लॉकडाउन से फीकी हो रही फूलों की खुशबू | दिलीप कुमार झा / मुंबई May 04, 2020 | | | | |
कोविड-19 का असर फूलों की खेती करने वाले किसानों पर भी देखने को मिला है। देशव्यापी लॉकडाउन के कारण मंडियां और खुदरा दुकानें बंद होने से पूरे देश में किसान अपनी फूलों की उपज नहीं बेच पा रहे हैं जिससे हताश होकर उन्होंने अपनी गर्मी के मौसम की फसल को खेतों मे ही नष्टï करना शुरू कर दिया है।
खेतों में और उनके बाहर फलों के रखरखाव के लिए अनुकूल तापमान के साथ साथ काफी कोशिश करने की जरूरत होती है। इसका मतलब है कि किसानों को फूलों की गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए बड़ी तादाद में निवेश और अन्य प्रयासों की जरूरत होगी। लेकिन इन्हें कोल्ड स्टोरेज तक पहुंचाना बड़ी समस्या है, क्योंकि श्रमिक और परिवहन सुविधा का अभाव है। यदि यह सुविधा मिल भी जाए तो इसकी गारंटी नहीं है कि मांग बढ़ेगी।
सामान्य तौर पर, शादियों और इस तरह के अन्य अवसरों की वजह से किसान फरवरी-मई सीजन के दौरान शानदार मांग की उम्मीद रखते हैं। गुड़ी पड़वा और अक्षय तृतीया भी इसी अवधि में आते हैं जिन्हें पश्चिमी भारतीय राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है और इस वजह से फूलों की मांग बढ़ जाती है। लेकिन कोविड-19 की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन ने भारत में पूरी व्यावसायिक गतिविधि पर प्रभाव डाला है और फूलों की बिक्री भी इससे अलग नहीं है। किसानों को सुधार की उम्मीद नहीं दिख रही है और इसलिए वे फूलों की खेती से बाहर निकलना उचित समझ रहे हैंं।
लॉकडाउन से दूसरों की तुलना में किसान ज्यादा प्रभावित हुए हैं। क्योंकि मंडियां, स्टाकिस्ट और खुदरा दुकानें बंद हैं, इसलिए मौजूदा विवाह सीजन के दौरान फूलों की मांग प्रभावित हुई है। यही वजह है कि व्यापारी, निर्यातक और आढ़तिये कोई जोखिम नहीं ले रहे हैं। इस वजह से फूलों की मांग पूरी तरह से समाप्त हो गई है। कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) मंचर (आंबेगांव, पुणे) के चेयरमैन देवदत्ता निकम का कहना है कि किसान अब फूलों की खेती से परहेज कर रहे हैं और इस वजह से वे पूरे बागानों को नष्टï कर रहे हैं।
चूंकि खिले हुए फूलों की तुड़ाई में विलंब नहीं किया जा सकता, इसलिए किसानों ने इन्हें खेतों में ही नष्टï करना शुरू कर दिया है, क्योंकि उन्हें अगली फसल के लिए खेत खाली करने की भी जरूरत है।
कम अवधि वाले गेंदा जैसे फूलों को गर्म तापमान में नहीं रखा जा सकता और इसलिए इनके खिलने के तुरंत बाद इन्हें तोड़े जाने की जरूरत होती है। लेकिन मांग नहीं होने से फूलों की तुड़ाई पर खर्च करना मुनाफे का सौदा नहीं रह गया है क्योंकि इस पर श्रम और भंडारण लागत आती है। पुणे स्थित पुष्प थोक विक्रेता कणिफनाथ ट्रेडिंग कंपनी के नवनाथ पासालकर ने कहा कि इस तरह के अतिरिक्त खर्च से बचने के लिए किसानों ने फूलों के पौधों को उखाड़ देने का निर्णय लिया है।
इस उद्योग के सूत्रों का अनुमान है कि भारत में फूलों की खेती का बाजार लगभग 2,000 करोड़ रुपये का है। 20 प्रतिशत की अनुमानित औसत सालाना वृद्घि दर के हिसाब से भारत का पुष्प कृषि बाजार वर्ष 2025 तक बढ़कर 5,580 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। भारत में प्रमुख पुष्प उत्पदक राज्यों में महाराष्टï्र, छत्तीसगढ़, चेन्नई और कर्नाटक हैं।
इस सीजन में बिक्री के अभाव की वजह से फूल बागानों को नष्टï करने की वजह से किसानों पर गंभीर वित्तीय संकट पैदा हो गया है, क्योंकि उन पर कर्ज का बोझ पहले से ही बढ़ गया है। निकम का कहना है कि इसलिए सरकार को राहत उपायों के साथ तत्काल मदद करने की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ स्थित फ्लॉवर स्टाकिस्ट गायत्री फ्लॉवर्स की मालिक गायत्री सरन का कहना है कि सिर्फ घरेलू कारोबार ही नहीं बल्कि पुष्प निर्यात भी पूरी तरह ठप हो गया है। भारत बड़ी तादाद में फूलों का निर्यात यूरोपीय देशों को करता रहा है।
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