बंदी में वेतन अनिवार्य नहीं | सोमेश झा / नई दिल्ली May 18, 2020 | | | | |
केंद्र सरकार ने देशबंदी में औद्योगिक इकाइयां बंद रहने के दौरान अनिवार्य रूप से वेतन भुगतान किए जाने का अपना आदेश वापस ले लिया है। यह कारोबारियों के लिए बड़ी राहत है।
गृह मंत्रालय ने रविवार को नए सिरे से दिशानिर्देश जारी किए, जो सोमवार से लागू हुआ है। इसमें 29 मार्च 2020 को दिया गया आदेश वापस ले लिया गया है, जिसमें देशबंदी के दौरान कंपनियों को अनिवार्य रूप से वेतन भुगतान के निर्देश दिए गए थे। इसमें कहा गया है, 'इस आदेश से जारी दिशानिर्देशों के बाद एनईसी (नैशनल एग्जुक्यूटिव कमेेटी) की ओर से आपदा प्रबंधन (डीएम) अधिनियम 2005 की धारा 10 (2) (1) के तहत जारी आदेश 18.05.2020 से प्रभावी नहीं होंगे।'
इस आदेश के अनुलग्नक में मानक परिचालन प्रक्रिया के 6 प्रारूप दिए गए हैं, जो ज्यादातर लोगों की आवाजाही से जुड़े हैं, वे बने रहेंगे। लेकिन इसमें 29 मार्च को जारी आदेश शामिल नहीं है।
गृह मंत्रालय की ओर से 29 मार्च को जारी आदेश में नियोक्ताओं से कहा गया था कि अगर प्रतिष्ठान लॉकडाउन की वजह से बंद है, जब भी उसे बगैर कटौती किए गए कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करना है। इसमें कहा गया था, 'सभी नियोक्ता, चाहे वे उद्योग हों या दुकानदार या वाणिज्यिक प्रतिष्ठान, सभी को अपने कर्मचारियों का भुगतान देशबंदी की वजह से हुई बंदी की अवधि के वेतन की कटौती के बिना करना होगा।'
पिछले कुछ दिनों से उद्योग सरकार से अनुरोध कर रहे थे कि अनिवार्य रूप से वेतन भुगतान का आदेश वापस लिया जाए, क्योंकि वह नकदी की समस्या से जूझ रहे हैं। कुछ उद्योग संगठनों ने सरकार से यह भी कहा था कि अनुदान के भुगतान के माध्यम से कंपनियों को वेतन का बिल दिया जाए, लेकिन वित्तीय संकट की वजह से इस पर सहमति नहीं बन सकी।
वेतन को लेकर सरकार के आदेश की संवैधानिक वैधता को कुछ कंपनियों ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। शुक्रवार को शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि उन निजी कंपनियों पर दंडात्मक कार्रवाई न की जाए, जो श्रमिकों को वेतन का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। इस सप्ताह उच्चतम न्यायालय को इस याचिका पर सुनवार्ई करनी थी। न्यायालय ने सरकार को अपने फैसले पर फिर से विचार करने को कहा था।
मजदूर संगठनों ने आदेश वापस लेने के सरकार के फैसले की आलोचना की है। न्यू ट्रेड यूनियन इनीशिएटिव के महासचिव गौतम मोदी ने कहा, 'लॉकडाउन 4 में दिया कया आदेश नियोक्ताओं द्वारा भुगतान न दिए जाने के पक्ष में है। वेतन का भुगतान नहीं मिलेगा, उसके एवज में कोई सब्सिडी नहीं मिलेगी तो श्रमिक कहां जाएगा? जो श्रमिक रेड जोन में रहता है या जो श्रमिक ग्रीन या ऑरेंज जोन में रहता है और उसे सार्वजनिक परिवहन की सुविधा नहीं मिल रही है, वह क्या करेगा? इसके लिए किसकी जवाबदेही होगी?'
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