विनिर्माण पर अनिश्चितता का असर | अमृता पिल्लई, अदिति दिवेकर और शैली सेठ मोहिले / मुंबई May 23, 2020 | | | | |
चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि के काफी कम रहने का भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का अनुमान काफी हद तक निजी क्षेत्र में विनिर्माण गतिविधियों के दौरान मांग एवं आपूर्ति शृंखलाओं में आया गतिरोध है।
विनिर्माण गतिविधियों में निजी क्षेत्र का अंशदान 75 फीसदी से भी अधिक होने से इसके कोविड संकट के बाद सामान्य स्थिति में आने में कुछ और महीने लग सकते हैं। हालांकि इसकी शर्त यह है कि मांग फिर से तेजी पकड़े।
इंजीनियरिंग एवं पूंजीगत उत्पादों के संबंध में विश्लेषकों का अनुमान है कि 2020-21 की पहली तिमाही में इनका राजस्व 20-50 फीसदी तक गिर जाएगा। एक विश्लेषक ने कहा, तिमाही खत्म होने में अभी वक्त होने से नए ऑर्डर मिलने पर इसके असर के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है। हालांकि कुल आंकड़े तो नकारात्मक ही रहने वाले हैं। लेकिन इसकी मात्रा लॉकडाउन जारी रहने की मियाद पर निर्भर करती है।
ब्रोकरेज फर्म शेयरखान के विश्लेषक भरत ज्ञानी को लगता है कि इस वित्त वर्ष में ऑटो बिक्री, उत्पादन एवं आपूर्ति दोनों मोर्चों पर हालत खराब रहने से दो अंकों तक गिरावट में रहेगी। करीब छह हफ्ते की बंदी के बाद ऑटो कंपनियों ने अपने संयंत्रों में सीमित क्षमता के साथ काम करना शुरू कर दिया है। इसके पहले अप्रैल के महीने में कोई भी वाहन नहीं बिकने का रिकॉर्ड भी बना था। ज्ञानी कहते हैं, अधिकांश ऑटो कंपनियां अभी 30-40 फीसदी क्षमता पर ही काम कर रही हैं और उनके अपने शीर्ष स्तर पर पहुंचने में लंबा वक्त लगेगा।
कार बाजार की अग्रणी मारुति सुजूकी इंडिया भी हालात को लेकर सजगता दिखा रही है। मारुति के कार्यकारी निदेशक शशांक श्रीवास्तव ने कहा, बाजार के फिर से रफ्तार पकडऩे का समय बता पाना मुश्किल है। कार खरीद हमेशा ही एक विवेकाधीन मामला होता है। काफी कुछ धारणाओं पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि दो महीने बाद मांग के बारे में थोड़ी बेहतर तस्वीर दिख सकती है।
जहां तक सीमेंट क्षेत्र का सवाल है तो लॉकडाउन संबंधी बंदिशों में निर्माण गतिविधियों की मंजूरी देने के बाद से ही सीमेंट की मांग आने की उम्मीद थी लेकिन राजस्व एवं उत्पादन दोनों ही मोर्चों पर हालात कुछ बेहतर नहीं हैं। डालमिया सीमेंट के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ और सीमेंट उत्पादक संघ के प्रमुख महेंद्र सिंघी कहते हैं, सभी सीमेंट कंपनियों ने अपने संयंत्र चालू कर दिए हैं और जरूरत के हिसाब से आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं। लेकिन अभी मांग आनी बाकी है। सड़क निर्माण क्षेत्र से मांग आने लगी है लेकिन शहरी एवं बड़े केंद्रों से मांग आने की राह में कई चुनौतियां हैं। हालत यह है कि इस समय सीमेंट की मांग महज 40-50 फीसदी ही है। सांघी का अनुमान है कि इस पूरे साल की बिक्री एवं राजस्व दोनों ही 20-30 फीसदी कम रह सकते हैं।
वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि अगले दो-तीन महीनों में श्रमिकों की समुचित उपलब्धता न होने से निर्माण गतिविधियों एवं सीमेंट की मांग कम रहने के आसार हैं।
जेएसडब्ल्यू सीमेंट के मुख्य कार्याधिकारी निलेश नार्वेकर कहते हैं, ढांचागत व्यय से मांग आती हुई दिख रही है लेकिन सीमेंट उद्योग के लिए व्यस्त सीजन तो मार्च-अप्रैल-मई ही होता है।
स्टील क्षेत्र भी निर्माण गतिविधियों से जुड़ा हुआ है। इसने ढांचागत विकास पर जोर से अपनी उम्मीदें लगाई हुई हैं लेकिन मांग में क्रमिक वृद्धि ही हो रही है। जेएसडब्ल्यू स्टील अपनी क्षमता से उत्पादन के लिए प्रयासरत है लेकिन आने वाले समय में घरेलू मांग परिदृश्य शिथिल ही रहने के आसार हैं। इसकी वजह यह है कि ऑटो, निर्माण, इंजीनियरिंग एवं पूंजीगत उत्पाद जैसे क्षेत्रों के ग्राहकों को अपना परिचालन शुरू करने में भी वक्त लगने वाला है।
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