कोरोनावायरस के कारण कमोबेश पूरे देश में ताला लग गया है और बाजारों तथा दफ्तरों में कामकाज बंद चल रहा है। लेकिन काम कभी रुकता नहीं, इसीलिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के ज्यादातर कर्मचारियों को घरों से ही काम करने के लिए कह दिया गया है। जाहिर है कि ऐसी सूरत में कामकाज के लिए ऑनलाइन माध्यमों और इंटरनेट पर निर्भरता कई गुना बढ़ गई है। यह देखकर वे लोग भी हरकत में आ गए हैं, जो साइबर अपराधों को अंजाम देते हैं। कुछ जगहों से तो इस तरह की खबरें आ भी रही हैं कि लोग साइबर अपराधों के शिकार हो रहे हैं। मगर इस तरह के खतरे से आपको सुरक्षा भी मिल सकती है। अगर साइबर बीमा लेते हैं तो आपको ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचने में मदद मिलेगी और किसी को अनिधिकृत तरीके से जानकारी मिल जाने या आपकी व्यक्तिगत एवं वित्तीय जानकारी की ऑनलाइन चोरी होने से जो भी नुकसान होगा, उससे भी आपका बचाव हो सकता है।
साइबर लॉ कंसल्टिंग के अध्यक्ष एवं संस्थापक प्रशांत माली भी यही समझाते हैं। वह कहते हैं, 'लोग और संगठन जोखिम कम करने के लिए साइबर बीमा से बढिय़ा कुछ नहीं ले सकते। पूरी दुनिया इस समय आभासी यानी वर्चुअल दुनिया में ही काम कर रही है, इसीलिए इस समय अपराध के नाम पर साइबर अपराध ही हो रहे हैं।'
इस समय क्यों
भारतीय स्टेट बैंक ने हाल ही में एक सलाह जारी की थी, जिसमें ग्राहकों को साइबर अपराधियों के खिलाफ आगाह किया गया था। भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण ने भी खरीदारों को आगाह किया कि धोखाधड़ी करने वाली कुछ वेबसाइट छूट के साथ बीमा बेच रही हैं। साइबर हमले रोकने या टालने की कोशिश करने वाली केंद्रीय एजेंसी कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम ऑफ इंडिया (सर्ट-इन) ने भी इसी तरह की सलाह दी है। उसने बताया है कि अपने उपकरणों को ऑनलाइन कैसे सुरक्षित रखा जाए।
बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के मुख्य तकनीकी अधिकारी टीए रामलिंगम कहते हैं, 'दैहिक दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग इस समय जरूरी है, जिस कारण नोटों की शक्ल में धन का आदान-प्रदान कम हो गया है और ऑनलाइन भुगतान बहुत अधिक बढ़ गया है। इससे साइबर खतरे का शिकार होने की आशंका भी बहुत बढ़ गई है। खास तौर पर नए-नवेले इस्तेमाल करने वालों, बुजुर्गों और तकनीकी की कम आदत वाले लोग इसके शिकार हो सकते हैं।' वह चेतावनी देते हैं कि इस समय ज्यादा से ज्यादा लोग सोशल मीडिया का और शिक्षा तथा मनोरंजन के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसलिए स्पाईवेयर और रैन्समवेयर समेत कई तरह के मालवेयर के हमलों, फिशिंग ईमेल और साइबरस्टॉकिंग की घटनाएं बढ़ गई हैं।
किस-किस का बीमा
इसमें दो तरह की बीमा पॉलिसी आती हैं - कॉरपोरेट और व्यक्तिगत। वे इंटरनेट से जुड़े सभी उपकरणों की सुरक्षा में ऑनलाइन सेंध से उपयोगकर्ता की हिफाजत करती हैं। सबसे पहले यह देखिए कि बीमा पॉलिसी में क्या-क्या शामिल है। कुछ बातें तो उनमें जरूर शामिल होनी चाहिए जैसे अनधिकृत ऑनलाइन ट्रांजैक्शन, फिशिंग और ईमेल स्पूफिंग, इलेक्ट्रॉनिक प्रतिष्ठïा को नुकसान, चोरी, ऑनलाइन परेशान करना, ई-उगाही, साइबरस्टॉकिंग, आईटी के जरिये चोरी या नुकसान, मीडिया की देनदारी के दावे, तीसरे पक्ष द्वारा निजता एवं जानकारी में सेंध आदि।
कुछ कंपनियां अलग किस्म के फीचर भी देती हैं। रामलिंगम बताते हैं, 'धोखाधड़ी के शिकार व्यक्ति को तनाव या बेचैनी के कारण अगर किसी से सलाह लेनी पड़ती है या काउंसलिंग करानी पड़ती है तो उसमें होने वाला खर्च भी कुछ बीमा पॉलिसियों में शामिल रहता है।' एचडीएफसी अर्गो की पॉलिसी में कानूनी खर्च भी शामिल होता है। व्यक्तिगत बीमा पॉलिसी में आम तौर पर पॉलिसी कराने वाले व्यक्ति के पास मौजूद हरेक उपकरण को शामिल किया जाता है। इसमें बैंक खाते, डेबिट और क्रेडिट कार्ड तथा ई-वॉलेट का बीमा भी किया जाता है। इसी तरह फैमिली बीमा पॉलिसी भी होती है, जिसमें उस व्यक्ति के साथ उसके जीवनसाथी और उस पर निर्भर दो बच्चों को शामिल किया जाता है, चाहे उनकी उम्र कितनी भी हो।
क्या-क्या शामिल नहीं
जब भी कोई बीमा पॉलिसी खरीदने जाएं तो यह जरूर देख लें कि उसमें किस-किस घटना को शामिल नहीं किया गया है। हो सकता है कि किसी पॉलिसी में मालवेयर हमले को मुख्य पॉलिसी का हिस्सा बनाया गया हो। मगर किसी दूसरी पॉलिसी में इसे मुख्य पॉलिसी में शामिल करने के बजाय ऐड-ऑन कवर की तरह दिया हो सकता है। मोटे तौर पर पॉलिसी में जिन घटनाओं को शामिल नहीं किया जाता है, उनमें बेईमानी भरी या अनुचित हरकत, शारीरिक चोट या संपत्ति को नुकसान, अनपेक्षित संवाद, जानकारी का अनधिकृत संग्रह, अनैतिक या अश्लील सेवाएं आदि शामिल होते हैं।
इन पॉलिसियों में कुछ सीमाएं भी होती हैं। मिसाल के तौर पर हो सकता है कि बीमा पॉलिसी लेने वाला फिशिंग का दावा करे या सोशल मीडिया कवर मांगे तो उसे कुल इंश्योर्ड राशि का केवल 10 या 20 फीसदी हिस्सा ही मिलेगा क्योंकि पॉलिसी में इसे उतने पर ही सीमित किया गया होगा। इसमें कुल इंश्योर्ड राशि 1 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक हो सकती है। इन पॉलिसियों में पूरी दुनिया में ऑनलाइन धोखाधड़ी तथा फर्जीवाड़े के कारण होने वाले नुकसान का बीमा किया जाता है।
बीमा ही काफी नहीं
पुरानी कहावत है कि इलाज से बेहतर परहेज करना है। इसीलिए साइबर बीमा होने के बाद भी आपको एंटीवायरस सॉफ्टवेयर जरूर खरीद लेना चाहिए। बैराकुडा नेटवक्र्स के भारत के कंट्री मैनेजर मुरली उर्स का मशविरा गौर करने लायक है। वह कहते हैं, 'खतरे से सुरक्षा का कोई भी प्रोग्राम ले लीजिए ताकि आपके ईमेल या आपकी जानकारी में कोई भी किसी तरह से सेंध नहीं लगा सके। साथ ही अपने डेटा का नियमित रूप से बैकअप भी लेते रहें ताकि आप पर हमला हो जाए तो भी आप पहले की तरह अपना काम करते रहें।' घरेलू उपकरणों को सुरक्षा देने वाले ज्यादातर एंटी-वायरस प्रोग्राम इंटरनेट से जुड़े सभी गैजेट को सुरक्षा प्रदान करते हैं और उनकी कीमत 500 से 10,000 रुपये तक हो सकती है।