लेनी होगी जवाबदेही | |
संपादकीय / 04 29, 2020 | | | | |
भारत को तत्काल कदम उठाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि मौजूदा संकट दुनिया के उस हिस्से के साथ भारत के रिश्तों को प्रभावित न करे जो देश की सुरक्षा और समृद्धि दोनों के लिए अहम है। फारस की खाड़ी के छह देश-संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, बहरीन और ओमान जो कि खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य भी हैं, भारतीय श्रमिकों का बड़ा ठिकाना हैं। भारतीय प्रवासी वहां बहुत बड़ी तादाद में काम करते हैं।
विदेशों में रहने वाले भारतीय साल में जो धन भारत भेजते हैं उसका करीब आधा इन्हीं देशों से आता है। जाहिर है ये देश हमारे भुगतान संतुलन और व्यापक अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम हैं। खाड़ी सहयोग परिषद दो अन्य वजहों से भी भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है। सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी गतिविधियों में सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है और अतीत में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में इसका काफी योगदान रहा है। इसके अलावा भारत ऊर्जा का शुद्ध आयातक है और खाड़ी सहयोग परिषद के देश न केवल भारत की कच्चे तेल की जरूरत पूरी कर सकते हैं बल्कि वे प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की दृष्टि से भी बहुत अच्छे हैं।
परिषद को दो बातों ने अत्यधिक प्रभावित किया है। कोविड-19 के प्रसार ने तो इस पर असर डाला ही है, कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट ने भी उसे प्रभावित किया है। परिषद के कई देशों को अपने बजट को संतुलित रखने के लिए तेल कीमतों में मौजूदा दर से तीन से चार गुना का इजाफा चाहिए। जाहिर है उन्हें राजस्व संकट से गुजरना पड़ रहा है। इस बीच उन देशों में रहने वाले भारतीय प्रवासी समुदाय के करीब 80 लाख लोग भी काफी तनाव में हैं। कोरोनावायरस के खिलाफ चल रही देशव्यापी लड़ाई के चलते अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जिसके चलते कई लोग अपने परिवार से पूरी तरह कट गए हैं। जिन लोगों के पास दस्तावेज नहीं हैं, जो अकुशल रोजगार में हैं या अस्थायी रूप से रोजगार के बिना हैं, उनकी हालत सबसे ज्यादा खराब है। इन देशों ने ऐसे तमाम लोगों के लिए शिविर तैयार किए हैं लेकिन इससे भारत के साथ उनके रिश्तों में तनाव आ रहा है। संयुक्त अरब अमीरात की सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह उन देशों को जवाबदेह ठहराएगी जो अपने श्रमिकों को वापस नहीं ले जा रहे हैं। खासतौर पर वह श्रम प्रावधानों में तब्दीली ला सकता है और उन देशों से आने वाले निजी क्षेत्र के कर्मचारियोंं की तादाद को कम कर सकता है। यह न केवल कई भारतीयोंं के लिए एक बड़ी विपत्ति होगी बल्कि अर्थव्यवस्था और सरकार के लिए भी मुसीबत होगी।
स्वाभाविक सी बात है कि इन देशों में रहने वाले सभी भारतीयों को एक साथ बाहर निकालना मुश्किल होगा लेकिन सरकार को इच्छाशक्ति दिखाते हुए कम से कम उन लोगों को बाहर निकालना चाहिए जिन्हें वायरस के जोखिम वाले लोगों के रूप मेंं चिह्नित किया गया है। सरकार को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि वह परिषद केे देशोंं में स्थापित श्रम शिविरोंं को कैसे वित्तीय और प्रबंधन संबंधी मदद पहुंचा सकती है। यदि आवश्यक हो तो उसे सरकार को इसके लिए कुछ बजट प्रावधान करने चाहिए तथा उनके उपचार, आवास और आपूर्ति आदि का खर्च साझा करना चाहिए। इससे उन देशों को यह संदेश मिलेगा कि भारत अपने नागरिकों की जवाबदेही स्वीकार कर रहा है। यह उन श्रमिकों की दृष्टि से भी बेहतर होगा। भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण वैश्विक रिश्ते को यूं खतरे में नहीं पडऩे दिया जा सकता। यदि कमजोर तेल कीमतों के कारण परिषद के देश आगे और कड़ाई करते हैं तो भारत को उस स्थिति के लिए आकस्मिक योजना भी तैयार करनी होगी।
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