रक्षा क्षेत्र में एफडीआई से मेक इन इंडिया पर जोर | देव चटर्जी / मुंबई May 17, 2020 | | | | |
रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ाकर 74 फीसदी करने का फैसला बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में विनिर्माण आधार स्थापित करने या स्थानीय कंपनियों के अधिग्रहण के लिए प्रोत्साहित करेगा, लेकिन इससे देश की उन कंपनियों पर भारी चोट पड़ेगी जिनकी पहुंच तकनीक या सरकारी ऑर्डर तक नहीं है।
भारतीय रक्षा कंपनी के प्रमुख ने कहा, भारत के निजी क्षेत्र को मौका दिए बिना सरकार ने भारतीय अनुबंध चांदी की प्लेट में सजाकर विदेशी कंपनियों के सामने पेश कर दिया है। उन्होंने कहा, सरकार ने छह साल पहले मेक इन इंडिया की घोषणा की थी लेकिन तब से कोई भी बड़ा अनुबंध भारतीय कंपनियों को नहीं मिला है, जो काफी निराशाजनक है।
स्थानीय कंपनियों के सीईओ ने कहा कि भारत सरकार को सबसे पहले भारतीय कंपनियों को अनुबंध देना चाहिए और उन्हें उचित तकनीकी साझेदार तक पहुंचने और एफडीआई लाने की अनुमति मिलनी चाहिए। उन्होंंने कहा, इससे राष्ट्रीय हित सधता और सरकार का मकसद भी पूरा होता। विदेशी कंपनियों के लिए मेक इन इंडिया को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
रक्षा खरीद के लिए भारत हर साल 100 अरब डॉलर के ऑर्डर देता है और यह रक्षा कंपनियों के लिए भारत को दुनिया का सबसे आकर्षक बाजारों में से एक बनाता है। 2018-19 में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 14.2 फीसदी बढ़ा है। सबसे कम एफडीआई इक्विटी प्रवाह वाले क्षेत्रों में सेवा, ऑटोमोबाइल और केमिकल शामिल हैं।
मई 2001 में रक्षा क्षेत्र (जो पहले सार्वजनिक कंपनियों के लिए आरक्षित था) 100 फीसदी तक भारतीय निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए खोला गया, जिसमें 26 फीसदी तक एफडीआई शामिल था, लेकिन दोनों के लिए लाइसेंस जरूरी रखा गया। उसके बाद एफडीआई नीति को उदार बनाया गया और स्वत: मार्ग से 49 फीसदी एफडीआई और 49 फीसदी से ज्यादा के लिए भी अनुमति दी गई, लेकिन उसके लिए अत्याधुनिक तकनीक तक पहुंच जरूरी रखी गई। भारतीय निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए इस क्षेत्र को खोले जाने के बाद विभिन्न रक्षा उपकरणों के निर्माण के लिए एफडीआई के 42 प्रस्तावों को मंजूरी दी गई और ये सार्वजनिक व निजी क्षेत्र में थे।
सरकार ने मार्च 2019 तक निजी कंपनियोंं को 439 औद्योगिक लाइसेंस भी जारी किए, जो रक्षा साजोसामान के विनिर्माण के लिए था। लेकिन एमएनसी के लिए भारतीय कंपनियों की तरफ से कुछ ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग को छोड़कर अब तक मेक इन इंडिया में कोई बड़ा एमएनसी निवेश नहीं हुआ है।
भारत फोर्ज के डिप्टी प्रबंध निदेशक अमित कल्याणी ने कहा, रक्षा क्षेत्र में ज्यादा एफडीआई मेक इन इंडिया की यात्रा को एक कदम आगे ले जाएगा। उन्होंंने कहा, यह तकनीक की बड़ी क्षमता सृजित करेगा और प्रतिस्पर्धी क्षमता भी ताकि समाधान की बिक्री न सिर्फ भारत में हो बल्कि उसका निर्यात भी हो। यह पूरे इकोसिस्टम के लिए अच्छी बात है। हमारे संबंध दुनिया भर के साझेदारों से हैं। इस कदम से उन्हें तकनीक आगे ले जाने में मदद मिलेगी। जब लॉकडाउन खत्म होगा तब हम त्वरित रणनीति बना सकते हैं, जो हमें एफडीआई नियमों में उदारता का फायदा उठाने में सक्षम बनाएगा।
विशेषज्ञों ने कहा, भारतीय रक्षा क्षेत्र में एफडीआई आकर्षित करने की अपार क्षमता है, लेकिन मौजूदा 49 फीसदी एफडीआई सीमा के साथ विदेशी निवेशक अपनी तकनीक साझा करने में तब तक सहज नहीं होंगे जब तक कि भारतीय संयुक्त उद्यम में उनकी बहुलांश हिस्सेदारी नहीं होगी।
ईवाई इंडिया के सहायक पार्टनर (टैक्स ऐंड रेग्युलेटरी सर्विसेज) देवराज सिंह ने कहा, इसी वजह से यह क्षेत्र कई विदेशी निवेशकों को आकर्षित नहींं कर पाया जबकि इसमें अपार क्षमता है। एफडीआई सीमा 49 फीसदी से 74 फीसदी किए जाने का प्रस्ताव स्वागत योग्य कदम है, जिससे इस क्षेत्र मेंं हम कई निवेशकों का निवेश देखेंंगे। (साथ में शैली सेठ मोहिले)
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