निर्णायक दौर | संपादकीय / May 18, 2020 | | | | |
लॉकडाउन का चौथा चरण शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वादे पर खरा न उतरे जिसमें उन्होंने कहा था कि यह पिछले तमाम लॉकडाउन से एकदम अलग रहेगा। परंतु एक अलग बात यह है कि हर बार की तरह इस बार सबकुछ केंद्र नहीं तय कर रहा है। यह एक अनकहा सच है कि इस विशाल देश में कोविड-19 का प्रसार अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग है। ताजा लॉकडाउन में 31 मई तक की व्यापक रूपरेखा निर्धारित की गई है और ब्योरा राज्यों पर छोड़ दिया गया है। ताजा नियम रोकथाम वाले इलाके के बाहर बाजार (मॉल को छोड़कर), कार्यालय, उद्योग और कारोबार खोलने में काफी छूट की वकालत करते हैं। हालांकि शैक्षणिक संस्थान बंद रहेंगे। हवाई यात्राओं और मेट्रो रेल सेवा पर प्रतिबंध जारी रहेगा। धार्मिक कार्यक्रमों के लिए लोगों के एकत्रित होने पर रोक जारी रहेगी। सबसे समझदारी भरी बात है कार्यालय जाने वालों के लिए आरोग्य सेतु ऐप को डाउनलोड करने को अनिवार्य से मशविरे में बदलना। इसके निजता मानकों की कमजोरी और हैकिंग की आशंका को देखते हुए यह बेहतर कदम है।
कुछ राज्यों ने संक्रमण क्षेत्र से बाहर अपने अलग मानक बनाने की दिशा में सहजता से पहल की है। कर्नाटक ने चार राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और तमिलनाडु से लोगों के अपने यहां आने पर रोक लगा दी है। वहां प्रत्येक रविवार को पूरी तरह लॉकडाउन लागू रहेगा। हालांकि प्रदेश में कारोबारों को लेकर मानक काफी शिथिल किए गए हैं। केरल ने शहरी इलाकों में बस सेवा शुरू कर दी है लेकिन अंतरराज्यीय और अलग-अलग जिलों के लिए बस सेवा बंद रहेगी। दिल्ली ने भी ऐसा ही किया है लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में यात्रा के मानक अभी तक स्पष्ट नहीं हैं। हरियाणा, नोएडा और गाजियाबाद में अब तक स्थानीय प्रशासन के आधिकारिक पास के माध्यम से आवागमन की व्यवस्था चली आ रही थी। यहां घर से काम करने का मशविरा भी जारी किया गया। पुदुच्चेरी में बंदी के दौरान भी शराब की बिक्री की अनुमति दी गई है।
इस चरणबद्ध खुलेपन से राज्यों की अर्थव्यवस्था पर दबाव थोड़ा कम होगा। दो माह से कारोबारी गतिविधियां ठप रहने के कारण उनका राजस्व बुरी तरह प्रभावित हुआ है। बहरहाल, कारोबार की चरणबद्ध शुरुआत होने के बाद भी काफी अनिश्चितता बरकरार रहेगी। कई कारोबारों ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों को लेकर चिंता जताई है। यह कानून अभी लागू रहेगा और शोषण का जरिया बन सकता है।
बड़ी चिंता यह है कि विभिन्न राज्य कोविड-19 के मामलों में होने वाले इजाफे से किस तरह निपटेंगे। बीते दो सप्ताह में आई तेजी यह बताती है कि खुलापन आने के साथ मामले और बढ़ेंगे। विभिन्न राज्यों में चिकित्सा बुनियादी ढांचे की असमान स्थिति भी स्पष्ट है। गुजरात और पश्चिम बंगाल की मृत्यु दर से यह स्पष्ट है। इन राज्यों में मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। कई राज्य प्रवासी श्रमिकों की वापसी की समस्या से भी दो-चार हैं। ये श्रमिक अपने साथ वायरस भी ला रहे हैं। ऐसे में उनके घरेलू राज्यों के स्वास्थ्य विभागों के समक्ष भीषण चुनौती आने वाली है।
ऐसे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की यह सलाह उचित प्रतीत होती है कि बिना लक्षण वाले या बेहद कम लक्षण वाले मरीज घरों में रह सकते हैं लेकिन इससे कोविड-19 से निपटने में हमारी कमी नहीं छिपने वाली। विश्व स्तर पर दक्षिण कोरिया से लेकर जर्मनी तक जिन देशों ने वायरस से लडऩे में सफलता पाई, उन्होंने लॉकडाउन के साथ जमकर टेस्टिंग की। सीमित क्षमता के बावजूद भारत अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक बंद नहीं रख सकता। ऐसे में लॉकडाउन दिशानिर्देशों में छूट के साथ प्रशासन को हर स्तर पर तैयार रहना होगा। भारत अब कोविड से लड़ाई के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में प्रवेश कर रहा है।
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