पैकेज से नहीं बढ़ेगी मांग, खपत | अर्चिस मोहन और अभिषेक रक्षित / May 13, 2020 | | | | |
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने बुधवार को कहा कि केंद्र का राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज बेबस प्रवासी कामगारों और गरीबों को राहत देने में विफल है और यहां तक कि राज्य सरकारों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पैकेज से मांग और खपत बढ़ाने में मदद नहीं मिलेगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा कि समय की मांग है कि लोगों, खासतौर पर सबसे गरीब 13 करोड़ लोगों के जेब में पैसा जाए लेकिन इस पैकेज में उनके लिए कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि मध्यम वर्ग के लिए पैकेज में कुछ भी नहीं है। चिदंबरम ने कहा कि उनकी 'उदार' गणना के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को जो 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का वादा किया था उसमें 3.6 लाख करोड़ रुपये की राशि ही है।
उन्होंने सवाल किया, 'बाकी 16.4 लाख करोड़ रुपये कहां है?' उन्होंने कहा, 'यह सरकार अपनी अज्ञानता और भय में फंसी हुई है। ऐसे वक्त में सरकार को न केवल खर्च करना चाहिए और अधिक उधार लेना चाहिए तथा राज्यों को भी ऐसा करने की अनुमति देनी चाहिए लेकिन वह ऐसा करने को तैयार नहीं है।'
उन्होंने कहा, 'सूक्ष्म, लघु एवं मझोले स्तर के उद्योगों (एमएसएमई) के पैकेज को छोड़कर हम आज की घोषणाओं से निराश हैं । नकदी मुहैया कराने से जुड़े उपाय राजकोषीय उपायों के समान नहीं होते दुनिया में उन्हें राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज में शामिल नहीं किया जाता या गिना नहीं जाता है।'
केंद्र सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को 'शून्य तथा छलावा' करार देते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महामारी के समय लोगों को गुमराह करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की निंदा की।
ममता ने कहा, 'जब प्रधानमंत्री मोदी ने पैकेज की घोषणा की तो मैं काफी आशावादी थी लेकिन बाद में पता चला कि यह एक बड़ा शून्य है और लोगों को गुमराह कर रहा है। लोगों को किसी तरह की आर्थिक सहायता नहीं मिल रही है। राज्यों को कुछ नहीं मिल रहा है। अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए किसी तरह का सार्वजनिक खर्च नहीं है और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने का कोई संकेत नहीं मिला है।'
उन्होंने कहा कि इस 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में पहले से ही खर्च किए जा रहे 10 लाख करोड़ रुपये शामिल हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह पैकेज 4.2 लाख करोड़ रुपये है जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग दो प्रतिशत है। ममता ने कहा, 'अकेले पश्चिम बंगाल में हम एमएसएमई उद्योग को हर साल 90,000 करोड़ रुपये देते हैं और सोचिए कि देश में कुल कितने राज्य हैं और सिर्फ यह सोचना चाहिए कि देश में कितने राज्य हैं। केंद्र द्वारा एमएसमई के लिए घोषित पैकेज मात्र एक छलावा है। हम इसकी निंदा करते हैं।' माकपा के प्रमुख सीताराम येचुरी ने इस पैकेज को महज एक मजाक बताया। उन्होंने कहा, 'देश मोदी सरकार की तुच्छ स्तर की राजनीति देख रहा है। इस पैकेज में राज्य सरकारों के लिए या फिर प्रवासी मजदूरों के लिए कुछ भी नहीं है जिन्हें तत्काल मदद की जरूरत है।' चिदंबरम ने कहा कि एमएसएमई के लिए घोषित राहत पैकेज बड़े एमएसएमई के पक्ष में है जिनकी तादाद करीब 45 लाख है जबकि 6.3 करोड़ एमएसएमई को ऐसे ही छोड़ दिया गया ।
हालांकि उन्होंने अधीनस्थ ऋण और इक्विटी कॉर्पस फंड की पेशकश का स्वागत करते हुए कहा, 'लेकिन हम नियम और शर्तों का इंतजार करेंगे क्योंकि ब्योरे में ही असली बात निकलेगी।'
चिदंबरम ने कहा कि उन्होंने मौजूदा संकट की इस घड़ी में श्रम कानून में बदलाव का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह वक्त राजकोषीय घाटे के बारे में चिंता करने का समय नहीं है और अगर जीडीपी स्थिर रहता है तब मार्च से सरकार की अतिरिक्त उधारी तो इसे 5.3 से 5.4 फीसदी तक ले जाएगी, लेकिन जीडीपी में गिरावट आना तय है। उन्होंने कहा कि सरकार को सबसे पहले गरीब के हाथों में पैसा देना चाहिए और फिर क्षेत्रवार तरीके से मुद्दों का समाधान तलाशना चाहिए ।
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