कोरोनावायरस के कारण हुए लॉकडाउन के चलते कंपनी मामलों के मंत्रालय ने सूचीबद्ध कंपनियों को अपनी सालाना आम बैठक ऑनलाइन आयोजित करने की अनुमति दी है। हालांकि इस पर अनिश्चितता है कि क्या यह बैंकों के लिए भी लागू होगा, जो अलग अधिनियम के तहत प्रशासित होता है और कंपनी अधिनियम के दायरे में नहीं है।
सूत्रों ने कहा, नियामकीय प्राधिकरणों को बैंकों व अन्य संस्थानों के लिए अलग दिशानिर्देश जारी करने होंगे। इससे बाहर वाली फर्में पहले ही संबंधित नियामकों से संपर्क कर चुकी हैं और शेयरधारक बैठक आयोजित करने के मामले में स्पष्टीकरण की मांग कर रही हैं।
सूत्रों ने कहा कि नियामकीय प्राधिकरणों को बैंकों व अन्य संस्थानों के लिए अलग दिशानिर्देश जारी करने होंगे। इस दायरे से बाहर रखी गई फर्मों ने अपने संबंधित नियामकों से संपर्क कर शेयरधारकों की बैठक पर स्पष्टीकरण की मांग की है।
एक सूत्र ने कहा, हमें कॉरपोरेट निकाय, कुछ निश्चित सार्वजनिक कंपनियोंं से एजीएम पर कुछ पूछताछ मिली है। नियामक इस प्रक्रिया पर हितधारकों से बातचीत कर रहे हैं, जिसे रेखांकित किया जाना जरूरी है।
कंपनी मामलों के मंत्रालय ने कोविड-19 के कारण पैदा हुई चुनौतियोंं के कारण कंपनियों से मिली चुनौतियों को देखते हुए कुछ राहत दी है। मंगलवार को मंत्रालय ने साल के दौरान कंपनियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की अनुमति दी जब उसने एजीएम को 30 सितंबर तक करने की इजाजत दी।
कंपनी अधिनियम के मुताबिक, कंपनियों को पिछला वित्त वर्ष समाप्त होने के छह महीने के भीतर एजीएम आयोजित करना अनिवार्य है और यह पिछले एजीएम के 15 महीने बाद नहीं हो सकता।
बाजार नियामक सेबी ने भी अनुपालन के नियमों में छूट दी है और उनसे वित्त वर्ष समाप्त होने के पांच महीने के भीतर ऐसा करने को कहा है। हालांकि सेबी ने सूचीबद्ध इकाइयों के लिए एजीएम व ईजीएम के नियम सामने नहीं रखे हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या अलग कानून के तहत प्रशासित होने वाले अपनी एकल प्रक्रिया के साथ सामने आ सकते हैं।
उदाहरण के लिए एसबीआई का प्रशासन एसबीआई ऐक्स 1955 के तहत होता है। उसके अलावा अन्य सरकारी बैंक बैंंकिंग नियमन अधिनियम के दायरे में हैं और उसका प्रबंधन बैंक के पूर्णकालिक चेयरमैन करते हैं। इसी तरह जीवन बीमा नियम के अपने नियम हैं।
इसके अलावा कंपनी मामलों के मंत्रालय की तरफ से वर्चुअल एजीएम की प्रक्रिया में बैठक के मिनट्स की रिकॉर्डिंग, वोट के अधिकार, सदस्यों की उपस्थिति, सवाल उठाने आदि जैसे मसले का समाधान नहीं किया गया है, जो लॉकडाउन के दौरान शेयरधारकों के अधिकार पर दांव लगा सकता है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में शेयरधारकों की पूछताछ के विनियमन का काम कंपनियों पर निर्भर करेगा।