कम श्रमिकों संग कारखाने चालू लेकिन समस्या बरकरार | |
श्रेया जय / सोनीपत 05 25, 2020 | | | | |
दिल्ली-सोनीपत सीमा पर बसे कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में 800 से ज्यादा औद्योगिक इकाइयां हैं। लेकिन लॉकडाउन की वजह से इनमें से करीब 80 फीसदी इकाइयां बंद पड़ी हैं और जिनमें काम शुरू हुआ है, वे भी काफी कम क्षमता के साथ परिचालन कर रही हैं।
एक प्लास्टिक पैकेजिंग कारखाने के बाहर खड़ी ऋतु का चेहरा दुपट्टे से ढंका था और वह कारखाने में प्रवेश से पहले मुख्य द्वार पर तापमान जांच कराने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही थीं। इलाके में जितनी भी फैक्टरियां खुली हैं, सभी में रोज सुबह इसी तरह की कवायद की जा रही है।
ऋतु करीब दो महीने बाद काम पर लौटी हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या इस दौरान वेतन मिला है? तो उन्होंने कहा कि केवल एक हिस्सा मिला है, जो बुनियादी जरूरतों को पूरा करने भर को था।
हालांकि अन्य कामगार उतने भाग्यशाली नहीं रहे। कुंडली में ही एक श्रमिक ने कहा कि उन्हें दो महीने से कोई भुगतान नहीं किया गया है और न ही सरकार की ओर से राशन दिए गए। इसी कॉलोनी में रहने वाले श्रीनाथ ने कहा, 'हमें किसी ने मास्क तक नहीं दिया। वेतन भी नहीं दिया गया। सरकार की ओर से जो राशन की आपूर्ति की जा रही है वह हम तक नहीं पहुंची है। थोड़ी राहत यह मिली कि हमें किराया नहीं देना पड़ा।' वह और उनके जैसे करीब दर्जन भर लोगों ने कहा कि अब उन्हें समान वेतन पर 12 घंटे काम करने को कहा जा रहा है। पहले 9 घंटे के काम के लिए 8,000 से 9,000 रुपये महीना मिलता था।
इलाके के एक अन्य श्रमिक कॉलोनी में घुसते ही नालियों का पानी सड़कों पर बहता दिखा। अधिकांश निवासियों ने बात करने तक से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि जरूरत के समय कोई नहीं आया, ऐसे में अब शिकायत करने का कोई मतलब नहीं है। इस कॉलोनी में मकान काफी संकरे और घने बनाए गए हैं और कई को तो शौचालय भी साझा करना पड़ा है। सामाजिक दूरी के बारे में श्रमिकों को इतना भर पता है कि फैक्टरी में एक समय पर मुश्किल से 40 से 50 फीसदी श्रमिक काम कर सकते हैं। इससे रोजगार के अवसर भी कम होंगे।
दवाओं की पैकेजिंग करने वाले छोटे संयंत्र के मालिक ने कहा, 'मेरे फैक्टरी के आकार को देखें। आपको लगता है कि मेरे 175 कामगार एकसाथ काम करते हुए 1 मीटर की दूरी का पालन कर सकते हैं।' उन्होंने कहा कि फिलहाल 50 लोगों के साथ कारखाना चलाया जा रहा है, जिसमें ऑफिस कर्मचारी भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा, 'अभी मांग भी कम हो गई है इसलिए कम उत्पादन के साथ हम काम कर सकते हैं। लेकिन मांग बढऩे पर सामाजिक दूरी के दिशानिर्देशों का पालन करना कठिन होगा।'
कुंडली औद्योगिक क्षेत्र के चेयरमैन सुभाष गुप्ता ने कहा कि सरकार एक ओर श्रमिकों को वापस अपने गांव भेज रही है और उद्योगों को कारखाने चालू करने को कह रही है। यह अपने आप में विरोधाभास जैसा है। उन्होंने कहा, 'सरकार हमें कर्ज की पेशकश कर रही है। लेकिन हमें कर्ज की जरूरत नहीं है। हमें बेहतर सड़कें और सस्ती दरों पर बिजली चाहिए। हमें कच्चे माल और मशीनरी के आयात पर प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।' उन्होंने कहा कि कर्ज योजना से बड़ी कंपनियों को मदद मिलेगी, छोटे उद्योगों को नहीं। उन्होंने कहा कि 'लोकल के लिए वोकल' और स्वदेशी उत्पादों को तभी बढ़ावा मिल सकता है जब उद्योग को किफायती बुनियादी ढांचे के जरिये मदद की जाए। बिजली पर फिक्स्ड चार्ज के एक हिस्से में रियायत देने के सरकार के निर्णय पर गुप्ता ने कहा कि यह दिखावा भर है। हरियाणा में फिक्स्ड चार्ज 10,000 रुपये तक घटाया गया है। लेकिन उद्योगों के लिए फिक्स्ड चार्ज लाखों रुपये का है और यह छूट ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इसके बजाय बिजली की दर में कटौती करनी चाहिए थी।
गुप्ता और उनके कार्यालय कर्मचारियों ने कहा कि 10 में से केवल दो फैक्टरी मालिक ही अपने फैक्टरियों में आ पा रहे हैं। अधिकांश दिल्ली में रहते हैं और हरियाणा सरकार हर हफ्ते प्रति व्यक्ति एक पास से ज्यादा जारी नहीं कर रही है। कुंडली से 8 किलोमीटर दूर राई औद्योगिक क्षेत्र की भी स्थिति इसी तरह है। लेकिन यहां कुंडली से कम कारखाने खुले दिखे। राई औद्योगिक संघ के कोषाध्यक्ष अरविंद मनचंदा ने कहा, 'सरकार की कोई भी योजना एमएसएमई के फायदे के लिए नहीं है।' मनचंदा दवा पैकेजिंग कारखाना चलाते हैं। उन्होंने कहा कि उनका निर्यात कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मनचंदा ने कहा, 'मेरे उत्पाद घरेलू बाजार के लिए नहीं हैं और सरकार ने घरेलू बाजार के हित के लिए निर्यात बाजार को बंद कर दिया है। केंद्र के पास कुशल नीति बनाने के लिए दो महीने का वक्त था। लेकिन मौजूदा सुधार कई अड़चनें पैदा करेगी।'
उन्होंने कहा, 'मुझे कर्ज क्यों दिया जा रहा है? मैं इस कारोबार में दशकों से हूं, मैं खुद कर्ज ले सकता हूं। मैं इतना चाहता हूं कि राज्य सरकार बस चलाए जिससे कर्मचारी फैक्टरी पहुंच सकें और बिजली बिलों में कुछ राहत दी जाए।' उन्होंने दिखाया कि फैक्टरी के हर कोने को सैनिटाइजेशन सुविधाओं से लैस किया गया है। उन्होंने कहा कि यह अतिरिक्त लागत है और सरकार से इसमें कोई मदद नहीं मिली है। राई में एक फैक्टरी में काम करने वाले रवि ने कहा, 'मैंने अखबार में 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के बारे में पढ़ा। बहुत बड़ा पैकेज है पर समझ में नहीं आया कि मुझे कितना मिलेगा।' वह उत्तर प्रदेश में अपने गांव नहीं जा पाए और यहां काम शुरू नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि अप्रैल में वेतन मिला था लेकिन मई में कुछ नहीं मिला। जब तक बैंक खाते में पैसा नहीं आएगा तो मैं आत्मनिर्भर कैसे बनूंगा।
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