कोरोना की प्रोटीन संरचना के बारे में समझ बढ़ाती परियोजना | तकनीकी तंत्र | | देवांशु दत्ता / April 22, 2020 | | | | |
कोरोनावायरस का अभी तक अनदेखा असर एक 'उबर-सुपर कंप्यूटर' के विकास के रूप में सामने आया है। क्राउड-सोर्सिंग से चलाई जा रही परियोजना फंड से इस बेहद शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर का विकास किया गया है। स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी की विजय पांडे लैब पिछले कई वर्षों से एक साझी कंप्यूटिंग परियोजना चला रही है।
फोल्डिंगऐटहोम नाम की यह परियोजना अपने स्वयंसेवियों से कहती है कि वे खाली समय में अपने कंप्यूटर पर इसके लिए काम करें। इन संसाधनों का इस्तेमाल विभिन्न प्रोटीनों के अवगुंठन की जटिल कार्य-प्रणाली और प्रोटीन के काम करने के तरीकों की पड़ताल में किया जाता है। प्रोटीन शृंखलाएं अवगुंठन (फोल्डिंग) के जरिये अपनी त्रिआयामी संरचना हासिल करती हैं और इसका उनके कामकाज पर असर पड़ता है। अवगुंठन में गड़बड़ी उत्परिवर्तन और कई आनुवांशिक बीमारियों एवं स्वास्थ्य समस्याओं का कारण हो सकती है। कई तरह के कैंसर और पार्किन्संस जैसे अन्य रोग गलत ढंग से अवगुंठित प्रोटीनों के कारण पैदा होते हैं। प्रोटीनों के अवगुंठन के संभावित तरीकों की संख्या काफी अधिक हो सकती है और इसके पीछे के नियमों को अभी तक ठीक से समझा नहीं जा सका है। असल में, प्रोटीन-फोल्डिंग के इर्दगिर्द कई तरह के खेल भी बनाए गए हैं ताकि नए नियमों की शिनाख्त हो सके। डीपमाइंड से विकसित मशहूर कृत्रिम मेधा (एआई) एल्गोरिद्म 'अल्फाजीरो' भी प्रोटीन-फोल्डिंग को समझने में लगा हुआ है।
परियोजना से जुड़े स्वयंसेवी अपने कंप्यूटर सिस्टम पर प्रोटीन फोल्डिंग से जुड़ी समस्याओं के अध्ययन के लिए वक्त देते हैं। इस परियोजना में मशीनें इस तरह व्यवस्थित की जाती हैं कि वे संभावित भिन्नताओं के जरिये काम कर सकें। स्वयंसेवियों को बस एक छोटा सा डाउनलोड करना होता है। इससे जब भी संबंधित कंप्यूटर के पास मुफ्त संसाधन होते हैं तो फोल्डिंगऐटहोम को गणनाओं की सुविधा मिल जाती है।
मार्च के मध्य में परियोजना ने यह घोषणा की थी कि वह कोविड-19 महामारी के लिए जिम्मेदार कोरोनावायरस में पाए जाने वाले प्रोटीन की संरचना के अध्ययन में भी कुछ संसाधन लगाने जा रही है। इसके अलावा इस घातक वायरस का मुकाबला कर सकने वाली दवाओं के विकास की भी कोशिश का जिक्र किया था। इस घोषणा को लेकर काफी उत्साह देखा गया और पहले हफ्ते में ही करीब चार लाख नए लोग इस परियोजना से जुड़ गए।
नए लोगों के जुडऩे का सिलसिला बाद में भी जारी रहा। पिछले हफ्ते तक इस परियोजना में सम्मिलित प्रयासों के 2.4 एक्सा-फ्लॉप्स की क्षमता हो चुकी थी। एक एक्सा-फ्लॉप का आशय प्रति सेकंड 10 का घातांक 18 फ्लोटिंग प्वाइंट ऑपरेशन (फ्लॉप) होता है। मोटे तौर पर एक फ्लॉप का मतलब एक गणितीय गणना से होता है। इस तरह इस परियोजना के तहत सक्रिय कंप्यूटर प्रणाली दुनिया की सबसे शक्तिशाली कंप्यूटर बन चुकी है जो अब तक के सबसे शक्तिशाली सुपर-कंप्यूटर 'आईबीएम समिट' से भी करीब 16 गुना तेज है। इसका यह मतलब भी है कि फोल्डिंगऐटहोम दुनिया के सबसे तेज 500 कंप्यूटरों के एक साथ काम करने पर भी एक सेकंड में उनसे तेज गणनाएं कर रहा था। हालांकि इस तरह के बंटे हुए या समानांतर प्रोसेसिंग वाले प्रयासों को कारगर ढंग से संभालना पेचीदा काम हो सकता है।
गणितीय समस्याओं को अलग-अलग टुकड़ों में बांटना होगा जिन पर एक साथ कई मशीनों पर काम किया जा सकता है और फिर उन अलग-अलग हिस्सों को जोड़कर पूरी तस्वीर बनानी होती है।
इस परियोजना की वेबसाइट पर कोविड महामारी का एक अलग खंड भी दिखाई देता है जिसमें बड़े रोचक ढंग से इसके मकसद के बारे में बताया गया है। एक अमेरिकी फुटबॉल टीम की मैच शुरू होने के पहले की तस्वीर है और हमें अंदाजा लगाना है कि खिलाड़ी किस तरह आगे बढ़ेंगे?
परियोजना का संचालन कर रही पांडे लैब कोरोनावायरस की प्रोटीन संरचना को डिकोड करने और विभिन्न अमीनो एसिड की हलचल एवं उनकी अंतक्र्रिया को समझने की कोशिश कर रही है। यह प्रयोगशाला हलचल का कंप्यूटर सिम्युलेशन बनाने में महारत रखती है। अतीत में इसने ऐसी समझ विकसित करने में मदद की थी जिससे इबोला वायरस की काट खोजी जा सकी थी।
कोरोनावायरस के भीतर एक गतिविधि का होना बेहद अहम है और वह है मुकुट रूपी कोरोना का खोल खुलना और एक मेजबान इंसानी कोशिका के भीतर वायरस को प्रवेश करा देना।
फोल्डिंगऐटहोम ने पहले ही इस गतिविधि का एक संभावित सिम्युलेशन तैयार कर लिया है। उम्मीद है कि यह परियोजना इस वायरस की गतिविधियों के बारे में कुछ और समझ पैदा कर पाने में सफल होगी जिससे यह पता लगाया जा सकेगा कि वायरस किस स्थिति में कमजोर होता है और नई दवाएं इस पर काबू पा सकती हैं। परियोजना कुछ उसी तरह की बंटी हुई कंप्यूटिंग संकल्पना का इस्तेमाल करती है जैसा पारग्रहीय बुद्धिमान जीवों की तलाश के लिए मशहूर 'सेटी' योजना करती है। सेटी ने स्वयंसेवियों के घरेलू कंप्यूटरों के नेटवर्क का इस्तेमाल अंतरिक्ष से आने वाले रेडियो सिग्नलों के अध्ययन में किया ताकि दूसरे ग्रह पर जीवन की संकेत मिल सकें। सेटी योजना का संचालन कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के बर्कली परिसर से किया गया था और यह 1999 से शुरू होकर मार्च 2020 तक चलती रही। हालांकि इस दौरान सुदूर ग्रह से कोई बुद्धिमत्तापूर्ण संदेश नहीं मिला लेकिन बंद किए जाने के पहले इसने ढेरों उपयोगी जानकारियां जरूर जुटाईं।
सेटी से प्रेरणा लेकर ही फोल्डिंगऐटहोम और क्लाइमेट प्रिडिक्शन जैसे साझे कंप्यूटिंग प्रयास शुरू किए जा सके।
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