लावा चीन से समेटेगी अपना उत्पादन | सुरजीत दास गुप्ता / नई दिल्ली May 15, 2020 | | | | |
मोबाइल फोन बनाने वाली नामी देसी कंपनी लावा इंटरनैशनल चीन की गलियां छोड़कर पूरी तरह भारत में आ रही है। अभी तक निर्यात बाजार के लिए कंपनी के फोन चीन में बनते थे, लेकिन अगले छह महीने में समूचा उत्पादन ढांचा चीन से उठकर भारत में लगा दिया जाएगा। कंपनी अपना डिजाइन केंद्र भी चीन से भारत ले आएगी। इस सेंटर में अभी 600 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। लावा के उत्पादन का करीब एक तिहाई हिस्सा दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका, मैक्सिको, इंडोनेशिया और पश्चिम एशिया समेत विभिन्न बाजारों को निर्यात किया जाता है।
कंपनी का यह कदम बेहद अहम है और इसे उत्पादकता से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) की नई सरकारी योजना के फौरन बाद उठाया गया है। सरकार की इस योजना में उन देसी और विदेशी कंपनियों को 4-6 फीसदी प्रोत्साहन मुहैया कराया जा रहा है, जो अगले पांच वर्षों में भारत को मोबाइल फोन निर्यात का अड्डïा बनाना चाहती हैं।
केंद्र सरकार चीन के विनिर्माताओं को भी भारत में उत्पादन के लिए प्रोत्साहन देने की नीति पर काम कर रही है। कोविड-19 के बाद चीन का दुनिया भर में बहिष्कार हो रहा है।
लावा के चेयरमैन और एमडी हरि ओम राय ने कहा, 'पहले चीन के मुकाबले भारत में फोन बनाने की लागत अधिक आती थी। मगर सरकार की पीएलआई योजना की बदौलत अब यह अंतर खत्म हो गया है। हम अगले छह महीनों में निर्यात बाजार के लिए अपना पूरा उत्पादन चीन से भारत में स्थानांतरित करेंगे। डिजाइन सेंटर भी चीन से भारत लाया जाएगा।'
कंपनी अपने हैडसेटों का विनिर्माण चीन में करने के बजाय भारत में अपने कारखानों में ही करेगी। कंपनी अब भी 40 फीसदी कलपुर्जे भारतीय आपूर्तिकर्ताओं से ही लेती है और यह आंकड़ा बढऩे की उम्मीद है। लावा जापान और दक्षिण कोरिया से भी कलपुर्जों का आयात कर रही है, इसलिए वह केवल चीन पर निर्भर नहीं है।
राय ने बताया कि उन्होंने निर्यात बाजार में दोतरफा नीति बनाई है। कंपनी अपने हैंडसेट अपने ब्रांड के नाम से भी बेचती है और दूसरी मोबाइल कंपनियों के लिए भी विनिर्माण करती है। लावा का यह फैसला उस वक्त आया है, जब सरकार और दिग्गज वैश्विक मोबाइल कंपनियों के बीच बातचीत की जानकारी रखने वाले सूत्र ऐपल के बारे में बड़ी जानकारी दे रहे हैं। उनका कहना है कि ऐपल साल में कुल जितनी कीमत के हैंडसेट बनाती है, उसमें से 7 फीसदी कीमत के फोन पीएलआई के पहले साल में चीन के बजाय भारत में बनाए जा सकते हैं। अगले चार साल में यह आंकड़ा बढ़ाकर 18 फीसदी किया जाएगा। माना जा रहा है कि अगर वैश्विक कंपनियों के लिए पीएलआई योजना कारगर रही तो भारत को वर्ष 2025 तक 369 अरब डॉलर के वैश्विक मोबाइल निर्यात में सात फीसदी से अधिक हिस्सा हासिल करने में मदद मिल सकती है। अभी यह हिस्सा महज 0.5 फीसदी या 2 अरब डॉलर है। इस समय 85 फीसदी मोबाइल बाजार पर चीन और वियतनाम का ही कब्जा है। मगर सरकार ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति के तहत भारत से वर्ष 2025 तक 110 अरब डॉलर के निर्यात का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है।
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