समाप्त हो लॉकडाउन | संपादकीय / April 27, 2020 | | | | |
सोमवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना बिल्कुल सही था कि अर्थव्यवस्था को भी महत्त्व देने की आवश्यकता है। अब वक्त आ गया है कि सरकार प्रधानमंत्री की बातों पर चलते हुए लॉकडाउन को 3 मई के बाद लागू न रखने के बारे में निर्णय ले। जानकारी के मुताबिक कुछ मुख्यमंत्रियों ने कोविड-19 के प्रसार को थामने के लिए लॉकडाउन जारी रखने की हिमायत की, वहीं इस बात की पर्याप्त वजह मौजूद है कि आर्थिक गतिविधियों पर से प्रतिबंध सार्थक ढंग से समाप्त किए जाएं। लॉकडाउन को 14 अप्रैल के बाद आगे बढ़ाने के पीछे ठोस दलील थी क्योंकि तब तक ऐसे संकेत नहीं थे कि रोज आने वाले नए मामलों में किसी तरह की स्थिरता आ रही हो। परंतु अब ऐसा हो रहा है। नए मामलों के दोगुना होने की दर पहले के चार दिन के मुकाबले अब नौ दिन हो गई है। हालांकि रोज सामने आने वाले नए मामलों की तादाद अब भी बढ़ रही है लेकिन वृद्धि दर में स्थिरता आई है। मरने वालों की तादाद भी अब तक 1,000 से कम है। अगर हम अन्य कारणों से तुलना करें तो यह बहुत अधिक नहीं है। अन्य बीमारियों के लिए चिकित्सा बुनियादी ढांचे की अनुपलब्धता भी जान जाने की वजह बन रही है। ऐसे में जब तक नए हॉटस्पॉट नहीं उभरते या संक्रमण की नई लहर नहीं चलती, यह कहना उचित होगा कि लॉकडाउन ने अब तक अपेक्षित नतीजे दिए हैं।
लेकिन इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है। खासकर गरीबों को। बेरोजगारी दर बढ़कर 24 फीसदी हो गई है जो अमेरिका में महामंदी के दिनों की दर के समतुल्य है। प्रमुख आर्थिक संकेतकों मसलन निर्यात, तेल खपत, बिजली उत्पादन, रेल और ट्रक परिवहन, वाहन बिक्री, सीमेंट और स्टील खपत आदि में दो अंकों में गिरावट आई है। सरकारी राजस्व में भी कमी आई है। इससे वित्तीय स्थिति और खराब होगी, खासकर राज्यों में। उदाहरण के लिए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मुताबिक दिल्ली के राजस्व में 90 फीसदी कमी आई है। अन्य राज्यों में हालात और बुरे हो सकते हैं।
अगर लॉकडाउन जारी रहा तो सरकारों की आर्थिक गतिविधियों में सुधार की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होगी। विशेष उपायों के अभाव में राजकोषीय रुख में संकुचन आएगा और समस्या कम होने के बजाय बढ़ेगी। राज्यों का कम राजस्व और व्यय सुधार को प्रभावित करेगा। इसके अलावा फिलहाल विभिन्न क्षेत्रों में नागरिकों को जो समस्या हो रही है वह कई गुना बढ़ जाएगी क्योंकि अंतिम व्यक्ति तक राहत उपाय पहुंचाना लगभग असंभव है। लॉकडाउन में इजाफा करने से आम लोगों पर असर पड़ेगा और राजस्व घटेगा। राज्य और बुरी तरह प्रभावित होंगे। कई छोटे और मझोले उपक्रमों के सामने अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो जाएगा और रोजगार को स्थायी क्षति होगी।
खबर है कि सरकार छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए पैकेज तैयार कर रही है लेकिन अगर उनमें गतिविधियां शुरू हों तो वे दिवालिया होने से बचेंगे और बड़े पैमाने पर रोजगार भी बचेंगे। यदि कंपनियां दिवालिया हुईं तो बैंक भी प्रभावित होंगे और उत्पादक क्षेत्रों को भी ऋण नहीं दे पाएंगे। सरकार को जीवन और आजीविका के बीच समझदारीभरा चयन करना होगा क्योंकि अभी संक्रमण दर में स्थिरता आ रही है और कहा जा सकता है कि लॉकडाउन को सार्थक ढंग से हटाने का वक्त आ गया है। ताकि चरणबद्ध तरीके से हालात को सामान्य किया जा सके। जांच का दायरा बढ़ाकर रोकथाम को और लक्षित किया जाना चाहिए। इसके अलावा प्रतिबंधों को शिथिल कर सरकार को आर्थिक गतिविधियां शुरू करने की व्यापक योजना पर काम करना चाहिए।
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