मंदी के भंवर से निकल सकता है भारत, सरकार को बरतनी होगी सावधानी | अनूप रॉय / मुंबई May 27, 2020 | | | | |
योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में 5 प्रतिशत सिकुड़ सकती है, लेकिन अगले साल 5 प्रतिशत वृद्धि के साथ स्थिति सुधर सकती है। वहीं रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा कि यह संकट बगैर किसी राजकोषीय लक्ष्य के सरकार को नीतियों के साथ छेड़छाड़ करने या रिजर्व बैंक से ज्यादा रुपये छापने को कहने की अनुमति नहीं देता है।
एसपी जैन इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट रिसर्च की ओर से आयोजित एक वेबिनॉर में उन्होंने यह राय रखी, जिसका संचालन इंस्टीट्यूट में एसोसिएट प्रोफेसर अनंत नारायण ने किया।
आहलूवालिया ने कहा कि भारत अब तक की सबसे बड़ी मंदी के दौर से गुजर रहा है। आहलूवालिया का कहना है कि अभी जितना संकुचन हो रहा है, अगले साल उतना ही प्रसार हो सकता है। आहलूवालिया ने कहा कि ऐसी स्थिति में सामान्य नियम काम नहीं रकते और देश को किताबी समाधान से आगे सोचने की जरूरत है।
आहलूवालिया से सहमति जताते हुए सुब्बाराव ने कहा कि 2019-20 में 5 से 6 प्रतिशत वृद्धि दर और 2020-21 में 5 प्रतिशत संकुचन का मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था वास्तव में 10 प्रतिशत नीचे जाएगी। इस तरह की मंदी से निपटना अमीर देशों के लिए भी मुश्किल है। लेकिन भारत का बाहरी क्षेत्र अभी भी स्थिर बना हुआ है। तेल की कीमतें बहुत नीचे हैं, ऐसे में निर्यात में आई कमी का संतुलन आयात में गिरावट से हो सकता है। भारतीय रुपये का अवमूल्यन हुआ है, लेकिन तुलनात्मक हिसाब से अभी भी कई देशों की तुलना में यह मजबूत है। इस साल भारत में फसल की बंपर पैदावार की उम्मीद है, जिससे खाद्य सुरक्षा को सहारा मिलेगा।
सुब्बाराव ने कहा, 'यह प्राकृतिक आपदा नहीं है। लॉकडाउन चरणबद्ध तरीके से हटने पर हम अर्थव्यवस्था को तेजी से बहाल कर सकते हैं।'
आहलूवालिया और सुब्बाराव ने संकट से निपटने की आरबीआई के कदमों की सराहना की।
सुब्बाराव ने कहा कि मौजूदा राजकोषीय बाधाओं के बीच राजकोषीय प्रतिक्रिया पर्याप्त है। वहीं आहलूवालिया का कहना है कि सीधे प्रोत्साहन खासकर स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत और दिए जाने की जरूरत है।
आहलूवालिया ने कहा कि कर राजस्व में गिरावट आ रही है, निवेश का लक्ष्य भी पूरा नहीं हो सका है। आहलूवालिया ने कहा, 'हमें यह जानना चाहिए कि जीडीपी में 5-6 प्रतिशत की गिरावट का मतलब हर सिकी के राजस्व में गिरावट नहीं है। कम आमदनी वाले और असंगठित क्षेत्रों पर असर ज्यादा होगा।'
आहलूवालिया ने कहा कि कृषि उत्पादन बेहतर रहने के बावजूद संभवत: किसान उसका पूरा लाभ पाने में सक्षम नहीं होंगे, क्योंकि लॉजिस्टिक्स प्रभावित हुआ है। कारोबार में मुनाफा प्रभावित हुआ है और गैर बैंक वित्तीय क्षेत्र (एनबीएफसी) से छोटे कारोबारियों को कर्ज लेना मुश्किल होगा।
आहलूवालिया ने कहा, 'दरअसल प्रोस्ताहन पैकेज थोड़ा छोटा है।' उन्होंने कहा, 'उत्पादन में तेजी आने की संभावना नहीं है क्योंकि कारोबारियों को अभी पता नहीं है कि सरकार क्या करना चाहती है।' आहलूवालिया ने कहा कि सरकार को स्थिति साफ करना चाहिए कि क्या लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में कोई सुधार किया गया है और ऐसा है तो कितना सुधार हुआ है।
कोविड संकट के पहले भी भारत की वित्तीय व्यवस्था चिंताजनक थी। इसके पहले बड़ी मात्रा में गैर निष्पादित संपत्तियां थीं और विश्लेषकों का कहना है कि एनपीए 9 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत हो जाएगा। सुब्बाराव ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की गई संपत्ति गुणवत्त्ता समीक्षा के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि एनपीए बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेगा। लेकिन सभी मानकों पर स्थिति खराब नजर आ रही है। सरकार द्वारा घोषित किए गए पैकेज से बचे रहना सुनिश्चित हुआ है, लेकिन एक बार लॉकडाउन खुलता है तो सुब्बाराव का मानना है किए कई प्रोत्साहन पैकेज की जरूरत होगी।
सुब्बाराव का कहना है कि प्रोत्साहन पैकेज के माध्यम से सरकार की ओर से साफ संदेश है कि वह न सिर्फ कम अवधि के हिसाब से, बल्कि वह मध्यावधि के हिसाब से भी गंभीर है। उनका मानना है कि सरकार की ओर से उठाए गए कदम पर्याप्त हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि सरकार के सामने बाधाएं हैं, लेकिन उन्होंने तर्कसंगत काम किया है।'
सुब्बाराव के मुताबिक इसमें कोई नुकसान नहीं है, अगर सरकारक ज्यादा उधारी लेती है और ज्यादा खर्च करती है और निश्चित रूप से वह उम्मीद करते हैं कि चालू वित्त वर्ष में ज्यादा वाह्य उधारी लेनी होगी, लेकिन उनका कहना है, 'मैं इस बात का समर्थन नहीं करता हूं कि सरकार उतनी उधारी ले, जितना ज्यादा उसे खर्च करने की जरूरत है। बेहतर यह होगा कि सरकार इसकी सीमा तय करे।'
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