नियमित स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों में कोविड-19 शामिल | |
नम्रता आचार्य / 05 24, 2020 | | | | |
बीएस बातचीत
भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) कोविड-19 से मुकाबले के लिए पॉलिसीधारकों और बीमा प्रदाताओं दोनों को विभिन्न तरह की छूटें दे रहा है। आईआरडीएआई के चेयरमैन सुभाष चंद्र खुंटिया ने नम्रता आचार्य के साथ ई-मेल के जरिये हुई बातचीत में कुछ हस्तक्षेपों और आगे की राह चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:
बीमा क्षेत्र ने किस तरह से संकट का मुकाबला किया है और क्या कुछ किए जाने की जरूरत है?
भारतीय बीमा उद्योग अप्रत्याशित स्थिति से मुकाबले के लिए तेजी से खुद को तैयार करने में सफल रहा। लॉकडाउन के दौरान बीमाकर्ताओं ने डिजिटल संचार के माध्यम से घर से काम करना आरंभ कर दिया था।
आईआरडीएआई ने लॉकडाउन से काफी पहले ही बीमाकर्ताओं को परामर्श जारी कर दिया था जिसमें मौजूदा पॉलिसियों के तहत कोविड-19 को कवर किए जाने को लेकर स्पष्टीकरण दिया गया था। आईआरडीएआई ने बीमाकर्ताओं को कोविड-19 से संबंधित दावों को तेजी से निपटाने के भी निर्देश दिए थे। प्रीमियम के भुगतान के लिए अतरिक्त समय दिया गया जबकि उस दौरान चालू जीवन, स्वास्थ्य और वाहन थर्ड पार्टी पॉलिसियों के तहत कवरेज को बरकरार रखा गया था।
बीमाकर्ताओं ने प्रीमियम के भुगतान के लिए डिजिटल और वैकल्पिक उपाय किए हैं। इनमें से कई ने विशेष तौर पर कोविड से संबंधित उत्पाद शुरू किए हैं। आईआरडीएआई ने उन्हें उभरते जोखिमों का मूल्यांकन करने के बाद कारोबार को जारी रखने की योजनाएं (बीसीपी) तैयार करने का निर्देश दिया है ताकि पूंजी संरक्षण जैसे जरूरी किफायती कदम उठाए जा सकें, बाजार संचालित नियमों का पालन हो और ग्राहकों की वास्तविक जरूरतों का पता लगाया जाए। आदेश के मुताबिक सभी सामान्य और स्वास्थ्य बीमाकर्ताओं ने एक मानक स्वास्थ्य उत्पाद आरोग्य संजीवनी शुरू की है।
बीमा क्षेत्र पर पडऩे वाले दीर्घावधि और लघु अवधि के असर को लेकर आपका क्या आकलन है?
लघु अवधि में आवाजाही और ग्राहकों के साथ आमने सामने के संपर्क की मनाही के कारण कुछ बाधाएं रही हैं। आर्थिक गतिविधि में कटौती से मांग में कमी आ सकती है। इसी तरह से, बाजार के उतार चढ़ाव ने बीमाकर्ताओं के परिसंपत्ति मूल्यांकन पर दबाव डाला है।
इस संकट ने असंगठित क्षेत्र में कामगारों की असुरक्षा को उजागर कर दिया है। इनको लेकर बीमा क्षेत्र किस तरह की भूमिका निभा सकता है?
केंद्र सरकार पहले ही ऐसे लोगों के जीवन, व्यक्तिगत दुर्घटना और स्वास्थ्य कवरेज के लिए प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को प्रायोजित कर रही है। बहुत सी राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय भी विभिन्न असुरक्षित और कम आय वाले लोगों के लिए बीमा कवरेज प्रायोजित कर रहे हैं। इन लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सूक्ष्म बीमा उत्पाद पहले से ही मौजूद हैं।
आईआरडीएआई ने सभी बीमाकर्ताओं को यह सिफारिश की है कि वे वहन करने योग्य प्रीमियम के साथ आरोग्य संजीवनी नाम से एक मानक स्वास्थ्य उत्पाद पेश करें जिसकी कवरेज 1.5 लाख रुपये से शुरू हो।
बहुत सी स्वास्थ्य बीमा कंपनियां कोविड-19 के लिए विशेष कवर की पेशकश कर रही हैं। हालांकि, कुछ मामलों में प्रीमियम काफी अधिक है। क्या मौजूदा स्वास्थ्य पॉलिसियों में इन जोखिमों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए?
नियमित पॉलिसियों में कोविड-19 को कवर किया गया है। बिना किसी नियमित स्वास्थ्य पॉलिसी वालों की सहायता करने और मौजूदा पॉलिसीधारकों को अतिरिक्त कवरेज मुहैया कराने के लिए आईआरडीएआई ने बीमाकर्ताओं को कोविड पर केंद्रित विशेष उत्पाद लाने की सलाह दी थी। इन उत्पादों में कोरोनावायरस से जुड़े विशेष लाभ दिए जाते हैं। ये उत्पाद विशेष तौर पर निर्मित, जोखिम श्रेणी में नए हैं और लोग इन पॉलिसियों का इस्तेमाल किसी नियमित स्वास्थ्य बीमा के अंतर्गत मिलने वाले बीमा लाभों का उपयोग किए बिना इसके लाभों का दावा करने के लिए कर सकते हैं। इसकी प्रीमियम बहुत सस्ती होगी।
आईआरडीएआई ने इस क्षेत्र में नवाचार के लिए पहले सैंडबॉक्स व्यवस्था उतारी थी। क्या हम उम्मीद करें कि आईआरडीएआई कुछ उसी तरह की नई व्यवस्था ला सकता है?
आईआरडीएआई को नियामकीय सैंडबॉक्स पहल से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है जिसे इस क्षेत्र में नवाचार लाने के लिए शुरू किया गया था। हम पहले ही 73 प्रस्तावों की मंजूरी दे चुके हैं। इस पहल को जारी रखा जाएगा।
बीमा में एफडीआई बढ़ाने को लेकर आपके क्या विचार हैं? मध्यवर्ती संस्थाओं जिनमें 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति दी गई थी, उसको लेकर अनुभव कैसा रहा है?
बीमा कंपनियों के लिए विदेशी निवेश की सीमा में किसी तरह का बदलाव करने के लिए बीमा अधिनियम, 1938 में संशोधन करने की जरूरत होगी। केंद्र ने पिछले बजट में बीमा की मध्यवर्ती संस्थाओं में विदेशी निवेश की सीमा को समाप्त कर दिया था।
स्वास्थ्य देखभाल का बुनियादी ढांचा खासकर महाराष्ट्र में अत्यंत दबाव में हैं। ऐसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को समर्थन देने के लिए क्या आपको कुछ विशिष्ट व्यवस्थाओं की जरूरत महसूस होती है?
सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे में खर्च को बढ़ाने, स्वास्थ्य देखभाल की शिक्षा सुविधाओं को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र में निजी निवेश की सुविधा प्रदान करने की केंद्र और राज्यों की पहलों से जरूरतों को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
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