कच्चा हीरा आयात पर अंकुश का प्रस्ताव | राजेश भयानी / मुंबई May 04, 2020 | | | | |
हीरा प्रसंस्करण उद्योग के हितों की रक्षा के लिए रत्नाभूषण उद्योग के शीर्ष संगठन ने 15 जून तक कच्चा हीरा आयात पर अंकुश लगाने का सुझाव दिया है। इससे बैंकों द्वारा इस क्षेत्र को कर्ज देने में उदासीनता और लॉकडाउन के बाद मौजूदा संकट से निपटने में मदद मिलेगी।
कच्चे हीरों का आयात एक अरब डॉलर से अधिक रहता है और एक महीना आयात में कटौती करने से यह सुनिश्चित होगा कि प्रसंस्करण इकाइयों को अपना स्टॉक कम करने और लॉकडाउन के कारण पैदा हुए हालात से उबरने में मदद मिलेगी। इन इकाइयों पर गंभीर वित्तीय संकट का दबाव है और सरकार द्वारा परिचालन शुरू करने की अनुमति दिए जाने के बावजूद ये इकाइयां दोबारा काम शुरू करने की स्थिति में नहीं हैं जिससे कई लाख कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे।
इसके समाधान और मौजूदा संकट के दौरान उद्योग के हितों की रक्षा के लिए रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) ने सुझाव दिया है कि एकल सदस्य 15 मई से कम से कम अगले 30 दिन तक अपने कच्चे हीरों के आयात पर अंकुश लगाने के विकल्प पर विचार कर सकते हैं।
हीरा तराशी में भारत का एकाधिकार है। दुनिया भर के प्रत्येक 15 में से 14 हीरे यहां तैयार किए जाते हैं। एक ओर जहां उद्योग अब घरेलू स्टॉक में कमी करने का लक्ष्य बना रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत की अनुपस्थिति के कारण वैश्विक स्तर पर कच्चे हीरों का स्टॉक बढऩे से दामों में कमी आएगी और हीरों के मूल्य निर्धारण में इस स्थिति का लाभ उठाने में मदद मिलेगी।
हाल ही में हीरा प्रसंस्करण कराने वाली तथा तराशे हीरों और आभूषणों का निर्यात करने वाली कई कंपनियों ने जीजेईपीसी के सामने अपनी मांग रखी थी और प्रत्युत्तर में परिषद ने भारतीय हीरा उद्योग को मजबूत करने के लिए संभावित कदमों पर भी विचार-विमर्श किया था। जीजेईपीसी के अनुसार इस तरह आयात रोकने से उद्योग को चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी जो वैश्विक रत्नाभूषण बाजार की मांग में गिरावट आने से पैदा हुई हैं। हालांकि इसका फैसला एकल आयातकों पर छोड़ दिया गया है।
परिषद का कहना है कि इस कदम से बैंकिंग प्रणाली को यह संकेत मिलेगा कि हीरा उद्योग ऐसे समय अपने कर्ज में इजाफा नहीं करेगा कि जब हमारे डाउनस्ट्रीम सहयोगी लगातार उपभोक्ता मांग पूरी कर रहे हैं इसलिए बैंकर आश्वस्त होकर उद्योग को दिए जाने वाले कर्ज में कमी न करें। बैंकों पर भारतीय उद्योग का कुल ऋण भार बहुत अधिक नहीं है। वर्ष 2020 में यह लगभग 9.5 अरब डॉलर बैठता है। उद्योग ने अपने कर्ज का एक बड़ा हिस्सा बैंकों को चुका दिया है और यदि हीरा क्षेत्र को अगले तीन महीने के लिए सहारा मिल जाता है, तो स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी। उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2021 तक मांग बहाल हो सकती है।
परिषद के अनुसार आयात पर अंकुश लगाने के कदम का एक अन्य पहलू यह है कि इससे बाजार में कच्चे हीरों का प्रवेश कम हो जाएगा और इस तरह विनिर्माता कंपनियों को कम दबाव और अप्रत्यक्ष रूप से कम आर्थिक बोझ झेलना पड़ेगा। इस प्रकार अच्छे कारोबार में सामान्य स्थिति की बहाली में इसका योगदान रहेगा।
इस संबंध में और क्या कदम उठाए जाएं, इस पर जीजेईपीसी जून के दूसरे सप्ताह में सभी कारोबारी संगठनों के साथ मिलकर स्थिति की समीक्षा करेगी। जीजेईपीसी के वाइस चेयरमैन कॉलिन शाह का कहना है कि यह उद्योग हर संकट से तेजी से उबरा है और इस बार सामान्य होने में अधिक समय लगेगा। मूल्य के हिसाब से कोरोना से पहले की तुलना में यह तकरीबन 20 प्रतिशत कम रह सकता है।
लॉकडाउन से ठीक पहले उद्योग ने वैश्विक मंदी के बाद वित्त वर्ष 20 के निर्यात में तेज गिरावट देखी थी। लॉकडाउन की घोषणा उस समय की गई, जब बैंक वित्त वर्ष 2021 के लिए वित्तीय सीमाओं की समीक्षा करने वाले थे और उद्योग बैंकों से राहत की उम्मीद कर रहा था। हालांकि दुनिया भर में इस वायरस के अभूतपूर्व हमले के बाद हुए लॉकडाउन में उद्योग के भागीदारों द्वारा कड़े अनुशासन का पालन करने की मांग की गई है इसलिए कच्चे हीरों के आयात पर अंकुश लगाने का प्रस्ताव दिया गया है।
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