'आर्थिक पैकेज का नहीं मिलेगा ज्यादा सहारा, अर्थव्यवस्था में आएगी भारी गिरावट' | पुनीत वाधवा और इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली May 18, 2020 | | | | |
अमेरिका स्थित निवेश प्रबंधन कंपनी बर्नस्टीन ने वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था में 7 फीसदी का संकुचन आने का अनुमान जताया है, वहीं गोल्डमैन सैक्स ने यह 5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। ऐसे अनुमान तब भी जताए जा रहे हैं जबकि सरकार ने पिछले हफ्ते पांच दिनों तक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है।
एक ओर जहां बर्नस्टीन ने प्रोत्साहन पैकेज के बाद अपने अनुमानों में कोई बदलाव नहीं किया है, वहीं गोल्डमैन सैक्स ने 0.4 फीसदी के संकुचन के अपने पहले अनुमान से तीव्र संकुचन होने का अनुमान जताया है। बर्नस्टीन की दुनिया भर में करीब 623 अरब डॉलर की संपत्ति है।
नोमुरा ने भी प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा के बावजूद वित्त वर्ष 2021 में पांच फीसदी संकुचन आने के अपने अनुमान को बरकरार रखा है। बोफा सिक्योरिटीज ने वित्त वर्ष 2021 में 0.1 फीसदी और पहली तिमाही में 12 फीसदी संकुचन का अनुमान जताया है।
केयर रेटिंग्स ने अर्थव्यवस्था के 1.1 फीसदी से 1.2 फीसदी की दर से बढऩे का अनुमान जताया है। हालांकि, उसके मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि अनुमान को संशोधित कर इसे घटाया जाएगा और जीडीपी में कमी आने की आशंका है।
इक्रा अर्थव्यवस्था में 1 से 2 फीसदी के संकुचन के अपने अनुमान पर टिकी हुई है। उसकी मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि लॉकडाउन की लंबी अवधि के कारण सरकार की ओर से मुहैया कराई गई सहायता कोई ठोस असर नहीं छोड़ पाएगी। सरकार ने कुछ छूट के साथ लॉकडाउन की अवधि में दो हफ्तों का इजाफा कर इसे 31 मई तक के लिए लागू कर दिया है।
बर्नस्टीन के विश्लेषकों का कहना है कि विगत कुछ दिनों में सरकार की ओर से घोषित राहत पैकेज एक चूका हुआ अवसर है।
बर्नस्टीन ने कहा कि एक बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा की चाहत, कुछ ऐसा कि दुनिया को लगे कि वे अर्थव्यवस्था की चिंता करते हैं और वैश्विक स्तर पर राहत पैकेज के आंकड़ों से मेल खाने की इच्छा ने शायद बड़े पैकेज का दावा करने के लिए प्रेरित किया।
बर्नस्टीन के वेणुगोपाल गार्रे, अंकित अग्रवाल और रंजीत जायसवाल ने रिपोर्ट में लिखा, 'भले ही पैकेज महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर शुरू हुआ, लेकिन ऊपर से नीचे तक की संख्या को जोडऩे वाले उपायों की घोषणा की जरूरत ने समूचे पैकेज को ही लक्ष्य से भटका दिया। इसमें कई सामान्य घोषणाएं की गईं, जो आदर्श रूप में सामान्य आर्थिक एजेंडा का हिस्सा होती हैं। कुल मिलाकर हम इसे एक चूके हुए अवसर के रूप में देखते हैं।'
पिछले कुछ दिनों से सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पैकेज की घोषणा की है। कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए करीब 2 महीने से कामकाज ठप है। सरकार ने सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के नए कर्ज पर क्रेडिट गारंटी दी है और रोजगार गारंटी कार्यक्रम के माध्यम से गरीबों व विस्थापितों को मदद पहुंचाई है। साथ ही गरीबों व विस्थापितों के लिए भोजन के प्रावधान को बर्नस्टीन के अमेरिका स्थित मुख्यालय से समर्थन मिला है, वहीं यह भी कहा गया है कि मनरेगा के विस्तार से श्रम की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है क्योंकि गांवों में विस्थापित हो चुके लोग वापस नौकरियों पर नहीं लौटेंगे। इसकी वजह से निर्माण व परिवहन क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है।
गोल्डमैन सैक्स के एशिया प्रशांत के प्रमुख अर्थशास्त्री एंड्र्यू टिल्टन ने प्राची मिश्रा के साथ मिलकर लिखे लेख में कहा है, 'कई क्षेत्रों के लिए पिछले कुछ दिनों में तमाम ढांचागत सुधारों की घोषणा की गई है। यह सभी सुधार मध्यावधि हिसाब से हैं और ऐसे में हम कोई उम्मीद नहीं करते कि वृद्धि तत्काल बहाल होने में इनसे कोई मदद मिलेगी।'
नोमुरा ने कहा कि सरकार को आने वाली तिमाहियों में और कदम उठाने पड़ेंगे, जिससे वृद्धि बहाल हो सके। इसमें मांग के क्षेत्र में प्रोत्साहन देने के साथ साथ वित्तीय क्षेत्र को समर्थन शामिल होगा।
इसमें कहा गया है कि जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर घोषित किए गए पैकेज का ज्यादातर हिस्सा उच्च आक स्मिक देनदारियों (गारंटी) के लिए है, जो जीडीपी का 2.5 प्रतिशत है। वहीं केंद्र सरकार के बजट से (सभी पैकेजों के वित्तीय असर को मिलाकर) सिर्फ जीडीपी का 8 प्रतिशत ही जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है, 'इस तरह से सरकार ने न्यूनतम खर्च के साथ बड़ा धमाका करने की कोशिश की है।'
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