करीब 55 साल पहले एपीएमसी अधिनियम, 1963 के साथ क्षेत्र बंदी की अवधारणा मौजूद थी जिससे किसानों को अपने जिले के ही किसी बाजार में उपज बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता था। लेकिन केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में 'एक राष्ट्र, एक बाजार' की घोषणा करके इसे बदल दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसे कार्यान्वित होने में दो-तीन साल लग सकते हैं। पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव सिराज हुसैन ने कहा कि एक राष्ट्र-एक बाजार को अंतिम आकार लेने में दो से तीन साल लग जाएंगे क्योंकि किसान और व्यापारी एक निश्चित तरीके से सौदा करने के आदी हैं जिसे बदलना होगा। इसमें वक्त लगेगा। उन्होंने कहा कि काम के नए तरीके - राष्ट्रीय लाइसेंस वाले कारोबारी, एक राज्य में किसी किसान से खरीद करना और दूसरे राज्य में बेचना - लागू करने के लिए अनुकूल बुनियादी ढांचे की जरूरत है। एक बाजार की अवधारणा भारत में पहले से ही मौजूद है। एनईएमएल (एनसीडीईएक्स ई-मार्केट) के मुख्य कार्याधिकारी एवं प्रबंध निदेशक राजेश सिन्हा कर्नाटक में राज्य-स्तरीय एकीकृत ऑनलाइन मंडी का संचालन करते हैं। किसानों और व्यापारियों के साथ सौदे करने के लिए यहां सभी कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) परस्पर ऑनलाइन जुड़ी हुई हैं। किसानों की उपज उस व्यक्ति को बेची जाती है जो राज्य में किसी भी स्थान पर सबसे अधिक दाम देता है। कंपनी ने अब कर्नाटक के किसानों को राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मंडी या ई-नाम से जोड़ा है। सिन्हा ने कहा कि देश के बाजार के सभी भागीदार ऐसे काम कर रहे हैं जिनके लिए ऑनलाइन मंडी की जरूरत होती है। कारोबारी किसानों द्वारा लाई गई उपज की खरीद और वर्गीकरण कर रहे हैं तथा किसानों को भुगतान करने वाले वित्तपोषक भी मौजूद हैं। कई बार कारोबारी ही वित्तपोषक होते हैं। सिन्हा के अनुसार इन सभी भागीदारों द्वारा निभाई गई भूमिका को मान्यता दी जानी चाहिए और जहां कहीं जरूरी हो, इनके कौशल का विकास अवश्य किया जाना चाहिए। इससे उनके लिए राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के साथ लेनदेन करना आसान हो जाएगा। वर्गीकरण, गिरवी रखने का इंतजाम और कृषि उत्पाद की जांच के लिए प्रयोगशालाएं होनी चाहिए। साथ ही जिंसों के भंडारण और इन्हें रखने की सुविधा भी उपलब्ध किराई जानी चाहिए। ये सब अब हर स्तर पर आवश्यक नियमों के साथ वैज्ञानिक और औपचारिक तरीके से किया जाना है। कृषि के बुनियादी ढांचा विकास के लिए एक लाख करोड़ रुपये की धनराशि को प्रमुख कारक के रूप में देखा जा रहा है जिससे एकल राष्ट्रीय बाजार के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे के विस्तार में भी मदद मिलेगी। हालांकि ई-नाम स्पष्ट रूप से किसानों का मंच है, लेकिन एपीएमसी में होने वाले वास्तविक कारोबार का बामुश्किल 10 से 15 प्रतिशत का संचालन ही यह करता है। लगभग 1,000 एपीएमसी को इस मंच के साथ इलेक्ट्रॉनिक रूप से जोडऩे के बावजूद ऐसा है। सिन्हा का कहना है कि जब राज्य-स्तरीय कारोबार को पारस्परिक आधार पर अनुमति दी जाएगी तो अंतत: एक राष्ट्रीय व्यवस्था तैयार होगी। फिर भंडारण सुविधा जुड़ सकती है। ई-नाम किसानों को इस नेटवर्क के मान्यता प्राप्त गोदामों में सीधे जिंस रखने की अनुमति प्रदान करता है तथा संबंधित राज्यों ने गोदाम को एक मंडी के रूप में घोषित किया है। प्रस्तावित नया केंद्रीय कानून इस मसले से अलग तरीके से निपट सकता है। जब किसी किसान को अपनी उपज सीधे अधिकतम बोली लगाने वाले को बेचने के अधिक विकल्प मिलेंगे और जब उसके पास सही दामों का इंतजार करने के लिए अपना माल गोदाम में रखने की सुविधा होगी, तो ऐसे में उसे बेहतर दाम प्राप्त होंगे।
