देश की ताप बिजली इकाइयों को नकदी से जूझना पड़ रहा है क्योंकि बिजली की मांग में गिरावट जारी है। वहीं उनके उत्पादन केंद्र पर अतिरिक्त कोयला जमा है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि आगामी तीन तिमाहियों तक यह यह दोहरा संकट रहेगा और यह कोयला से लेकर बिजली आपूर्ति तक की आपूर्ति शृंखला को प्रभावित कर सकता है। कोयला खदानों से दूर (नॉन पिटहेट) बिजली उत्पादन इकाइयां 34 दिन का कोयले का स्टॉक रखती हैं, लेकिन इसमें से ज्यादातर की स्थिति बदली हुई है। पिछले वित्त वर्ष में ताप बिजली इकाइयों का औसत प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) या परिचालन अनुपात दशक के निचले स्तर 58 प्रतिशत पर रहा, जिससे मांग में कमी के संकेत मिलते हैं। आरक्षित बंदी से पता चलता है कि मांग की कमी के कारण बिजली उत्पादन ठहर गया है। देशबंदी की घोषणा के बाद पिछले महीने बिजली की मांग 30 प्रतिशत गिर गई। राज्यों ने बिजली खरीद कम कर दी है और वे सस्ती इकाइयों से बिजली खरीद रहे हैं। ज्यादा वैरिएबल लागत वाली बिजली उत्पादन इकाइयों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं, जिनमें ज्यादातर खदानों से दूर वाले बिजली संयंत्र हैं। इसमें एनटीपीसी लिमिटेड की कुछ इकाइयां और निजी मालिकाना वाली इकाइयां शामिल हैं, जो खदानों से दूर हैं। ताप बिजली संयंत्रों के शुल्क में दो घटक होते हैं। तय लागत में पूंजी की लागत शामिल होती है जबकि वैरिएबल लागत में ईंधन की लागत होती है। दीर्घावधि बिजली खरीद समझौते (पीपीए) में खरीदार को उत्पादकों को तय लागत का भुगतान करना होता है, भले ही वे बिजली न खरीद रहे हों। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि इससे निजी इकाइयां पहले प्रभावित होंगी। इंडिया रेटिंग ने बिजली क्षेत्र पर अपनी हाल की रिपोर्ट में कहा है, 'एनटीपीसी के पास अच्छी नकदी और बैंकिंग व्यवस्था व पूंजी बाजार तक बेहतर पहुंच है। इससे वह स्थिति संभाल सकती है। बहरहाल अक्षय ऊर्जा क्षेत्र सहित छोटे स्वतंत्र बिजली उत्पादकों की नकदी की स्थिति जून 2020 के बाद तक भी खराब रहेगी।' भारत के बिजली क्षेत्र पर सीआईआई की ओर से तैयार श्वेतपत्र में अनुमान लगाया गया है कि ताप बिजली उत्पादकों को 20,000 से 25,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी की कमी हो सकती है। इसमें यह भी अनुमान लगाया गया है कि खपत में कमी और भुगतान में देरी की वजह से वितरण कंपनियों को 30,000 से 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा और देशबंदी से छूट के बाद भी नकदी संकट बना रहेगा। आने वाले महीनों में नकदी संकट बढ़ेगा और बिजली मांग भी बढ़ेगी। ऐसे में इस क्षेत्र के अधिकारियों को डर है कि ज्यादातर इकाइयां कोयला खरीदने में सक्षम नहीं रह जाएंगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'पहले ही बड़ी संख्या में निजी इकाइयां कोयला नहीं उठा रही हैं क्योंकि उनके पास नकदी नहीं है।' बिजली उत्पादकों के संगठन एसोसिएशन आफ पावर प्रोड्यूसर्स (एपीपी) के महानिदेशक एके खुराना ने कहा, 'आदर्श रूप में तो बिजली वितरण कंपनियों को धन दिया जाना चाहिए क्योंकि वे राजस्व का सृजन करती हैं। अन्यथा यह ईंधन आपूर्ति के स्तर पर किया जाना चाहिए।'
