अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिए 3 से 5 फीसदी जीडीपी का हो सकता है उपयोग | इंदिवजल धस्माना / April 20, 2020 | | | | |
बीएस बातचीत
विश्व बैंक के दक्षिण एशिया क्षेत्र के मुख्य अर्थशास्त्री हंस टिमर और भारत के लिए कंट्री निदेशक जुनैद अहमद ने इंदिवजल धस्माना के साथ बातचीत में विश्व बैंक की रिपोर्ट के विभिन्न पहलुओं और कोविड-19 के कारण उत्पन्न परिस्थितियों पर चर्चा की। पेश है संपादित अंश...
विश्व बैंक ने 2020-21 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर अनुमान को 1.5 फीसदी से 2.8 फीसदी के बड़े फासले के बीच क्यों रखा है?
टिमर: भले ही परिदृश्य बुरी तरह से प्रभावित हुआ है फिर भी उसका सटीक आकलन कर पाना आसान नहीं है। अप्रत्याशित अनिश्चितता को देखते हुए पहली बार इस रिपोर्ट में वृद्धि दर का अनुमान एक निश्चित अंक में न बताकार एक परिसर में बताया गया है। अनुमान परिसर की निचली और ऊपरी सीमा विश्व बैंक की ओर से विकसित की गई दो वैश्विक परिदृश्य के साथ बरकरार है। बेसलाइन परिदृश्य के तहत कोरोनावायरस का प्रसार धीमा पडऩे लगेगा जिससे रोकथाम के उपायों को दो महीने बाद समाप्त किया जा सकता है और नकारात्मक पहलू के परिदृश्य में वायरस का प्रसार लंबा खिंचेगा, जिससे रोकथाम के उपायों को 4 महीने बाद हटाया जा सकता है।
रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 से मुकाबले में दक्षिण एशिया के लिए चुनौतियां बहुत सी हैं। हालांकि, इस क्षेत्र ने इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे उन्नत देशों के मुकाबले अधिक सफलता से इस पर काबू किया है। ऐसा क्यों है?
टिमर: पहले मामले की रिपोर्ट होने पर दक्षिण एशिया ने दुनिया के दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले अधिक तेजी से रोकथाम के उपाय शुरू कर दिए। रिपोर्ट दिखाती है कि रोकथाम के उपाय मार्च के आरंभ में ही शुरू हो गए थे जब व्यावहारिक तौर पर इस क्षेत्र में कोविड-19 के एक भी मामले की पुष्टि नहीं हुई थी। दुनिया भर के प्रमाण से स्पष्ट है कि शीघ्र कठोर कदम उठाने से संक्रमण को कम किया जा सकता है। यह महत्त्वपूर्ण बात है कि महामारी दक्षिण एशिया में बड़े पैमाने पर नहीं फैला। यदि स्थानीय प्रसार नियंत्रण से बाहर हो जाता तो स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना कर पाना अत्यधिक कठिन हो जाता।
रिपोर्ट कहती है भारत में कोविड-19 के कारण सेवाएं प्रभावित हो रही हैं, उसके बावजूद औद्योगिक जीवीए सपाट नजर आ रहा है जबकि 2020-21 में सेवाओं में 4.1 फीसदी वृद्धि का अनुमान है। ऐसा क्यों है?
टिमर: रिपोर्ट में काफी कुछ प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होने वाले क्षेत्रों के बारे में कहा गया है, हालांकि, कई अन्य सेवाएं हैं जो प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित नहीं होंगी। उदाहरण के लिए इनमें वित्त, रियल एस्टेट, आईटी और संचार (घरेलू उपयोग) और कुछ कारोबारी और पेशेवर सेवाएं शामिल हैं। कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में तेजी से इजाफा होगा, यह क्षमता से ऊपर भी जा सकती है।
विश्व बैंक कहता है कि गरीबी घटाने के भारत के प्रयासों के नतीजे सामने आने लगे थे, लेकिन कोविड-19 से इन प्रयासों को धक्का लगेगा। कोविड-19 के बाद अब भारत में गरीबी स्तर कैसा होगा?
जुनैद अहमद: भारत ने 2000 के बाद से संपूर्ण गरीबी को घटाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। (वित्त वर्ष 2011/12 और 2015 के बीच गरीबी 21.6 फीसदी से घटकर अनुमानित तौर पर 13.4 फीसदी के अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा पर आ गई। इसका मतलब है कि 9 करोड़ लोग अत्यंत गरीबी से बाहर आ गए।) मौजूदा संकट का भारत और दुनिया भर में सबसे गरीब परिवार पर सबसे अधिक बुरा असर पड़ेगा। संक्रमण के प्रसार की अवधि के आधार पर गरीबी पर मध्य से दीर्घ अवधि का असर होगा। यदि संक्रमण फैलता है और लॉकडाउन को और कई महीनों के बढ़ाना पड़ता है तो सबसे गरीब परिवार का जोखिम बहुत बढ़ जाएगा।
भारत में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां जाने की संभावना जताई जा रही है। आपको किस सेक्टर पर ज्यादा असर नजर आ रहा है?
जुनैद अहमद: यह पहले से साफ है कि पर्यटन, आतिथ्य सत्कार, उड्डयन सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे और वैश्विक व घरेलू आपूर्ति शृंखला भी बिगड़ी नजर आ रही है जिसका व्यापक असर होगा। अब यह कवायद करना अहम है कि इन क्षेत्रों की कठिनाइयों का असर दूसरे क्षेत्रों पर न पड़े।
भारत में राजकोषीय घाटा कितना हो सकता है?
जुनैद अहमद: हमारा मानना है कि भारत जीडीपी के 3 से 5 प्रतिशत के बराबर खर्च कर अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की प्रक्रिया पूरी कर सकता है।
विश्व बैंक ने कोविड-19 से लडऩे के लिए भारत को 1 अरब डॉलर आपातकालीन निधि दी है। क्या और धन दिया जाएगा?
जुनैद अहमद: स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हमने 1 अरब डॉलर की मंजूरी दी है, अब भारत सरकार की गरीबों व हाशिये पर खड़े समाज को बचाने की कवायद के समर्थन पर ध्यान है।
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