आलू, प्याज जिंस अधिनियम से बाहर | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली May 16, 2020 | | | | |
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को आलू, प्याज सहित खाने पीने की कई चीजों मसलन खाद्यान्न, खाद्य तेल, तिलहन और दाल को अनिवार्य जिंस अधिनियम के दायरे से बाहर करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इनके भंडारण की सीमा तभी निर्धारित की जाएगी जब राष्ट्रीय आपदा, अकाल जैसी स्थितियां बन जाएं और कीमतों में उछाल आए। बहरहाल अधिनियम में तमाम अधिकार ऐसे भी हैं जिन्हें लागू करने का अधिकार राज्य सरकारों के पास है और अधिनियम में संशोधन के बाद इनमें से कई अधिकार खत्म हो जाएंगे।
कोविड-19 संकट को देखते हुए आत्मनिर्भर पैकेज के तहत राहत उपायों की तीसरी किस्त में सीतारमण ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसी योजना लाए हैं जिससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा और उपभोक्ताओं द्वारा व्यय की गई राशि में से भी उन्हें ज्यादा हिस्सा मिलेगा। उन्होंने कहा कि अनिवार्य जिंस अधिनियम को अधिक शिथिल किए जाने की एक वजह यह भी है। अनिवार्य जिंस अधिनियम 1955 में बना था ताकि जरूरी चीजों की कमी न हो पाए और जमाखोर तथा कालाबाजारी करने वाले परिस्थितियों का लाभ न ले पाएं।
इससे सरकार को चुनिंदा वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण पर नियंत्रण का अधिकार मिल गया। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को इस बात के लिए अधिकृत किया कि वे अधिनियम के तहत चुनिंदा खाद्य उत्पादों पर स्टॉक लिमिट तय करें, उत्पादन का लाइसेंस जारी करें और उनके उत्पादन, बिक्री और वितरण पर नियंत्रण रखें। मोदी सरकार ने 2016 में इस अधिनियम के तहत लाइसेंस, स्टॉक लिमिट और चीजों के आवागमन पर से रोक हटा ली थी। इन उत्पादों में गेहूं और उससे बनने वाले उत्पाद, खाद्य तेल, प्याज और आलू शामिल थे। सितंबर 2017 में दालों पर से भी प्रतिबंध हटा लिया गया ।
सन 2016 के संशोधन के बाद निर्यातकों और कई आउटलेट वाले खुदरा कारोबारियों अथवा बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर, खाद्य प्रसंस्करण करने वालों तथा आयातकों को भी लाइसेंसिंग जरूरत, स्टॉक लिमिट और आवागमन प्रतिबंध से बाहर रखा गया।
परंतु कानून को शिथिल करने के बावजूद केंद्र सरकार ने जरूरत पडऩे पर इसके विभिन्न प्रतिबंध लागू करने का अधिकार बरकरार रखा था। अधिकारियों के मुताबिक ताजा बदलाव के बाद केंद्र सरकार का यह विवेकाधीन अधिकार भी पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। उनका कहना है कि योजना के मुताबिक अब केंद्र सरकार का अधिनियम के प्रावधान लागू करने का अधिकार लगभग पूरी तरह समाप्त हो जाएगा और केवल अपवाद परिस्थितियों में ही यह कानून लागू किया जाएगा।
अब केवल बड़ी प्राकृतिक आपदा, युद्ध जैसी आपात स्थिति या किसी जिंस का उत्पादन एक तय सीमा से नीचे गिर जाने पर ही यह कानून लागू किया जाएगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस कानून के प्रावधान समाप्त करने के पीछे मूल वजह यह है कि ऐसी घटनाएं भी सामने आईं जहां बड़े कारोबारी घराने बड़ी भंडारण व्यवस्था और गोदाम बनाने से इसलिए पीछे हटे क्योंकि उन्हें भय था कि प्रशाासन अनिवार्य जिंस अधिनियम के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। अधिकारी ने कहा कि अब ऐसे निवेशक कुछ हद तक निश्चिंत हो सकेंगे।
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