बीएसईएस की दौड़ में टाटा, अदाणी और सीईएससी! | |
देव चटर्जी / मुंबई 05 15, 2020 | | | | |
बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड (बीआरपीएल) और बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड (बीवाईपीएल) में रिलांयस इन्फ्रास्ट्रक्चर की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की होड़ में टाटा समूह, अदाणी समूह और सीईएससी भी उतरने की योजना बना रही है। निवेश बैंकिंग सूत्रों ने इस बात की जानकारी दी। कई प्राइवेट इक्विटी कंपनियां रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की हिस्सेदारी खरीदने के लिए पहले ही दिलचस्पी दिखा चुकी हैं। बीआरपीएल नई दिल्ली में सबसे बड़ी बिजली वितरण कंपनी है, जिसके 25.6 लाख से अधिक उपभोक्ता है। बीवाईपीएल मध्य और पूर्वी दिल्ली के करीब 17 लाख उपभोक्ताओं को बिजली पहुंचाती है।
नई दिल्ली और मुंबई में बिजली वितरण कारोबार में टाटा पावर की बड़ी पैठ है। इसी तरह अदाणी मुंबई और सीईएससी कोलाकता में अग्रणी बिजली वितरण कंपनी हैं। एक सूत्र ने इस बारे में कहा, 'सभी कंपनियां इस समय खाताबही खंगाल रही हैं और इन दोनों कंपनियों की देनदारियों पर सोच-विचार कर रही हैं।'
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है और बैंक कर्ज लौटाने के लिए उस पर दबाव भी डाल रहे हैं। इस वजह से कंपनी बिजली वितरण कारोबार में हिस्सेदारी बेचना चाहती है, जिससे मिलने वाली रकम कर्ज कम करने में इस्तेमाल की जाएगी। इन दोनों कंपनियों में शेष हिस्सेदारी दिल्ली सरकार की है। 2002 में इन दोनों कंपनियों का निजीकरण कर दिया गया था। बीएसईएस राजधानी के प्रवक्ता ने बिक्री प्रक्रिया पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। टाटा पावर के एक अधिकारी ने कहा कि फिलहाल ऐसे किसी प्रस्ताव पर चर्चा नहीं चल रही है।
हाालंकि अदाणी समूह के प्रवक्ता ने कहा, 'कंपनी कारोबार बढ़ाने के अवसरों का मूल्यांकन करती रहती है। हालांकि बाजार में चल रही किसी तरह की चर्चा पर कंपनी टिप्पणी नहीं करती है।' सीईएससी अधिकारियों से संकर्प नहीं साधा जा सका।
सूत्रों ने कहा कि बिजली उत्पादक कंपनियां का बकाया और दोनों कंपनियों की नियंत्रक एवं लेखा महापरीक्षक (सीएजी) द्वारा ऑडिट पर उपजा कानूनी विवाद दोनों कंपनियों के मूल्यांकन पर असर डाल सकते हैं। इस बारे में सूत्रों ने कहा कि दोनों कंपनियों का मूल्यांकन कंपनी के बहीखातों में नियामक परिसंपत्तियों की प्राप्तियों पर निर्भर करेगा। दोनों कंपनियों ने ऑडिट से जुड़े दिल्ली बिजली नियामकीय आयोग (डीईआरसी) के निर्णय को विभिन्न न्यायालयों में चुनौती है।
केयर रेटिंग्स ने 6 अप्रैल 2020 को अपने एक बयान में कहा कि 31 मार्च 2018 तक बीएसईएस राजधानी में रेग्युलेटरी डेफरल अकाउंट (खर्च या आय की रकम जो देनदारी या परिसंपत्ति नहीं जाती है) 8,470 करोड़ रुपये का था, जबकि डीईआररसी के अनुसार यह रकम मात्र 3,979 करोड़ रुपये थी। इसी तरह, बीएसईएस यमुना के बहीखाते में 31 मार्च 2018 तक 8,122 करोड़ रुपये रकम रेग्युलेटरी डेफरल अकाउंट के तौर पर वर्गीकृत की गई थी। केयर ने कहा कि डीईआरसी की नजर में यह रकम केवल 2,677 करोड़ रुपये है।
एक निवेश बैंकर ने कहा, 'दोनों कंपनियों पर संयुक्त रूप से बिजली वितरण कंपनियों का 16,000 करोड़ रुपये बकाया हैं। मूल्यांकन में यह पहलू अहम भूमिका निभाएगा।' दोनों कंपनियां इस बात पर न्यायालय चली गईं हैं कि सीएजी को उनके बहीखाते की समीक्षा करने का अधिकार है या नहीं। उच्चतम न्यायालय में मामले की सुनवाई की अगली तारीख तय नहीं है, लेकिन निवेश बैंकरों का कहना है कि अगर सीएजी ऑडिट को न्यायालय को मंजूरी मिल गई तो 2002 से बहीखातों की जांच सीएजी द्वारा 2014-15 के दौरान किए गए ऑडिट के अनुसार होगी।
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