विस्थापित श्रमिकों को नकद सहायता से क्यों बचा गया? | शुभमय भट्टाचार्य / नई दिल्ली May 18, 2020 | | | | |
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत आवंटन में 40,000 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी विस्थापित श्रमिकों को तत्काल राहत देने की सरकार की योजना के करीब बराबर ही है, लेकिन परिचालन संबंधी कठिनाइयों के कारण यह वितार त्याग दिया गया।
पिछले 2 महीने के दौरान लगातार जमीनी स्थिति में बदलाव को देखते हुए नकद राहत देने की योजना टाल दी गई। 14 अप्रैल को पहली देशबंदी की अवधि खत्म होने के बाद केंद्र सरकार को यह साफ हो गया कि नौकरियां छूटने के बाद विस्थापित श्रमिक पैदल निकल पड़े हैं और उन्हें विशेष सहायता दिए जाने की जरूरत है।
इस राशि को लेकर चर्चा हुई और यह साफ हो गया कि दी जाने वाली राशि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत प्रस्तावित समर्थन के बराबर होगी।
इस विषय पर आर्थिक पैकेज तैयार किए जाते समय चर्चा की गई। वित्त मंत्रालय के सामने चुनौती यह थी कि श्रमिकों तक लाभ कैसे पहुंचाया जाए। स्वाभाविक है कि नकदी समर्थन सीधे उनके बैंक खातों में जाता, लेकिन इसमें समस्या यह है कि विस्थापित मजदूरों का कोई देशव्यापी आंकड़ा नहीं है।
इस मामले से जुड़े एक शीर्ष सूत्र ने कहा, 'आंकड़े उस तरह नहीं थे, जैसा कि पीएमजीकेवाई के लिए उपलब्ध हैं। ऐसे में यह संभव नहीं था कि बगैर किसी भेदभाव के खातों में पैसे भेजे जा सकें।' केंद्र सरकार ने राज्यों से यह जानने की कवायद की कि क्वारंटीन कैंपों में कितने लोग हैं और उनके नाम व नंबरों की जानकारी दी जाए। सरकार ने पाया कि यह बहुत बड़ी कवायद होगी।
बहरहाल इस बीच श्रमिकों की घर वापसी बहुत बढ़ गई। अप्रैल के आखिर में सैकड़ों मजदूर कैंपों से निकलकर मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए। इसी तरह की स्थिति सूरत सहित अन्य कई शहरों में हो गई।
केंद्र सरकार को रेलवे को अनुमति देनी पड़ी कि वह देश भर में श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाए, जिससे विस्थापित श्रमिकों को उनके घर पहुंचाने में मदद की जा सके। एक मई से ट्रेनें चलनी शुरू हो गईं। जब विस्थापित श्रमिक कैंपों से बाहर निकलने लगे तो वित्त मंत्रालय ने फंसे मजदूरों की गणना बंद करवा दी।
सूत्र ने कहा, 'हमारी समस्या यह थी कि हम इसे श्रमिकों के सामने सार्वजनिक करके उन्हें कैंपों में इंतजार करने को नहीं कह सकते थे। यह मानवीय विकल्प नहीं था।'
हालांकि सरकार में इस बात पर आम सहमति थी कि श्रमिकों तक मदद पहुंचनी चाहिए। आर्थिक पैकेज बनाने वाले सरकार के प्रबंधकों ने पाया कि यह श्रमिक ग्रामीण इलाकों के हैं। उसके बाद यह साफ हो गया कि उनके पास धन भेजने का बेहतर तरीका यह है कि मनरेगा के माध्यम से ऐसा किया जाए। बेरोजगार श्रमिक इस योजना के तहत काम पा सकेंगे और इस तरह से ग्रामीण कामों की योजना के लिए आवंटन कर दिया गया।
यही वजह है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक पैकेज की घोषणा के अंतिम चरण में पांचवें दिन इसका ब्योरा दिया।
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