनिर्माण इकाइयां मौजूद हैं और वे कुछ निर्यात भी कर रही हैं। हालांकि मेक इन इंडिया नीति पर जोर देने वाली घरेलू कंपनियां भी प्रस्तावित नीति का फायदा उठा सकती हैं।
हालांकि इस योजना के तहत प्रोत्साहन का भुगतान करने के लिए 17,616 करोड़ रुपये के परिव्यय की आवश्यकता होगी लेकिन उम्मीद की गई है कि इससे केवल पांच वर्षों के दौरान निर्यात राजस्व में 2.17 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। साथ ही भारत दूरसंचार उपकरणों के विनिर्माण का प्रमुख केंद्र बन जाएगा। इसके अलावा इससे करीब 1 लाख से अधिक रोजगार के अवसर सृजित होने का अनुमान है।
मोबाइल उपकरणों के लिए भी इसी प्रकार की योजना है जो अंतरराष्ट्रीय विनिर्माताओं को प्रोत्साहन प्रदान करती है बशर्ते वे 20 करोड़ डॉलर से अधिक मूल्य के फोन का निर्यात करें, 1,000 करोड़ रुपये का वृद्धिशील निवेश करें और पांच साल की अवधि में सालाना 5,000 करोड़ रुपये से 25,000 करोड़ रुपये की बिक्री करें। यह योजना कई बड़ी कंपनियों को पहले ही आकर्षित कर चुकी है जिनमें ऐपल और सैमसंग शामिल हैं। ऐपल चीन से अपनी कुछ उत्पादन क्षमता यहां हस्तांतरित करने की योजना बना रही है।
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