तेल मांग पर कोविड-19 महामारी के विपरीत प्रभाव को ध्यान में रखते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक मुकेश अंबानी ने अपना पूरे साल का वेतन छोडऩे का निर्णय लिया है। इसके अलावा कंपनी अपने हाइड्रोकार्बन सेगमेंट के उन कर्मियों के वेतन में 10 प्रतिशत कटौती करेगी जिनका सालाना आय 15 लाख रुपये से ज्यादा है। कंपनी ने यह भी कहा है कि वह नकदी बोनस भी रद्द करेगी। कर्मचारियों को 29 अप्रैल को भेजे पत्र में आरआईएल के कार्यकारी निदेशक हिताल मेस्वानी ने कहा, 'परिष्कृत उत्पादों और पेट्रोकेमिकल्स के लिए मांग घटने की वजह से हाइड्रोकार्बन व्यवसाय प्रभावित हुआ है। इससे हमारे हाइड्रोकार्बन व्यवसाय पर दबाव बढ़ गया है।' उन्होंने कहा कि सभी मोर्चों पर अनुकूलन और लागत नियंत्रण उपाय जरूरी हो गए हैं। इसी के साथ, आरआईएल अब उन व्यावसायिक घरानों में शुमार हो गई है जो भुगतान टालने की घोषणा कर चुके हैं। पिछले सप्ताह एलऐंडटी ने अपने कर्मचारियों को बताया था कि वह उनकी अप्रेजल प्रक्रिया टालेगी, जबकि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने कहा है कि वह वेतन वृद्घि रोकेगी। जहां 15 लाख सालाना से ज्यादा वेतन वालों के लिए 10 प्रतिशत की कटौती होगी, वहीं इससे कम आय वाले कर्मियों के लिए वेतन कटौती नहीं होगी। आरआईएल निदेशक मंडल के सदस्यों को अपने वेतन का 30-50 प्रतिशत हिस्सा छोडऩा होगा। सालाना नकदी बोनस और वित्त वर्ष की पहली तिमाही के प्रदर्शन से संबंधित बकाया इंसेंटिव को टाल दिया गया है। ये सभी बदलाव 1 अप्रैल से प्रभावी हैं। अंबानी का सालाना वेतन लाभ लगभग 15 करोड़ रुपये है। अरबपति उद्योगपति ने 2008-09 से ही अपने वेतन को इस स्तर पर सीमित बनाए रखा है। वहीं उन्होंने अन्य बोर्ड सदस्यों को मिलने वाली वेतन वृद्घि का भी लाभ नहीं लिया है। वित्त वर्ष 2019 में आरआईएल के कर्मियों की संख्या 194,056 थी और कंपनी ने 5,834 करोड़ रुपये का कर्मचारी लाभ खर्च दर्ज किया। हाइड्रोकार्बन सेगमेंट के लिए कर्मचारी खर्च का विवरण उपलब्ध नहीं है। मेस्वानी ने कहा कि कंपनी आर्थिक और व्यावसायिक परिदृश्य पर गहनता से नजर रखेगी और निरंतर आधार पर अपने कदमों पर विचार करेगी। इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि यह बेहद दुर्लभ परिस्थितियों में से एक है, जब आरआईएल ने वेतन कटौती की है। कंपनी ने 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान भी इस तरह का कदम उठाने से परहेज किया था। देश में लॉकडाउन और यात्रा पर प्रतिबंधों की वजह से, पेट्रोलियम उत्पादों के लिए मांग काफी घट गई है। तेल विशेषज्ञों ने पेट्रोल और डीजल जैसे उत्पादों के लिए मांग अप्रैल 2020 तक सामान्य की महज एक-तिहाई रहने का अनुमान जताया है। वित्त वर्ष 2019-20 का समापन भारत की ईंधन मांग में महज 0.2 प्रतिशत की वृद्घि के साथ हुआ, जो दो दशकों में उसकी सबसे कमजोर वृद्घि दर है। लॉकडाउन में उद्योगों के लिए आंशिक तौर पर छूट दिए जाने से डीजल जैसे उत्पादों की मांग कुछ सुधरकर सामान्य मांग की लगभग 50 प्रतिशत हो गई है। विमानन ईंधन के लिए मांग लगभग समाप्त हो गई है, क्योंकि इस ईंधन की मांग में 90 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है। आरआईएल के प्रमुख व्यवसायों - तेल, पेट्रोकेमिकल्स, रिफाइनिंग का उसके कुल एबिटा में करीब 60 प्रतिशत का योगदान है।
