आर्थिक पैकेज से निजी क्षेत्र को मिलेगा काफी कुछ | दिल्ली डायरी | | ए के भट्टाचार्य / May 27, 2020 | | | | |
सरकार ने कोविड-19 महामारी के चलते आर्थिक पैकेज की घोषणा करते समय निजी क्षेत्र पर जितना जोर दिया, उसकी कोई भी अनदेखी नहीं कर पाया होगा। करीब एक सप्ताह पहले पांच किस्तों में 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की गई ताकि कोविड-19 के झटके से अर्थव्यवस्था को उबारा जा सके। इस पैकेज में नीतिगत बदलावों की पर्याप्त खुराक थी, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाई जा सके।
इसके तहत एक नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति की घोषणा की गई ताकि सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों की भूमिका केवल सरकार द्वारा परिभाषित रणनीतिक क्षेत्रों तक सीमित की जा सके। यहां तक कि रणनीतिक क्षेत्रों में भी चार से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को चलने की मंजूरी नहीं दी जाएगी। जल्द ही रणनीतिक क्षेत्रों की एक सूची तैयार की जाएगी। इस समय गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में मौजूद सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का एक निश्चित समयावधि में निजीकरण किया जाएगा।
मार्च 2019 के अंत में सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उद्यम (सीपीएसई) 339 थे, जिनमें कुल निवेश 16.4 लाख करोड़ रुपये था। उनका कुल शुद्ध लाभ महज 1.42 लाख करोड़ रुपये था। इनमें 70 से अधिक सीपीएसई को 2018-19 में करीब 31,600 करोड़ रुपये का कुल घाटा हुआ था। कुल सीपीएसई में 56 स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध थे और उनका बाजार पूंजीकरण घट रहा है। उनका बाजार पूंजीकरण मार्च 2019 के अंत में घटकर 13.7 लाख करोड़ रुपये पर आ गया था और इसमें पिछले कुुछ महीनों के दौरान निश्चित रूप से और गिरावट आई होगी। मगर उनके रिजर्व एवं सरप्लस 9.93 लाख करोड़ रुपये और नेट वर्थ 12 लाख करोड़ रुपये है। सरकार ने शेयरधारक के रूप में इन सीपीएसई से 2018-19 में 72,000 करोड़ रुपये का लाभांश अर्जित किया।
अगर रणनीतिक क्षेत्रों में परिचालित कुछ सीपीएसई को छोड़कर अन्य को आगामी एक-दो साल में बिक्री के लिए पेश किया गया तो भारत में निजी क्षेत्र के सामने इतने अच्छे विकल्प होंगे कि उसके लिए किसी एक का चयन करना कठिन होगा। यह भी सही है कि इन सीपीएसई में से कुछ की मौजूदा वित्तीय स्थिति एवं लाभप्रदता को देखते हुए उनके बहुत अधिक लिवाल नहीं होंगे। मगर फिर भी बहुत से सीपीएसई निजी क्षेत्र के खरीदारों के लिए बहुत अधिक आकर्षक रहेंगे। निजी क्षेत्र इन सीपीएसई को खरीदने के लिए पर्याप्त पूंजी के अभाव की शिकायत कर सकता है। मगर वे ऐसे अधिग्रहणों की खातिर बोली लगाने के लिए किसी विदेशी कंपनी से गठजोड़ सकते हैं या विदेशी बाजारों से पूंजी जुटा सकते हैं। कुल मिलाकर अगर योजना के मुताबिक नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति को लागू किया गया तो इसके सामने 1990 के दशक के आखिरी वर्षों में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया निजीकरण भी फीका पड़ जाएगा।
कोविड-19 पैकेज में कुछ और ऐसे नीतिगत बदलाव हैं, जिनका मकसद भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाना है। अब निजी क्षेत्र की कंपनियों को देश के उस अंतरिक्ष कार्यक्रम में अपनी पैठ बढ़ाने की मंजूरी दी जाएगी, जो अब तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और उसकी सरकार के स्वामित्व वाली इकाइयों के लिए आरक्षित था। केंद्र शासित प्रदेशों में विद्युत वितरण कंपनियों का भी निजीकरण किया जाएगा।
जब सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत छह हवाई अड्डों के विकास को मंजूरी देगी तो निजीकरण और बढ़ेगा। विमानन कंपनियों को अपने विमान उड़ाने के लिए और हवाई क्षेत्र मुहैया कराया जाएगा। आयुध निर्माणी बोर्ड के तहत आने वाली 41 फैक्टरियों का निगमीकरण किया जाएगा। इससे वे स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध हो सकेंगी और उनके परिचालन में निजी क्षेत्र की पूंजी की भागीदारी बढ़ेगी। इन फैक्टरियों में 80,000 से अधिक कामगार हैं। ये हर साल 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक कीमत के बहुत से हथियारों एवं रक्षा उपकरणों का उत्पादन कर रही हैं।
यह भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर मोदी सरकार के नजरिये में अहम बदलाव है। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के शुरुआती वर्र्षों में औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण पर प्रतिबंधों को ढीला करने की कोशिश की थी मगर वह कड़े राजनीतिक विरोध के कारण इस मुहिम में सफल नहीं हो सकी। तभी से मोदी सरकार ऐसे किसी कदम से बच रही है, जिसे बड़े उद्यमों को लाभ पहुंचाने के रूप में देखा जाए। इस सरकार के नजरिये में बदलाव का पहला संकेत सितंबर 2019 में दिखा, जब इसने भारतीय कंपनियों के लिए बड़ी कर रियायत की घोषणा की। कंपनियों के लिए निगम कर की दर घटाकर 25 फीसदी कर दी गई, बशर्ते कि वे अन्य छूट नहीं लेती हैं। अब कोविड-19 पैकेज में ऐसे कई कदम उठाए गए हैं, जो अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को बड़ी भूमिका देते हैं।
मगर फिर भी निजी क्षेत्र सरकार द्वारा करीब एक सप्ताह पहले घोषित पैकेज के उपायों से नाखुश है। इसकी वजह यह तथ्य हो सकता है कि पैकेज में सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) को छोड़़कर किसी भी क्षेत्र विशेष के लिए राहत के प्र्रावधान नहीं किए गए। इस निराशा की एक वजह यह भी है कि न उद्योग को और न ही व्यक्तिगत करदाताओं को कोई कर रियायत दी गई।
मगर जैसा कि पहले बताया गया है कि यह कहना गलत होगा कि इस पैकेज में निजी क्षेत्र को कुछ नहीं मिला। यह हो सकता है कि उद्योग को कर लाभ नहीं मिले हों। मगर इस सुधार पैकेज में ऐसी कई चीजें हैं जो निजी क्षेत्र को वे नए अवसर मुहैया कराती हैं जिनके लिए वह वर्षों से इंतजार कर रहा है। निजी क्षेत्र को कर लाभ नहीं होने का दुखड़ा रोने के बजाय यह मांग करनी चाहिए कि करीब एक सप्ताह पहले घोषित इस पैकेज के उपायों को जल्द लागू किया जाए।
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