कोविड संकट में गैर-बासमती चावल निर्यातकों को उम्मीद | वीरेंद्र सिंह रावत / लखनऊ May 21, 2020 | | | | |
कोविड-19 के लॉकडाउन ने हालांकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार और शेयर बाजारों को नुकसान पहुंचाया है, लेकिन भारतीय गैर-बासमती चावल भागीदारों ने इस बढ़ते संकट के बीच विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशियाई और अफ्रीकी देशों में निर्यात के अवसर तलाश लिए हैं।
वियतनाम और थाईलैंड में गैर-बासमती धान की फसल विफल रहने के साथ-साथ कोविड-19 की अनिश्चित स्थिति से निपटने के लिए प्रमुख उत्पादक देशों द्वारा बफर खाद्य स्टॉक निर्मित करने की योजना के रुख ने भारतीय निर्यातकों के सामने आकर्षक अवसर प्रस्तुत किया है।
चावल निर्यातक संघ (टीआरईए) के कार्यकारी निदेशक राजीव कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इन सभी कारकों तथा इस तथ्य को देखते हुए कि भारत में फिलहाल सामान्य चावल बफर स्टॉक तीन गुना है, हमारे पास निर्यात गंतव्यों तक पहुंचने का बड़ा अवसर है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को निर्यातकों को प्रोत्साहन के साथ सुविधा प्रदान करनी चाहिए ताकि घरेलू भागीदारों को खजाना भरने के अलावा लाभ भी मिल सके।
उन्होंने कहा कि पिछले साल गैर-बासमती चावल निर्यात में लगभग 25 फीसदी तक की गिरावट आई थी जिसके परिणामस्वरूप बड़ा स्टॉक बन गया। मौजूदा साल निर्यातकों के लिए बहुत अच्छा दिख रहा है। इंडोनेशिया, मलेशिया आदि के साथ निर्यात अनुबंध किए जा चुके हैं, जबकि नाइजीरिया समेत अफ्रीका महाद्वीप में समान अवसर मौजूद हैं।
अलबत्ता इस संबंध में एक प्रमुख नकारात्मक कारक आंध्र प्रदेश में धान की आवाजाही पर प्रतिबंध है जिससे प्रमुख बंदरगाह काकीनाडा से निर्यात बाधित हो रहा है। वार्षिक चावल निर्यात में इसका योगदान 35 से 40 फीसदी तक रहता है। उन्होंने बताया कि हालांकि लॉकडाउन के कारण जिंसों की ढुलाई से जुड़ी अन्य लॉजिस्टिक संबंधी दिक्कतें हैं, लेकिन धान की मुक्त आवाजाही पर प्रतिबंध वर्तमान में एक बड़ी नकारात्मक बात है, क्योंकि काकीनाडा चावल खेप का बंदरगाह है।
आम तौर पर पड़ोसी राज्यों से धान आंध्र प्रदेश में मिलिंग के लिए लाया जाता है और बाद में निर्यात के लिए बंदरगाहों पर ले जाया जाता है। हालांकि भारतीय गैर-बासमती चावल निर्यात का मूल्य लगभग 22,000 करोड़ रुपये है, लेकिन पिछले साल एक प्रमुख कर प्रोत्साहन वापस लिए जाने के बाद इसमें काफी गिरावट आ गई थी जिसने घरेलू निर्यात के दामों को गैर-प्रतिस्पर्धी कर दिया था।
कुमार का कहना है कि अगर हम सक्रियता से आगे बढ़ते हैं और सरकार समय पर अपनी मदद का दायरा बढ़ाती है, तो इस साल गैर-बासमती चावल निर्यात में 20 फीसदी से अधिक इजाफा करने का बड़ा मौका है।
इस बीच उद्योग ने केंद्र से आग्रह किया है कि निर्यात उत्पादों पर शुल्क या कर छूट (आरओडीटीईपी) लागू होने तक भारत से वस्तु निर्यात योजना (एमईआईएस) के तहत पांच प्रतिशत प्रोत्साहन की अनुमति प्रदान की जाए। आरओडीटीईपी निर्यातकों के लिए कर या शुल्क यथा - मूल्य संवर्धित कर, कोयला उपकर, मंडी कर, बिजली शुल्क आदि लौटाने की योजना है।
दरअसल, टीआरईए वर्ष 2022 तक गैर-बासमती चावल निर्यात को बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्य बना रहा है। दूसरी ओर बासमती चावल निर्यात में सबसे बड़े आयातक देश ईरान के कारण मंदी बनी हुई है। पिछले साल अमेरिका-ईरान के बीच तकरार और इस साल कोविड-19 संकट के कारण यह गिरावट आई है।
बासमती चावल के शीर्ष व्यापारिक संगठन अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ (एआईआरईए) के कार्यकारी निदेशक विनोद कौल ने कहा कि दिसंबर 2020 से ईरान पर बासमती चावल निर्यात का बकाया भुगतान 1,700 करोड़ रुपये है। कोरोना संकट ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
ईरान भारतीय बासमती चावल का शीर्ष बाजार है। वार्षिक निर्यात में इसका योगदान 33 फीसदी रहता है। पहले लगाए गए तरह के प्रतिबंधों के दौरान ईरान ने बासमती आयात के लिए एक भुगतान प्रणाली के जरिये अपने भंडार (भारत को कच्चे तेल का निर्यात करने के एवज मेंं) का उपयोग किया था। वर्ष 2018 के अंत में फिर से यही प्रणाली दोबारा शुरू की गई थी।
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