अमेरिका में सूचीबद्ध होना मुश्किल | समी मोडक / मुंबई May 22, 2020 | | | | |
अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज द्वारा सूचीबद्धता नियमों को सख्त किए जाने और अनुपालन न करने वाली कंपनियों की सूचीबद्धता खत्म करने के प्रस्ताव से विश्व की सबसे बड़े बाजार में शेयरों की खरीद-फरोख्त करने की चाहत रखने वाली भारतीय कंपनियों के लिए राह मुश्किल होती दिख रही है। इसी सप्ताह अमेरिकी सीनेट में एक कानून पारित किया गया है जिसके अनुसार गैर-अमेरिकी कंपनियों को अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने के लिए कई सख्त मानदंडों को पूरा करने की आवश्यकता होगी।
इसके अलावा नैसडैक सहित स्टॉक एक्सचेंज आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के लिए सख्त नियमों को लागू करने की योजना बना रहे हैं। इन नियमों में यह भी शामिल होगा कि कंपनियों को न्यूनतम 2.5 करोड़ डॉलर जुटाने अथवा कम से कम 25 फीसदी शेयर बचने की आवश्यकता होगी।
विशेषज्ञों ने कहा कि अमेरिका ने मुख्य तौर पर चीन को ध्यान में रखते हुए नियामकीय ढांचे को सख्त करने का निर्णय लिया है लेकिन इसका प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ेगा। सूचीबद्धता ढांचे में सख्ती का निर्णय ऐसे समय में लिया जा रहा है जब भारत घरेलू कंपनियों को सीधे विदेश में सूचीबद्ध होने के लिए अनुमति देने को तैयार है। प्रौद्योगिकी क्षेत्र के शेयरों पर केंद्रित स्टॉक एक्सेचेंज नैसडैक विदेश में सूचीबद्धता के लिए स्टार्टअप और नए जमाने की कंपनियों के लिए पसंदीदा स्टॉक एक्सचेंज माना जाता है।
इंडसलॉ के पार्टनर विशाल यदुवंशी ने कहा, 'आमतौर पर चीनी कंपनियां विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) के तौर पर अमेरिकी बाजार तक पहुंचती हैं जिन्हें अमेरिकी कंपनी के मुकाबले तमाम तरह की सुविधाएं मिलती हैं। भारतीय अथवा कोई अन्य विदेशी कंपनी भी उसी मार्ग से अमेरिकी बाजार तक पहुंचकर लाभ उठाती है। यह मान लेना उचित है कि नैसडैक या एनवाईएसई द्वारा कोई भी बदलाव किसी विशेष देश के बजाय जारीकर्ता की इस श्रेणी पर लागू होगा। इसलिए एफपीआई के लिए नियमों में किसी भी सख्ती से भविष्य में भारतीय कंपनियां भी प्रभावित होंगी।'
हाल के वर्षों में अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्रों ने अधिक से अधिक कंपनियों को सूचीबद्धता के लिए प्रोत्साहन करने के उद्देश्य से अनुपालन नियमों को उदार बनाया था। एलऐंडएल पार्टनर्स के पार्टनर जितेश साहनी ने कहा कि नए प्रस्ताव से केवल छोटी कंपनियां प्रभावित होंगी जो अमेरिका में सूचीबद्ध होना चाहती हैं।
फिलहाल विदेशी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने की चाहत रखने वाली भारतीय कंपनियों को पहले घरेलू स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होना पड़ता है और फिर घरेलू शेयरों के साथ डिपॉजिटरी रिसीट (डीआर) जारी करना पड़ता है। विदेशी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने का एक अन्य तरीका होल्डिंग कंपनी के जरिये है। इसके लिए विदेश में कंपनी स्थापित करने और बाद में उसे सूचीबद्ध कराने की जरूरत होती है।
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