राज्यों में श्रम कानूनों में बदलाव एक बड़ी महामारी: बीएमएस अध्यक्ष | सोमेश झा / May 08, 2020 | | | | |
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने अगले 2-3 सालों में निवेश को बढ़ावा देने के लिए उद्यमियों को श्रम कानूनों में कुछ छूट देने का प्रस्ताव किया है। लेकिन श्रमिक संगठनों में इससे आक्रोश है। आरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सी के साजी नारायणन ने सोमेश झा से कहा कि देश की अफसरशाही में सुधार की जरूरत है न कि श्रम कानून खत्म करने की। राज्य इस भ्रम में हैं कि इन कदमों से भारत में निवेश बढऩे लगेगा। बातचीत के अंश:
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश द्वारा श्रम कानून सुधारों पर आपकी राय?
यह कदम जंगल कानून की ओर ले जाएगा। कानून का शासन हर सभ्य समाज की विशेषता होती है और कानून के शासन से छूट देने वाला कोई भी क्षेत्र 'जंगल कानून'की तरफ ही बढ़ेगा। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ऐसी स्थिति पैदा कर रहे हैं जहां कानून का शासन नहीं होगा और दोनों पक्षों (नियोक्ता और कर्मचारियों) को सड़कों पर अपना विवाद निपटाना होगा क्योंकि औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 वापस ले लिया गया है। कामगारों की सुरक्षा से समझौता किया जाएगा क्योंकि कारखाना अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे। मध्यप्रदेश में हर साल प्रति कामगार कल्याण कोष में जाने वाली 80 रुपये की मामूली राशि भी नहीं दी जा सकेगी।
अब श्रमिक संगठन क्या करेंगे?
हम दोनों राज्यों के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी अपने पदाधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे और अगले कुछ दिनों में अगले कदम के बारे में फैसला लेंगे। हम आंदोलन करेंगे।
क्या आप मानते हैं कि श्रम कानूनों में सुधार की जरूरत है?
श्रम सुधार करने की अभी कोई आपात स्थिति बन गई है क्या? इस मुद्दे पर एक त्रिपक्षीय मंच पर चर्चा की जा सकती है जहां उद्योग, कामगार और सरकार एक साथ बैठ सकते हैं। ऐसे सुधार देश की संसद से मंजूर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) समझौते के विरुद्ध हैं। एक बार देश की संसद इनको मंजूरी दे देती है तो राज्य सरकारें भी कुछ नहीं कर सकतीं। आईएलओ में यह निश्चित रूप से बड़ा मुद्दा बन जाएगा जो भारत को कारण बताओ नोटिस जारी करेगा। कुछ साल पहले प्रस्तावित श्रम कानूनों में निरीक्षण प्रणाली को खत्म करने के लिए भारत को पहले ही कठघरे में रखा गया है। संभवत: जिन सलाहकारों ने यह मसौदा तैयार किया है उन्हें इस घटनाक्रम की जानकारी नहीं है।
आईएलओ भारत पर प्रतिबंध लगा सकता है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। आईएलओ ने 100 साल से अधिक के अपने इतिहास में अब तक केवल म्यांमार पर ही प्रतिबंध लगाए हैं।
क्या आप मप्र की तुलना में उप्र के श्रम कानूनों में किए गए बदलावों से अधिक चिंतित हैं क्योंकि अधिकांश श्रम कानूनों को खारिज करने का प्रस्ताव किया गया है?
दोनों राज्यों ने उद्योगों को करीब तीन साल के लिए श्रम कानूनों औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत आने वाले अधिकांश प्रावधान वापस ले लिए हैं। यह भारत में शुरू होने वाली एक नई महामारी है जो अन्य राज्यों में भी फैलेगी और शायद कोरोनावायरस से ज्यादा खतरनाक है। जैसे कोरोनावायरस ने चीन से हमारा पीछा किया है वैसे ही श्रम कानूनों में बदलाव की बीमारी भी उसी देश से आ रही है।
श्रम कानूनों में सुधार के लिहाज से इस वक्त की बड़ी जरूरत क्या है?
भारत को अफसरशाही में सुधार की जरूरत है। सहज तरीके से कारोबार संचालन में श्रम कानून नहीं बल्कि लाल फीताशाही सबसे बड़ी बाधा है। हमारे अफसरशाह अंग्रेजों के जमाने की प्रथाओं पर चले आ रहे हैं।
लेकिन उद्योग और अर्थशास्त्रियों का कहना है कि श्रम कानून भी निवेश में बाधक हैं....
विश्व बैंक की भी 2009 तक यही राय थी। व्यापार सुगमता में 10वां मद श्रम से संबंधित था लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया। आखिर मनुष्य किसी निवेश में बाधा कैसे बन सकता है?
तर्क है कि श्रम कानूनों के कारण श्रम बाजार असंगठित हुआ है। आपका क्या कहना है?
कानून किसी को संगठित रूप देने के लिए होते हैं न कि उन्हें असंगठित बनाने के लिए। कोई भी उद्योग पांच लोगों के साथ अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता है अगर उसे 10 कामगारों की आवश्यकता है। लेकिन अफसरों का जटिल तरीका समस्या पैदा करता है और उद्योग अंतत: अपने रिकॉर्ड में कम लोगों को दिखाता है ताकि वह श्रम कानूनों से बच सके। हम इस बात से सहमत हैं कि निरीक्षक कुछ हद तक भ्रष्ट हैं लेकिन क्या यह समस्या सिर्फ श्रम कानूनों में ही दिखती है? सीमा शुल्क या उत्पाद शुल्क से संबंधित निरीक्षण की प्रक्रिया को खत्म क्यों नहीं किया जाता है? या फिर हम पुलिस इंस्पेक्टरों की जरूरत को ही खत्म क्यों नहीं कर देते?
संगठित क्षेत्र से और अधिक कामगार कैसे जोड़े जा सकते हैं?
रोजगार सृजन का अर्थ है कि कारोबार शुरू करने के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जाए। चीन में सबसे बड़ा फायदा यह नहीं था कि आप 24 घंटे में कारोबार शुरू कर सकते हैं बल्कि सबसे बड़ा फायदा यह है कि 24 घंटे के अंदर आपको पता चल जाएगा कि आप अपना कारोबार शुरू कर सकते हैं या नहीं। भारत में, आपको बैंक से कर्ज पाने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी। उसके बाद खुद को पंजीकृत कराने के लिए कुछ महीने और लगेंगे और लाइसेंस मिलने में इससे भी अधिक समय लगेगा। आपको एक साल बाद यह पता चलेगा कि आप कभी भी कारोबार शुरू करने के योग्य नहीं थे। यह सच है कि न्यूनतम पात्रता का आकलन तो होना चाहिए ।
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