कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभाव से बचाव के लिए सरकार जो राहत पैकेज जारी कर रही है, उसकी दूसरी किस्त भी मोटे तौर पर उन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है जो पहली किस्त पर लागू थे। आशा की जा रही थी कि इस बार मांग बढ़ाने के लिए नए व्यय की घोषणा की जा सकती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पैकेज में कई मौजूदा योजनाओं का विस्तार किया गया। इस दौरान सरकार का ध्यान स्पष्ट रूप से नकदी बढ़ाने और संवेदनशील क्षेत्रों खासकर प्रवासी श्रमिकों, छोटे और सीमांत किसानों और गरीबों को ऋण उपलब्ध कराने पर केंद्रित रहा।
निश्चित तौर पर सबसे प्रभावी नया हस्तक्षेप वह है जिसके तहत उन प्रवासी श्रमिकों को भी दो महीने का खाद्यान्न और दाल उपलब्ध कराने की बात कही गई है जो केंद्र या राज्य सरकार की खाद्यान्न वितरण व्यवस्था से बाहर हैं। करीब 3,500 करोड़ रुपये की लागत वाली यह योजना उन लोगों को खाद्यान्न आपूर्ति सुनिश्चित करेगी जो काम की तलाश में बड़े शहरों का रुख करते हैं लेकिन जिनके पास वहां का राशन कार्ड नहीं होता। हालांकि कई लोग कहेंगे कि लॉकडाउन के तत्काल बाद यह कदम उठाया जाना चाहिए था। कई अर्थशास्त्रियों ने भी ऐसा सुझाव दिया था।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इससे 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को मदद मिलेगी जो विभिन्न राहत शिविरों में हैं और जिन्हें मदद की दरकार है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि इन आंकड़ों को कुल प्रवासी श्रमिकों की तादाद से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन फिर भी यह तादाद लॉकडाउन के कारण विस्थापित हुए श्रमिकों के बारे में अंदाजा लगाने के लिए काफी है। अब यह राज्य सरकारों पर निर्भर करता है कि वे प्रवासी श्रमिकों तक प्रभावी ढंग से खाद्यान्न पहुंचना सुनिश्चित कर सकें। आदर्श स्थिति तो यही होगी कि उन्हें स्थानीय संस्थाओं की सहायता से पका हुआ भोजन मुहैया कराया जाए। वित्त मंत्री ने 'एक देश, एक राशन कार्ड' की व्यवस्था लागू किए जाने की बात भी कही। इसके तहत एक ही राशन कार्ड पर कई लोग अलग-अलग जगह राशन ले सकेंगे। ऐसे में राशन लेने के लिए एक स्थान पर रहने की बाध्यता नहीं होगी। इसकी समयसीमा चुनौतीपूर्ण है लेकिन यह तकनीक आधारित एक अहम हस्तक्षेप होगा और सरकार का अनुमान है कि इस वर्ष अगस्त तक वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के 83 फीसदी लाभार्थियों को और अगले वर्ष मार्च तक 100 फीसदी लाभार्थियों को कवर कर लेगी।
अन्य हस्तक्षेप बैंकिंग क्षेत्र के कदमों पर निर्भर करेंगे। उदाहरण के लिए स्ट्रीट वेंडर एक विशेष ऋण योजना के तहत 10,000 रुपये तक की कार्यशील पूंजी उधार ले सकेंगे। यह योजना एक माह के भीतर शुरू की जाएगी। औपचारिक ऋण व्यवस्था को ऐसे लोगों तक पहुंच बनाने में कड़ी मशक्कत करनी होगी। जिन लोगों के पास पहले ही छोटे आकार के मुद्रा ऋण हैं उन्हें 12 माह का ब्याज अनुदान दिया जाएगा लेकिन यह राशि मौजूदा दर से अधिक नहीं है। करीब 1,500 करोड़ रुपये की यह लागत बिना राजकोष पर अधिक बोझ डाले आसानी से बढ़ाई जा सकती थी। अन्य विस्तारित योजनाओं में सस्ते आवास के लिए ब्याज अनुदान, किसान क्रेडिट कार्ड धारकों की तादाद में इजाफा एवं राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के जरिये कृषि क्षेत्र के कर्जदाताओं का पुनर्वित्तीकरण करना शामिल है।
इनमें से कुछ उपायों को लागू करने में समय लगेगा। प्रधानमंत्री आवास योजना का विस्तार करके किराये की परिसंपत्ति तैयार करने को प्रोत्साहन देने में भी वक्त लगेगा। यह कदम भी मांग को गति देने वाला साबित होगा। पैकेज की दूसरी किस्त को दीर्घावधि के नकदी सुनिश्चित करने वाले तथा अंतरिम राहत प्रदान करने वाले ऐसे कदमों के रूप में देखा जाना चाहिए जो कुल मिलाकर बचाव करने वाले उपायों का संकलन हैं।