देश में घरेलू विमान सेवाओं की दोबारा शुरुआत दिक्कतों से भरी साबित हुई है। कोविड-19 महामारी के कारण कई सप्ताह के स्थगन के बाद आखिरकार सोमवार से एक तिहाई नियमित उड़ानें शुरू होनी थीं। इस दौरान पूरी सतर्कता बरतने की बात कही गई। इसके बजाय अफरातफरी का माहौल बन गया और अकेले दिल्ली हवाई अड्डे पर करीब 80 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। कई यात्रियों को इस बारे में कोई सूचना ही नहीं थी कि उनकी बुकिंग की स्थिति क्या रहेगी? समस्या इसलिए खड़ी हुई क्योंकि केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय हवाई यात्रा शुरू करने के पहले विभिन्न राज्य सरकारों की सहमति हासिल करने में नाकाम रहा। इससे यात्री और विमानन कंपनियां दोनों को कठिनाई हुई। इससे बचा जाना चाहिए था। यह स्पष्ट होना चाहिए कि मौजूदा हालात में रेल और हवाई यात्राओं को बिना संबंधित राज्य सरकारों की मंजूरी के शुरू नहीं किया जा सकता है। एकीकृत रुख अपनाने के बजाय कोविड-19 के राज्यवार जोखिम को देखते हुए विशिष्ट तौर पर भेद करते हुए निर्णय लेना चाहिए था। क्योंकि जमीन पर तो कोविड संकट से राज्यों को ही निपटना है। कुछ जगहों पर अलग तरह की दिक्कत सामने आई। कोलकाता अभी एक बड़े तूफान की तबाही झेल ही रहा है, ऐसे में वहां के हवाई अड्डे को तैयार होने में समय लगना लाजिमी है।
अंतरराज्यीय परिवहन के कुछ अन्य पहलुओं को लेकर भी केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के बीच और अधिक तालमेल की आवश्यकता है। निरस्तीकरण के अलावा क्वारंटीन की प्रक्रिया को लेकर भी भ्रम की स्थिति थी। अधिकांश राज्य सरकारों ने यह निर्णय किया कि अन्य राज्यों से आने वाले यात्रियों को सात से 14 दिन तक संस्थागत रूप से क्वारंटीन किया जाए। कुछ अन्य राज्यों ने ऐसे यात्रियों को एक पखवाड़े तक घर में ही क्वारंटीन करने को अनिवार्य बनाया। यदि पूरे देश में एक नियम लागू करना संभव नहीं है या कहें वांछनीय नहीं है तो कम से कम पूरी तरह पारदर्शिता रखी जानी चाहिए। यात्रियों को समय रहते पूरी सूचना दी जानी चाहिए कि उन्हें किस प्रकार क्वारंटीन किया जाएगा। ऐसे में वे यात्रा के बारे में निर्णय ले सकेंगे। यदि कुछ राज्य पूरे सप्ताह का क्वारंटीन लागू करते हैं तो जाहिर है कम समय की कारोबारी यात्राएं करना असंभव होगा। ऐसे में यह बात समय रहते स्पष्ट होनी चाहिए।
विभिन्न हवाई अड्डों से आ रही खबरें यही संकेत देती हैं कि हवाई अड्डे के अधिकारियों और विमानन कंपनियों ने टर्मिनल पर सामाजिक दूरी लागू करने के लिए प्रावधान किए। इसके बावजूद विमान के भीतर ऐसे नियम न होने से इसका कोई फायदा नहीं होगा। कई विमान यात्रियों से भरे हुए रवाना हुए। यदि ट्रेन में चेयर कार श्रेणी में बीच की सीट खाली छोडऩे की इजाजत दी गई है तो यह स्पष्ट नहीं है कि विमान यात्राओं के लिए ऐसा निर्देश क्यों नहीं जारी किया गया। शायद इसका संबंध उन्हें लाभप्रद बनाए रखने से है। परंतु सही तो यही था कि जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए सामाजिक दूरी को विमान के भीतर भी अपनाया जाता और विमानन कंपनियों को लाभदायक किराया तय करने की छूट दी जाती। इसके बजाय सरकार ने कीमतों का दायरा कम करने की गलती की। मंत्रालय का यह रवैया न तो कोविड-19 का प्रसार रोकने में सहायक होगा और न ही इससे यह तय होगा कि विमानन कंपनियों को वित्तीय झंझावात से न जूझना पड़े। स्पष्ट है कि केंद्र सरकार और खासकर नागर विमानन मंत्रालय को महामारी के दौरान विमान यात्रा में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। चूंकि विमान यात्राएं दोबारा शुरू करने के लिए पर्याप्त समय था इसलिए यह पहले ही कर लिया जाना था। आशा है अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरू करते वक्त ऐसे भ्रम की स्थिति नहीं बनेगी।
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